-कमलेश भारतीय

आज शिक्षक दिवस है और हर जगह , यहा वहां शिक्षक का मान सम्मान है । पर सारा वर्ष क्या यही स्थिति रहती है ? बिल्कुल नहीं । शिक्षक का गुणगान एक दिन ही किया जाता है , जैसे दूसरे दिवस मनाये जाते हैं , वैसे ही इसकी लकीर भी पीट ली जाती है । कोई नयापन नहीं , कोई ताजगी नहीं । हम सब पहले अपने मांबाप को ही शिक्षक मानते हैं और वे होते भी हैं । इसके बाद विद्यालय के शिक्षक आते हैं । स्वामी अग्निवेश हमारे नवांशहर के आर के आर्य काॅलेज में दीक्षांत समारोह पर आये थे और उन्होंने जो बात कही , वह आज तक याद है । स्वामी अग्निवेश ने कहा कि मां मुझ छोटे से बच्चे का कान पकड़कर पहली बार स्कूल यह कहकर ले गयी थी कि चल तुझे आदमी बनवाऊंगी लेकिन लगभग सोलह साल तक पढ़ाई तो जरूर कर ली लेकिन आदमी नहीं बन पाये । क्या शिक्षक सिर्फ डिग्री के लायक ही बनाते हैं या यही इस शिक्षा का उद्देश्य है ? सिर्फ रोजगार ? सिर्फ व्हाइट कालर नौकरी ? जो मैकाले ने हमारी शिक्षा का लक्ष्य बना दिया था ?

प्राचीन युग में गुरुकुलों में जीवन की व्यावहारिक शिक्षा भी दी जाती थी लेकिन अब सिर्फ रोज़गार की शिक्षा रह गयी है । कितने साल शिक्षा जगत में बिताये । समय बदल गया है । न गुरुकुल रहे और न ही वह व्यावहारिक शिक्षा रही । सच कहूं अब तो स्कूल भी नाममात्र के रह गये । यहां सिर्फ रजिस्टर पर हाजिरी लगती है और शिक्षा कोचिंग क्लासिज में दिलवाई जाती है । वह स्ट्रीट लाइट के लैम्प की रोशनी में पढ़ने वाले बच्चे कहां खो गये ? वे शिक्षक का सम्मान करने वाले अभिभावक कहां गुम हो गये ? ऑनलाइन क्लासिज ने तो शिक्षक की रही सही इज्जत भी खत्म कर दी । कहां तक गिरेगा शिक्षा का स्तर ?

अभी हरियाणा में स्कूल कम होने या बंद किये जाने पर धरने प्रदर्शन किये जा रहे हैं । ग्रामीण लोग स्कूलों के आगे धरने दे रहे हैं । शिक्षक नहीं हैं । जहां कहीं देखो यही सुनाई दे रहा है । शिक्षा और शिक्षक एक दूसरे से जुड़े हुए हैं । शिक्षक नहीं तो शिक्षा कौन देगा ? ग्रामीण छात्र कहां जायेंगे ? ग्रामीण छात्रों के बारे में गंभीर रूप से सोचना चाहिए । यदि सरकार गंभीर नहीं होगी तो यह शिक्षा का ढांचा बूरी तरह प्रभावित हो जायेगा । कुछ तो गौर कीजिए सरकार !

कौन कहता है आसमान में सुराख हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो !
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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