अब भाजपा में नंबर दो बन सकते हैं आदित्यनाथ योगी?यूपी में इतिहास की छाती पर चढ़ बनाया राजनीतिककर्नाटक, हरियाणा, राजस्थान से लेकर त्रिपुरा की कई विधानसभा सीटों पर उनका दबदबा अशोक कुमार कौशिक अब ये महत्वपूर्ण नहीं रह गया कि योगी फिर से यूपी के मुख्यमंत्री बनेंगे। बल्कि बात इससे आगे की उठने लगी कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से आगे योगी के लिए क्या है? जब यूपी चुनाव के नतीजे आए तो साफ हो गया कि योगी आदित्यनाथ का गुरु उच्च गृह में है । योगी ने इतिहास की छाती पर चढ़कर अपने पराक्रम का लोहा मनवा लिया। 2017 की तुलना में सीटें भले कुछ कम हुईं, लेकिन वोट बढ़ गए। अब ये महत्वपूर्ण नहीं रह गया कि योगी फिर से यूपी के मुख्यमंत्री बनेंगे । बल्कि बात इससे आगे की उठने लगी कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से आगे योगी के लिए क्या है? इस सवाल का उत्तर जानने के लिए हमें दोनों के साथ वाली उस तस्वीर को देखना होगा, जो करीब चार महीने पहले की है। वो तस्वीर लखनऊ के राज भवन में ली गई थी । ये तस्वीर तब की, जब इस तरह की खबरें आ रही थीं कि बीजेपी में दिल्ली और लखनऊ में दूरी बढ़ गई है। मुख्यमंत्री योगी के कंधे पर प्रधानमंत्री मोदी का हाथ। मुख्यमंत्री योगी को गुरुमंत्र देते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। प्रधानमंत्री मोदी ने जो कुछ समझाया, उसे योगी ने ऐसे समझ लिया कि विपक्ष मुंह ताकता रह गया और यूपी बोल उठी- ये दिल मांगे योगी, क्योंकि यूपी के लिए योगी ही हैं सबसे उपयोगी। समझिए योगी का व्यक्तित्व और सियासतअब इसी बात से एक सवाल और निकलता है। योगी यूपी के लिए उपयोगी हैं या पीएम मोदी के उप योगी हैं। मुख्यमंत्री योगी अपनी राजनीति का रकबा उत्तर प्रदेश तक सीमित रखेंगे या बीजेपी उनका बड़ा इस्तेमाल करेगी। अब तक बीजेपी में पीएम मोदी का नंबर 2 औपचारिक रूप से राजनाथ सिंह और अनौपचारिक रूप से अमित शाह को माना जाता रहा है। इन दोनों के बीच क्या नंबर 2 पर पब्लिक की स्वाभाविक पसंद योगी हो सकते हैं। इसका जवाब जानने के लिए आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के व्यक्तित्व और सियासत को समझिए। मोदी और योगी में ये है सेम कनेक्शनमोदी भी संयोग से ही गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे और योगी भी संयोग से ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। (यह दीगर बात है दोनों ने हठ के द्वारा ही मुख्यमंत्री पद पाया था) मोदी ने तो बीस साल पहले ही साबित कर दिया था कि वो जनता का दिल जीतना जानते हैं। अब योगी ने भी साबित कर दिया है। मोदी की तरह योगी भी अपने फैसलों पर आक्रामक तरीके से डटना जानते हैं। दोनों नेता आलोचना की रत्ती भर परवाह नहीं करते हैं। मोदी की तरह योगी की भी छवि एक सख्त प्रशासक और ईमानदार नेता की है। मोदी की तरह ही योगी