रोहित यादव, मंडी अटेली पत्रकारिता एवं साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिये रोहित को “साहित्य समिति पुरस्कार” मिला था। पुरस्कार लेकर जब वह अपने घर पहुँचा तो उसके चेहरे पर अपार खुशी झलक रही थी। अपने पति को घर आया देख, उसकी पत्नी शीला ने चहकते हुए उससे पूछा कि इस पुरस्कार में उन्हें क्या-क्या मिला है ? अपनी पत्नी को शाल ओढ़ाते हुए रोहित ने जवाब दिया कि उसे इस ख्याति प्राप्त पुरस्कार में यह शाल, प्रशस्ति पत्र तथा एक स्मृति चिह्न मिला है। ” इनके साथ कुछ नकद धनराशि नहीं मिली?”– उत्सुकतापूर्वक पत्नी ने पूछा। ” नहीं, यह पुरस्कार मिलना क्या कम है ? इस पुरस्कार को पाने के लिये लोग अपनी सारी उम्र गुजार देते हैं, पर उन्हें यह पुरस्कार नहीं मिल पाता।”—- गर्व के साथ रोहित ने जवाब दिया। अपने पति की यह बात सुनकर शीला का मुँह लटक गया था। वह मरे मन से बोल उठी— ” इन कागज के टुकड़ों तथा पीतल के पत्तरों से क्या पेट भरता है, पेट तो रोटी से भरता है। क्या तुम्हें मिला यह पुरस्कार इस अभावग्रस्त परिवार का तन ढक सकता है या पेट भर सकता है ?” इतना कहकर वह रसोईघर की तरफ चली गई। पुरस्कृत साहित्यकार कभी तो जाती हुई पत्नी को निहारता, तो कभी पुरस्कार में मिले प्रशस्ति पत्र को उसे लगा जैसे पत्नी द्वारा कहा गया नँगा सच, इस पुरस्कार को भी नँगा कर गया था। Post navigation करिश्मा और भोजवानी को मिला डॉ मनुमुक्त ‘मानव’ विशिष्ट युवा-सम्मान मीडिया में हिंदी का बढ़ता वर्चस्व