पश्चिम ने विश्व की ‘बाजार’ दिया और भारत ने ‘परिवार’ दिया : स्वामी अवधेशानन्द -कमलेश भारतीय जहां पश्चिम ने विश्व को ‘बाजार’ वहीं भारत ने ‘परिवार’ दिया । पश्चिम के देशों और भारत में यही सबसे बड़ा फर्क है, यही अंतर है । यहां संतोष सबसे बड़ा धन है तो विदेश में कभी टेंशन , कभी डिप्रेशन तो कभी कुछ और घेरे रहता है । आज पृथ्वी दिवस पर कहा कि पृथ्वी में रासायनिक जहर घोलना बंद करना चाहिए । पृथ्वी भी हमारी माता है । आज हमारे जीवन जीने के ढंग में जरूर कोई विकृति पैदा हो गयी है । नये सिरे से पुनर्विचार करने का समय है । यह सार रहा आज गुरु जम्भेश्वर विश्विद्यालय के रणबीर सभागार में ‘आओ घर को स्वर्ग बनायें’ विषय पर व्याख्यान देने आए स्वामी अवधेशानन्द का । इनका स्वागत् स्थानीय निकाय मंत्री डाॅ कमल गुप्ता और पूर्व मंत्री सावित्री जिदल के साथ साथ गुजवि के कुलपति प्रो बी आर काम्बोज व कुलसचिव प्रो अवनीश वर्मा ने किया इस अवसर पर नगर के गणमान्य लोगों से सभागार खचाखच भरा हुआ था । स्वामी अवधेशानन्द ने कहा कि जैसे ऋतुएं बदलती हैं वैसे ही त्वरित गति से जीवन भी बदलता जाता है । हमने विज्ञान से समय बचाने के प्रयास किये लेकिन सब ओर यही सुनने को मिल रहा है कि समय नहीं है , क्या करें ? यंत्रों के माध्यम से संवाद साधने से आदमी आदमी के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं । सब कुंठा में या अपरिमित असंतोष से जी रहे हैं । सभी समय का अभाव अनुभव करते हैं । हमारी प्राथमिकताएं बदल गयी हैं । हम कुछ और ही खोज रहे हैं और जीवन खो रहे हैं । जीवन का आनंद खो रहे हैं । हम सब कुछ पाना चाहते हैं लेकिन योग्यता और पात्रता के बिना । उन्मुक्तता और स्वच्छंदता बढ़ती जा रही है । समाज और परिवार और परिवार का बंधन ढीला पड़ता जा रहा है । इसके बावजूद यूक्रेन संकट हो या पाकिस्तान का संकट सब भारत की प्रशंसा करते हैं । स्वामी अवधेशानन्द ने कहा कि कोरोना महामारी ने हमारी वैदिक संस्कृति की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया और तुलसी , योग और जड़ी बूटियों का उपयोग विश्व ने किया । यह हमारी वैदिक संस्कृति ही है जहां अन्न ब्रह्म है , जहां जल देवता है , जहां कुआ पूजन भी होता है और सारा विश्व हमारा कुटुम्ब है । यही भावना पुराने समय से चली आ रही है और इसी को आगे बढ़ाने अपनाने को जरूरत है । इसके बावजूद हमारे जीवन जीने के ढंग में कोई विकृति आ गयी है जिस ओर ध्यान देना जरूरी है । हमारे देश में खासकर हरिद्वार में जब पहली बार वृद्धाश्रम बना तब मेरा मन बहुत विचलित हुआ कि क्या हम मां बाप को भी अपने साथ नहीं रख सकते ? यही नहीं सरस्वती नदी विलुप्त हो गयी । हमारी नदियां प्रदूषित हो गयीं जिन गंगा यमुना में हम नहाते थे , आज इनका पानी नहाने तो क्या आचमन के भी योग्य नहीं रहा । संन्यास की नहीं अच्छे गृहस्थ जीवन की जरूरत है और जहां जिस गांव में हैं , वहीं स्वर्ग बनाने की कोशिश कीजिए । अपने घर लौट जाइए , अपने गांव लौट जाइए और इन्हें स्वर्ग बनाइए । मेरा गांव ही मेरा देश है । बिना यश लिए चुपचाप अपना काम करते रहना । दूसरों के मन को सँभाल कर रखना बहुत बड़ी बात है । कम से कम एक समय का आहार पूरा परिवार एक साथ करे । हमारे घरों से साहित्य गायब होता जा रहा है । यह बहुत दुख की बात है । साहित्य के गायब होने का मतलब विचार गायब हो रहा है । हम विचारशून्य होते जा रहे हैं । पुस्तकें चोरी हो गयीं हों जैसे , अनेक अच्छी पत्रिकायें बंद हो गयीं । विचार ही तो परिंदे हैं , इन्हें दाना डालकर तो देखिए एक बार । हम अपने पुराने संस्कार तक भूल गये जैसे अन्न प्राशन । हमें अपने आहार , निद्रा और अनुशासन की ओर ध्यान देना है । हमें पॉजिटिव नहीं बल्कि यथार्थवादी बनने की जरूरत है । जैसा जीवन है , वैसा स्वीकार करने की जरूरत है तभी हम अपने आपको लड़ाई के लिए तैयार कर पायेंगे । उपदेश नहीं चाहिए । प्रार्थना कीजिए , सूर्य को अर्घ्य दीजिए , तुलसी का विरवा घर में लगाइए और टेंशन व डिप्रेशन से दूर नयी ऊर्जा पाइए । आध्यात्मिक विचार कही खो गये हैं । स्वामी अवधेशानन्द ने कहा कि घर में गीता पड़ी है लेकिन कितनी पढ़ी है ? इस तरह भारतीय संस्कृति को अपनाने से ही हम अपने घर को स्वर्ग बना सकते हैं । बाद में सभी संस्थाओं की ओर से कैलाश चौधरी ने आभार व्यक्त किया । Post navigation युवा नेताओं का कांग्रेस से मोह भंग ? गांव बुढा खेड़ा…मृतकों के प्रत्येक परिवार को 50-50 लाख रूपये की सहायता और स्थाई सरकारी नौकरी दी जाए : सैलजा