-कमलेश भारतीय

इन दिनों समाचारपत्रों में तीन मुद्दे छाये हुए हैं -अग्निवीर , राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ जो एक देवता की पूंछ की तरह लम्बी होती जा रही है और राष्ट्रपति के लिए प्रत्याशी की खोज -पक्ष , विपक्ष दोनों ओर से । चौथी हरियाणा की चर्चा है कि एक नेता कितने बड़बोलेपन से बातें कर रहा है जैसे सारा आसमान इसी ने थाम रखा हो ।

अब बात है अग्निवीर की, जो नयी सौगात है केंद्र की युवाओं के लिए , जो फौज में जाने के इच्छुक हैं और तैयारी कर रहे हैं । इस पर काफी विरोध शुरू हो गया बिल्कुल वैसे ही जैसे तीन कृषि कानूनों का हुआ था । जगह जगह प्रदर्शन और आगजनी की घटनाएं होने लगी हैं । खासकर दक्षिण हरियाणा के युवाओं में रोष है इस अग्निवीर से । यही क्षेत्र है जहां सबसे ज्यादा क्रेज है सेना में जाने का और सबसे ज्यादा गये भी हैं । इस पर सबसे रोचक टिप्पणी राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र हुड्डा की है जो कह रहे हैं कि वन रैंक, वन पेंशन को नो रैंक , नो पैंशन कर दिया केदार सरकार ने । यह टिप्पणी भी आ रही है कि सासंद तो पांच साल के लिए चुनो और सेना में सिर्फ चार साल मिलें ? ऐसा क्यों ? हालांकि छह साल किये जाने की बात भी आ रही है । किसी का कहना है कि सेना का क्रेज ही खत्म कर दिया । इस तरह अग्निवीर ने अग्निपथ का रूप ले लिया , जो दुखद है । कृषि कानूनों के विरोध में एक वर्ष निकल गया । देश की सम्पत्ति का नुकसान थी हुआ ही , छह सौ से ऊपर लोगों की जान भी गयी । इसका विरोध भी रोहतक के युवा की आत्महत्या से हुआ है । कितनी जानें ले लेगा ? कोई नहीं जानता । कितनी सार्वजनिक सम्पत्ति नष्ट होगी , कुछ नहीं कहा जा सकता । आखिर क्यों ऐसे कानून बनाये जाते हैं ? मंडल कमीशन की रिपोर्ट ने भी देश में सन् 90 के आसपास तूफान ला दिया था । फिर बाबरी मस्जिद और राम मंदिर ने भी देश को उलझाये रखा । अब मंदिर बनने जा रहा है लेकिन ज्ञानवापी का विवाद शुरू हो चुका है । देशहित सर्वोपरि होना चाहिए न कि अग्निपथ ।

राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ और इसके विरोध में कांग्रेसजनों के प्रदर्शन के साथ साथ उन्हें गिरफ्तार या हिरासत में लेने की खबरें भी आ रही हैं । ईडी इतनी तैयारी के साथ आती है , जितनी तैयारी करवाई जाती है । एक पालतू तोते से कम नहीं । इस तरह संस्थाओं का राजनीतिकरण बहुत से सवाल उठाता है । पाकिस्तान में लोकतंत्र बहुत कम समय रहता है और फिर सेना सब संभाल लेती है । श्रीलंका में भी हालात बहुत खराब हो गये अर्थव्यवस्था जितनी खराब हुई । नेपाल में भी राजनितिक उठापटक हो चुकी । पड़ोसी देशों से सबक लेकर लोकतंत्र की राह ही अपनानी चाहिए । इस तरह के तरीके ज्यादा देर तक लोगों की आंखों में धूल नहीं झोंक सकते । लोगों ने ज्यादातर गोदी मीडिया को पहचान लिया है और इनकी लोकप्रियता भी दिन-प्रतिदिन गिरती जा रही है । सवाल राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ का नहीं , सवाल उस तरीके पर है जो विरोधियों के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है ।

राष्ट्रपति पद के लिए योग्य व्यक्ति की खोज जारी है । पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से । पता नहीं लालकृष्ण आडवाणी जी पर नजर जायेगी या नहीं ? प्रधानमंत्री पद से ऐसे चूके कि कहां हैं और क्या कर रहे हैं , कम लोग ही जानते हैं । गुरु दक्षिणा मिलेगी या नहीं ? विपक्ष को शरद पवार व गौतम गांधी इंकार कर गये हैं । आने वाले दिनों में कुछ और नाम उछल सकते हैं ।
इधर हमारे हरियाणा के एक नेता ने राज्यसभा चुनाव में क्राॅस वोटिंग करने के बाद इतना बड़बोलापन शुरू कर रखा है मानो सारी राजनीति की धुरी इनके ही हाथ में हो । एक दो दिन तो लोग सुनते रहे लेकिन अब भाजपा में ही विरोध होने लगा है । बड़े से लेकर छोटे नेता तक विरोध करने लगे हैं और वहम इतना कि मुझे कांग्रेस ने बहुत कम करके आंका , मेरा तो राजस्थान में 30 से ज्यादा सीटों पर प्रभाव है । यह भूल ही गये । अरे भाई , इतना ही प्रभाव था तो बेटे को चुनाव टिकट राजस्थान से दिलवाने थी । हरियाणा में चुनाव लड़ा कर और जमानत जब्त करने कर उसका राजनीति में श्रीगणेश ही गलत कर दिया । इतने बड़बोलेपन की क्या जरूरत है ? ऐसे बोल नहीं बोल सकते कि किसी के मन को शांति मिले तो कम से कम ऐसे बोल भी न बोलते रहो कि सबके मन को छलनी कर दो । अब तो भाजपा में ही बोल पसंद नहीं आ रहे । फिर जाओगे कहां ? जरा गौर से सोचना । अपना भविष्य और अपनी राजनीति ,,,,सबके दिन आते हैं और आपका भी आया लेकिन इतनी बड़बोलेपन की कोई जरूरत नहीं ,,,,कुछ पचाना भी सीखो ,,,कुछ इशारों में बात करो ।
पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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