पार्टी व्यापार और देशभक्ति 
मैच के दौरान कोई ‘खान’ टाइप सेलेब्रेटी हाथ में तिरंगा पकड़ने से मना कर देता तो देश में भूचाल आ गया होता
तिरंगा पकड़ने से मना करने वाले जय शाह हैं तो सब नॉर्मल 
 यहां राष्ट्रभक्ति और पार्टी नीति व्यापारी नीति से नीचे हो गयी यही असली चरित्र है

अशोक कुमार कौशिक 

अमित शाह का व्यापारी बेटा भारत-पाकिस्तान मैच में भारत की जीत का जश्न हाथ में झण्डा लेकर नहीं मनाता है, बल्कि झण्डा हाथ में लेने से भी इनकार कर देता है । अब इस तुच्छ घटना में कई प्रश्न उठते है तो कई प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं ।

भारत-पाकिस्तान मैच अगर किसी दूसरी सरकार में हुआ होता तो कितना बवाल मचता ? लेकिन अभी सब नॉर्मल है !

मैच के दौरान कोई ‘खान’ टाइप सेलेब्रेटी हाथ में तिरंगा पकड़ने से मना कर देता तो देश में भूचाल आ गया होता, अब तक उसे देशद्रोही, गद्दार न जाने क्या क्या साबित कर दिया जाता । लेकिन तिरंगा पकड़ने से मना करने वाले जय शाह हैं तो सब नॉर्मल है ।

कोई सिद्धू जैसा नेता या फिर ‘खान’ टाइप सेलेब्रेटी अगर स्टेडियम में पाकिस्तानियों के साथ बैठकर मैच देखता हुआ कैमरे पर दिख जाता तो उसके पाकिस्तान या आईएसआई से सीधे लिंक साबित कर दिए जाते । लेकिन जय शाह पाकिस्तानियों के साथ बैठकर मैच देखें तो सब नॉर्मल है ।

इसी हिप्पोक्रेसी को समझने की जरूरत है । छोटी छोटी घटनाओं पर दूसरों को देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांटने वाले नमूनों को पहचानिए और उनको सीरियसली लेना बंद कीजिए । अगर आपको बीजेपी के असली चरित्र को समझना हो तो इस छोटी घटना को बहुत सूक्ष्मता से समझना होगा हालांकि वह मीडिया से यही कहेगा कि- ‘मैं पाकिस्तान के हारने पर इतने जोश में था कि इस बात का ध्यान नहीं रहा ।’ (हालांकि यह बात मीडिया तक जाएगी नहीं) परन्तु मैं कहूंगा वह सबकुछ जानबूझकर था ।

(दूसरी पार्टी वाले नेताओं, कार्यकर्ताओं को पहले ही आगाह कर देता हूँ कि एक नेता को किस हद तक छोटी-छोटी बातों को ध्यान देना होता है तब ‘मोदी जैसा नाम जबरदस्ती भगवान बना दिया जाता है।’ )

सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात, वहाँ जय शाह के साथ चार पांच लोग होते हैं और सभी खड़ा होकर जश्न मना रहे होते हैं, जहाँ तक ऐसी स्थिति में सारा स्टेडियम(पाकिस्तानी दर्शकों को छोड़कर) जश्न मना रहा होता है, ऐसे में एक व्यक्ति जयशाह को झण्डा लाकर देने की कोशिश करता है अर्थात उसे वही कहा गया था झण्डा देने को । उसे जीत और जश्न से ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य वह झण्डा जय शाह को देना था, क्यों ? अभी भारत 75वे स्वतंत्रता दिवस का ‘अमृत महोत्सव’ मना रहा है और प्रधानमंत्री के आह्वान पर “हर घर तिरंगा” अभियान की अपील थी, “दुनिया ने देखा भारत की मजबूती” आदि वक्तव्यों का जुमला । ऐसे में उस व्यक्ति का महत्वपूर्ण कार्य सिर्फ यह था कि वह झण्डा जय शाह को देना था और जब वह झण्डा फहराता तो देश के आवाम में एक राष्ट्रवादी बेटे और व्यवस्था का संदेश जाता पर वह नहीं फहराता है, क्यों ? जबकि वह खूब अच्छे से झंडे और उस व्यक्ति को भी देखता है फिर अनदेखा कर देता है । वह इसलिए कि यह मैच यूएई(संयुक्त अरब अमीरात) में हो रहा था जो एक मुस्लिम कंट्री है, दूसरे उसके साथ बहुत से गणमान्य मुसलमान बैठे थे उस व्यापारी को यह बात तुरंत क्लिक करती है कि इस आक्रामकता से मेरे धंधे का नुकसान हो सकता है । क्योंकि अभी कुछ ही दिनों पहले नूपुर शर्मा मामले में सारे मुस्लिम कंट्री ने भारत का जबरदस्त विरोध किया था।

अब यहां राष्ट्रभक्ति और पार्टी नीति व्यापारी नीति से नीचे हो गयी यही असली चरित्र है बीजेपी का और उनके लोगों का । बस वह सब सूक्ष्मता से समझने की जरूरत है।

अंत में एक बात- विपक्ष को वह झण्डा देने वाले(बीजेपी माइंड) से यह सीखना होगा कि कब, किस समय क्या करना है क्या नहीं । इन छोटी बातों का कितना लाभ होता है जिससे मोदी जैसा एक कथित बड़ा चेहरा खड़ा कर दिया जाता है । सोचिए यदि वह झण्डा फहरा देता तो उसका क्या संदेश बांटा जाता देश में?

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