प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज के आदेशों की अवहेलना की पुलिस अधीक्षक ने
आज पुलिस की घेराबंदी ऐसी रही जैसे किसी गैंगस्टर या आंतकवादी को पकड़ना हो

अशोक कुमार कौशिक 

नारनौल। मारपीट के मामले के बाद खान मालिकों के कारिंदों द्वारा दर्ज करवाये गये क्रॉस केस में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार मनोज गोस्वामी की हड़बड़ाहट में की गई गिरफ्तारी ने पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। 

अब भी वही पुरानी पुलिस थ्योरी की जिसे परेशान करना हो उसे शनिवार को गिरफ्तार करना चाहिए क्योंकि अगले दो दिन कोर्ट बन्द रहता है। आज पुलिस की घेराबंदी ऐसी रही जैसे किसी गैंगस्टर या आंतकवादी को पकड़ना हो

शनिवार को लगभग 11 बजे मिर्जापुर बाछोद गांव से देश मे नीट में अव्वल आने वाली छात्रा की कवरेज कर वापिस लौट रहा था मनोज गोस्वामी, उसके साथ तीन वरिष्ठ पत्रकार और थे। इस टीम के साथ (इस समाचार का लेखक) पत्रकार भी शामिल था। अचानक पुलिस की गाड़ी उन्हें रोकती है और कर्मचारी चारों तरफ से  घेर लेते हैं। सभी हड़बड़ा जाते हैं इतनी देर में मनोज गोस्वामी को पकड़ कर पुलिस की गाड़ी में बैठा लिया जाता है, तब पता चलता है कि गाड़ी में साइबर सेल का कर्मचारी भी बैठा था जो मनोज गोस्वामी की लोकेशन सर्च कर रहा था। 

कप्तान साहब, ये मामले एक महीने से ज्यादा समय पहले दर्ज हुए थे। तब से मनोज गोस्वामी तो शहर में ही घूम रहा था, एक-दो कार्यक्रमों में आपसे भी टकरा होगा, तो उसे तब गिरफ्तार क्यों नही किया गया ? आज शनिवार को ऐसा क्या हो गया कि एक पत्रकार को आतंकवादी की तरह गिरफ्तार करना पड़ा ? किसे खुश करना चाह रहे हो आप, खान मालिकों को। आपकी पहली पोस्टिंग है कुछ तो कानून की मर्यादा रखिये अभी तो आपको लम्बा चलना है। आप उसी चन्दरमोहन आईपीएस की कुर्सी पर बैठे हैं जिसने कभी बेगुनाह को तंग नही किया था। 

चलिए, आपके मिलने वाले तो खुश हो गए होंगे। अब ये भी बता दीजिए कि उसी दिन इस मुकदमे से पहले मनोज गोस्वामी की शिकायत पर खान कर्मचारियों के खिलाफ दर्ज मुकदमे में आपने क्या कार्रवाई की ? आपकी नियत तब भी सही लगती अगर आप दोनों मुकदमों में कार्रवाई करते। लेकिन महोदय, इस तरह से आप कलम और कैमरा को रोक नहीं पाएंगे, गरीब और प्रताड़ित लोगो की आवाज यूं ही उठाई जाती रहेगी। आपको यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि आपने प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज के आदेशो की क्यों अनदेखी की? क्या प्रदेश के गृहमंत्री से बड़े हैं।

अब यहां सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि पुलिस आखिर क्या साबित करना चाहती है क्या किसी गलत काम का विरोध करना गलत है यदि भविष्य में इस प्रकार पत्रकारों की प्रताड़ना की जाएगी तो आखिर समाज के हित की बात कौन उठाएगा। हम क्षेत्र के प्रतिनिधियों से भी मांग करते हैं कि उन्होंने विधानसभा में जिस तरीके से खनन माफिया के खिलाफ आवाज उठाई क्या पुलिस अधीक्षक के गलत निर्णय को लेकर वह मुखर नहीं होंगे। 

हां, आपकी कार्रवाई से यह तो स्पष्ट हो गया है कि अब पत्रकारों को जेल जाने के लिए भी तैयार रहना होगा। कोई बात नही जनाब हम तैयार हैं, चार लाइन याद आ रही हैं जो हमारे बुजुर्ग अंग्रेजों के खिलाफ गुनगुनाया करते थे :

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, 

देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।

वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ,

हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है।।

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