क्या कर-दाताओं के पैसे से इमाम को नहीं दिया जा सकता है वेतन ?

केंद्रीय सूचना आयुक्त ने अनुच्छेद 27 का हवाला देते हुए मा.सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरुद्ध चुनौती देते हुए संवैधानिक प्राविधानों का उल्लंघन बताया
क्या केंद्रीय सूचना आयुक्त को प्राप्त अधिकारों के विरुद्ध अन्य मामलों पर अनुचित विश्लेषण करने का अधिकार है ?
जावेद अहमद, चेयरमैन, वक़्फ वेल्फेयर फोरम

नई दिल्ली। रिपब्लिक भारत में हर धर्म, मजहब और जाति के वोटरों द्वारा सरकारें चुनी जाती हैं चुनी हुई सरकार का यह दायित्व है कि वेलफेयर/कल्याण के लिए देश हित में बगैर भेदभाव के उचित निर्णय ले । मस्जिद के इमामों और खिदमतगारों के वेतन के लिए ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन ने सरकारों/राज्यो के वक़्फ बोर्ड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दाखिल किया। जिसका फैसला सुप्रीम कोर्ट मे जस्टिस आर.एम. सहाय के खंडपीठ ने मई 1993 में वक़्फ बोर्डों को उनके द्वारा संचालित की जा रही मस्जिदों के काम करने वाले इमाम को पर्याप्त वेतन देने का आदेश दिया था ।

इस फैसले के बाद हरियाणा, कर्नाटका, दिल्ली ,केरल और अन्य प्रदेशों ने पालन किया। वक़्फ बोर्ड अपने नियमावली (बायलाज) के अनुसार इमाम और संबंधित खिदमतगारों को सैलरी स्लैब्स तय कर रखा है।

कर्नाटका स्टेट वक़्फ बोर्ड बाय लाज के मुताबिक सैलरी स्लैब्स पेश इमाम, नायब पेश इमाम, मोज्जिंन ,नायंब मोअज़्ज़िन और खादिम को 4 वर्गों मे बांट गया है । उदाहरण के तौर पर मेट्रो सिटी, म्युनिसिपल कारपोरेशन ,कस्बा और ग्रामीण एरिया के अनुसार सैलेरी स्लैब के अंतर्गत तनख्वाह दी जाती है।

सैलरी का मद राज्य वक़्फ बोर्ड, वक्फ प्रॉपर्टी के मैनेजमेंट कमिटी के मुतावली के जरिए कुल इनकम के 7% स्टेट वक़्फ बोर्ड को शेयर मिलता है। इसी इनकम से राज्य के वक़्फ बोर्ड का संचालन होता है। इसी तरह स्टेट वक़्फ बोर्ड के टोटल इनकम का 1% सेंट्रल वक़्फ काउंसिल , दिल्ली को शेयर मिलता है और इसी आय से सेंट्रल वक्फ काउंसिल के संचालन और रख रखाव में खर्च होता है।

यह विवाद केंद्रीय सूचना आयुक्त के टिप्पणी पर उत्पन्न हुआ है जबकि केंद्रीय सूचना आयुक्त को सूचना के अधिकार के अंतर्गत सूचना उपलब्ध कराना ही उनके विशेष अधिकारों में शामिल है और संबंधित को निर्देश या पनिशमेंट का अधिकार निहित है। जबकि केंद्रीय सूचना आयुक्त ने सुप्रीम कोर्ट के 1993 के फैसले के विरुद्ध संविधान के अनुच्छेद 27 को चुनौती देते हुए उल्लंघन बताया है, केंद्रीय सूचना आयुक्त ने प्राप्त अधिकारों का उल्लंघन करते हुए और माननीय उच्चतम न्यायालय की अवमानना करते हुए चुनौती दी है।

राज्यों द्वारा अनुदान दिया जाना उचित या अनुचित का विश्लेषण करते वक़्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए की पूरे देश में वक़्फ की प्रॉपर्टी सभी राज्यों में फैली हुई है । जिसमें वक़्फ की संपत्तियों का उपयोग सरकारी, गैर सरकारी ,ट्रस्टों और निजी संस्थाओं करती हैं जबकि क्क़फ प्रॉपर्टी मुस्लिमों वक्फ समितियों के द्वारा संचालित की जाती है।

जैसा की हम सभी जानते है कि दिल्ली में स्थित सीजीओ कंपलेक्स, आईटीओ, पुलिस हेड क्वार्टर गगनचुंबी डीडीए की मीनार और अन्य सरकारी कार्यालय विराजमान है जो सरकार के अधीन है । सरकारी दफ्तरों, पेट्रोल पंप, होटल, अन्य इस्टैब्लिशमेंट का किराया बाजार रेट के मुताबिक संबंधित राज्य के वक़्फ बोर्ड को नही अदा किया जाता है। जिससे राज्यों के वक़्फ बोर्ड की राजस्व को हानि पहुंचती है । राज्य के वक़्फ बोर्ड के संचालन में वित्तीय कमी आती है जिससे उनके कार्यालय को सुचारू रूप से चलना मुश्किल हो गया है जिसके कारण भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिल रहा है। जानकारों का मानना है कि अगर सरकार अनुदान के तौर पर वक़्फ बोर्ड को देकर कोई एहसान नहीं करती, केंद्र सरकार सुदृढ़ व्यवस्था स्थापित कर वक़्फ संपत्तियों के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत में वक्फ प्रॉपर्टी का भी अहम योगदान प्राप्त किया जा सकता है।

मुस्लिम बुद्धिजीवी एवं संस्थाओं की जिम्मेदारी बनती है कि राज्यों के वक़्फ बोर्ड के संचालन , बजट के ऑडिट , स्मार्ट तकनीक से संपत्तियों का रखरखाव , सरकार द्वारा वक़्फ सम्पत्ति की गयी अधिग्रहण का मुआवजा हासिल करना, उचित बाजार रेट से किराया का लागू करना और पूरी वक्फ प्रॉपर्टी की व्यवस्था को डिजिटल एवं पारदर्शी और संचालन पर कंट्रोल रखना इस समय सही कदम होगा और नकारात्मक राजनीति से भी बचा जा सकता है।

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