मथुरा, वृन्दावन और बरसाने की होली को देखने के लिए तो विदेशों से पर्यटक भी आते हैं
बरसाने की लट्ठमार होली तो, हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर खेली जाने वाली होली की सबसे ख़ास बात इसका संदेश है कि ‘जो रब है वही राम’
अनौखा गांव जहां हजारों सालों से चली आ रही परंपरा, शीतला अष्टमी के दिन मानते हैं होली पर्व
पटना में एक अलग तरीके का होली 
लोगों ने एक दूसरे पर चप्पल फेक कर होली मनाई

भारत सारथी/ अशोक कुमार कौशिक

होली रंगों भरा त्योहार है. इसमें तरह -तरह के रंग होते है. यह त्योहार हर जगह अपने अंदाज से मनाया जाता है। मथुरा, वृन्दावन और बरसाने की होली को देखने के लिए तो विदेशों से पर्यटक भी आते हैं।

होली को लोग आपसी भाईचारे का त्योहार भी मानते हैं।इस दिन गले मिलकर एक दूसरे को बधाई देकर आपसी द्वेष को लोग खत्म कर देते हैं। होली को शहर हो या गांव हर जगह के लोग अपने खास अंदाज से मानते हैं। बरसाने की लट्ठमार होली तो पूरे देश में विख्यात है, मगर आज हम जिस अद्भु्त होली की बात कर रहे हैं. वह है बाराबंकी स्थित प्रसिद्ध सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की मजार पर खेली जाने वाली होली.

एक तरफ राजनेता धार्मिक उन्माद फैलाकर, लोगों में विद्वेष फैला कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं और पूरे देश को धर्म के नाम पर बांटा जा रहा है, तो वहीं दूसरी ओर समाज की कुछ शक्तियां ऐसी भी हैं जो इनके मंसूबों पर पानी फेर रही हतो। हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद में हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक प्रसिद्द सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर खेली जाने वाली होली का जहां पर क्या जाति क्या धर्म सबकी सीमाएं टूटती नज़र आती तो। यहां हिन्दू-मुस्लिम एक साथ होली खेलकर, एक-दूसरे के गले मिलकर होली की बधाई देते है।

हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर खेली जाने वाली होली की सबसे ख़ास बात इसका संदेश है कि ‘जो रब है वही राम’। इसकी पूरी झलक इस होली में साफ़-साफ़ दिखाई देती है। देश भर से हिन्दू, मुसलमान और सिख यहां आकर एक साथ हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर होली खेलते हैं और एकता का संदेश देते हैं। रंग, गुलाल और फूलों से विभिन्न धर्मों द्वारा खेली जाने वाली होली देखने में ही अद्भुत नज़र आती है। सैंकड़ों सालों से चली आ रही यहां होली खेलने की परंपरा आज के विघटनकारी समाज के लिए आदर्श प्रस्तुत करती है।

हाजी वारिस अली शाह की मजार का निर्माण उनके हिन्दू मित्र राजा पंचम सिंह ने कराया था और इसके निर्माण काल से ही यह स्थान हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश देता आ रहा है। यहां आने वाले जायरीनो में जितने मुस्लिम हैं, उससे कहीं ज्यादा हिन्दू जायरीन आते हैं। कहीं-कहीं तो हिन्दू भक्त इन्हें भगवन कृष्ण का अवतार भी मानते हैं और अपने घरों और वाहनों पर श्री कृष्ण वारिस सरकार का वाक्य भी अंकित कराते हैं।

कुछ भी हो मगर धर्मं की टूटती सीमाएं यहां की होली में देखना एक ताज़ा हवा के झोंके सामान है. इस अनूठी होली को दिल्ली राज्य से लगातार 30 वर्षों से खेलने आ रहे सरदार परमजीत सिंह ने बताया कि वह होली पर अपने घर में कैद हो जाया करते थे, मगर 30 साल पहले जब यहां होली खेलने आये तो यहां के बासन्ती रंग में रंग गए, जो शायद जीवन भर भी उतरने वाला नहीं है। वहीं मिर्जापुर से होली खेलने आई महिला ने बताया कि वारिस अली शाह के संदेश से इतना प्रभावित हुई कि वह अब हमेशा के लिए यहां होली खेलने आती हैं।

