-कमलेश भारतीय

राजनीति में असहिष्णुता का बढ़ना बहुत गंभीर चिंता का विषय है । पहले पश्चिमी बंगाल के विधानसभा चुनाव में असहिष्णुता चरम पर देखने को मिली । बेशक राज्यपाल इस पर ट्वीट भी करते रहे और शपथ ग्रहण समारोह के बाद भी ममता बनर्जी को चेताया था लेकिन ममता राज में यह असहिष्णुता कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है । न भाजपा में तो न तृणमूल कांग्रेस में सहिष्णुता है । दोनों तरफ है आग बराबर लगी हुई । राज्यपाल बार बार चेता रहे हैं पर बेअसर है सारी बातें , नसीहतें ।

अभी दिल्ली में भाजयुमो के कार्कर्त्ताओं ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास पर प्रदर्शन करते करते सारी हदें पार कर दीं । सीसीटीवी कैमरे तोड़कर अंदर घुस गये और मनीष सिसोदिया का आरोप है कि पुलिस मूकदर्शक बनी देखती रही । भाजयुमो के अध्यक्ष तेजस्वी सूर्य के आरोप हैं कि केजरीवाल ने कश्मीर फाइल्ज पर हास्यास्पद बयान देकर हमारी भावनाओं को आहत किया है और इससे पहले राममंदिर निर्माण को लेकर भी टिप्पणियां कीं । वे कोई मौका नहीं छोड़ते हमारी भावनाओं को ठेस पहुंचाने का । क्या इससे आपको या किसी को भी मुख्यमंत्री के आवास पर तोड़फोड़ की इजाजत मिल जाती है या लाइसेंस मिल जाता है ? नहीं । विरोध नॉर्दर्न करना मौलिक अधिकार है लेकिन तोड़फोड़ करना एक अपराध है ।।इन पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए और प्रधानमंत्री मोदी को भी ऐसी घटनाओं की निन्दा करनी चाहिए । यदि पश्चिमी बंगाल में हिंसा का मार्ग उचित नहीं तो दिल्ली में कैसे उचित कहा जा सकता है ?

बेशक यह आलोचना की जा रही है कि पंजाब में मिली हार को भाजपा पचा नहीं पा रही जिसका बदला दिल्ली में केजरीवाल के आवास पर हमला करके लिया जा रहा है । मुख्यमंत्री भगव॔त मिन और दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भाजयुमो के इस कदम की निंदा की है । कोई भी राजनीतिक दल हो , सबको इस पर अंकुश लगाना होगा नहीं तो यह आग बहुत दूर तक लगेगी जिसे नियंत्रित करना मुश्किल हो जायेगा । हम तो यही पेश रहे हैं -ये आग कब बुझेगी ?
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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