अनौखा गांव जहां हजारों सालों से चली आ रही परंपरा, शीतला अष्टमी के दिन मानते हैं होली पर्व
हर त्यौहार का अपना एक रंग होता है, जिसे आनंद या उल्लास कहते हैं। होली को रंगों के त्यौहार के रूप में मनाते हैं। होली का त्यौहार फाल्गुन मास के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसमें एक और रंगों के माध्यम से संस्कृति के रंग में रंगकर सारी भिन्नताएं मिट जाती हैं और सब बस एक रंग के हो जाते हैं। लेकिन एक गांव ऐसा भी हैं जहां, 400 सालों से धुलंडी नहीं मनाई जाती, जी हां हम बात कर रहे हैं गणेश्वर के डूडू महोत्सव की। आपको बता दें कि यहां धुलंडी के दिन रायसल महाराज का राजतिलक हुआ था। इस दिन लोग नए वस्त्र पहनकर पहाड़ी पर स्थित उनकी मूर्ति के दर्शन करने जाते हैं। ये महोत्सव सात दिन तक चलता हैं। जिसमें करीब 15 गांवों के लोग प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हैं। यहां पर ग्रामीण राजा को ग्राम देवता के रूप में पूजते हैं। धुलंडी पर विशेष पूजा होती है।

 दोपहर को शुरू होता है डूडू का मेला
ग्रामीणों  के अनुसार मेले में कुश्ती दंगल, निशानेबाजी, ऊंट व घुड़दौड़ जैसी कई प्रतियोगिताएं होती हैं। यह मेला शीतलाष्टमी तक चलता है।

उजड़े हुए गांव भोजपुर्या को वर्तमान गणेश्वर के रूप में बसाया
प्रसिद्ध हड़प्पा-मोहन जोदड़ो सभ्यता के समकालीन प्राचीन ताम्रयुगीन सभ्यता से जुड़े गणेश्वर में धुलंडी पर होने वाला डूडू महोत्सव भी विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि विक्रम संवत 1444 में जन्मे बाबा रायसल महाराज ने उजड़े हुए गांव भोजपुर्या को वर्तमान गणेश्वर के रूप में बसाया था। उनके राजतिलक के दिन को गणेश्वर में डूडू महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। रंगों से दूर रहकर इस दिन यहां के लोग उनके चौसले में प्रतिमा के दर्शन कर आशीर्वाद लेते हैं।

शीतला अष्टमी के दिन खेलते हैं होली, एक दूसरे को लगाते रंग
गणेश्वर में शीतला अष्टमी को उमंग, मस्ती व उत्साह के साथ लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। यहां के रंगोत्सव को देखने भी बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं। पहाड़ी पर स्थित बाबा रायसल महाराज के दर्शनों के लिए कतार लगती है। शाम को पवित्र गर्म पानी के झरने में स्नान करने के बाद होली का पर्व समाप्त होता है।

बिहार के पटना में एक अलग तरीके का होली देखने को मिला है। यहां पर लोगों ने एक दूसरे पर चप्पल फेक कर होली मनाई है। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।

ऐसे में मथुरा से लेकर वाराणसी तक लोगों द्वारा अलग-अलग ढ़ंग से होली मनाया जा रहा है। कहीं गुलाल लगाकर तो कहीं नाच-गाकर लोग एक दूसरे को होली की बधाई देकर इस पर्व को मना रहे हैं। ऐसा ही एक नजारा पटना के एक वाटर पार्क में देखने को मिला है, जहां होली के जश्न के दौरान लोग एक-दूसरे पर चप्पल फेंकते हुए दिखाई दिए हैं। इस सेलिब्रेशन का वीडियो खूब वायरल हो रहा है और लोग इसे बहुत पसंद कर रहे हैं।

क्या दिखा वीडियो में
वीडियो में यह देखा गया है कि लोग रंग-बिरंगे रंगों में डूबे हुए हैं और पार्क में घूम रहे हैं। इसके साथ कई और लोगों को वाटर पार्क में एक दूसरे पर चप्पल फेंकते दिखाई दे रहे हैं। दोनों तरफ से चप्पलों का फेकना जारी है और लोगों को ऐसा करने में खूब मजे मिल रहे हैं। वीडियो में यह देखा गया है कि इस चप्पल वाले होली में ज्यादातक नौजवान ही शामिल हैं।

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