भी अब देश की जनता के बीच पॉपुलर नेता बन गए हैं। और इन सबके आगे योगी आदित्यनाथ का गेरुआ भेष, उनकी सियासत में संन्यास का पवित्र रंग भी घोल देता है। इसके साथ ही किसी बड़े पूंजीपति के साथ उनका नाम अभी तक नहीं जुड़ा है जिससे उनकी छवि मोदी जैसी न बनकर साफ सुथरी है। संन्यासी के आगे सबका सिर झुकता हैहिंदुस्तान में सत्ता को गाली भले दी जाए, संन्यासी के आगे तो सबका सिर ही झुकता है। बीजेपी के बड़े-बड़े नेता और राज्यों के मुख्यमंत्री इसी भाव से योगी के आगे नतमस्तक हो जाते हैं। शिवराज चौहान से लेकर गजेन्द्र सिंह शेखावत तक की ऐसी कई तस्वीरें हैं। योगी आदित्यनाथ गोरक्ष मंदिर के महंत हैं। इस नाते वे नाथ संप्रदाय के सर्वेसर्वा हैं। इस संप्रदाय के लाखों लोग देश भर में फैले हुए हैं। कर्नाटक, हरियाणा, राजस्थान से लेकर त्रिपुरा की कई विधानसभा सीटों पर उनका दबदबा है। योगी का ये कनेक्शन अब राजनीति में उनके लिए बोनस बन गया है। गुजरात के सीएम रहते हुए ही नरेंद्र मोदी ब्रांड बन चुके थे। तब उनके चेहरा हिंदुत्व का था। फिर गुजरात के विकास मॉडल को देश भर में प्रचारित कर मोदी ने अपने लिए एक नई छवि गढ़ ली। जिसमें गरीबों के मसीहा से लेकर पिछड़ों के हमदर्द तक का भाव समाहित है। मोदी की राह पर योगी भी हैंलगातार पांच बार गोरखपुर का सांसद बनने के बाद जब उन्होंने यूपी की सत्ता संभाली तब तक वे सिर्फ उग्र हिंदुत्व के प्रतीक थे। उनकी छवि एक के बदले दस वाली थी। हालांकि पांच सालों तक सरकार चलाने के बाद अपने कामकाज के आधार पर उन्होंने अपनी इमेज बुलडोजर वाले बाबा की बना ली है। राज काज चलाने का योगी का ये बाहुबली मॉडल खूब चर्चा में हैं। मध्य प्रदेश और असम जहां बीजेपी की सरकार है, वहां के सीएम इसकी नकल कर रहे हैं। पीएम मोदी को बताया था राजनीति गुरूपिछले कई सालों से यूपी के हर चुनाव में कानून व्यवस्था बड़ा मुद्दा रहा है। सत्ता में रहने वाली पार्टी को हर बार जनता का प्रकोप झेलना पड़ा, लेकिन योगी ने तो इस बार इसी मुद्दे पर वोट बटोर लिए। दैनिक हिंदुस्तान के ग्रुप एडिटर शशि शेखर कहते हैं मुझे खुद योगी ने कहा था कि मेरे दो गुरू हैं। मेरे आध्यात्मिक गुरू अवैद्यनाथ जी हैं और राजनैतिक गुरू पीएम मोदी। मोदी ने अपनी छवि विकास पुरुष की बनाई है तो योगी बेहतर कानून व्यवस्था के ब्रांड बन गए हैं। मोदी-योगी के नारे लगते हैं साथयूपी में बीजेपी के हर मंच से मोदी और योगी के नारे साथ-साथ लगते हैं। ये महज़ संयोग नहीं हैं। यूपी में बीजेपी की जीत के पीछे राशन और शासन को मूल मंत्र माना जा रहा है। राशन मोदी का तो शासन योगी का । सीएसडीएस के सर्वे बताते हैं कि यूपी में जिन लोगों ने बीजेपी को वोट दिया, उनमें से 41 प्रतिशत ने सिर्फ योगी के लिए ऐसा किया। उत्तराखंड में भी बीजेपी की सरकार बन रही है, लेकिन जीत मोदी के नाम पर हुई। सीएसडीएस के सर्वे की मानें तो 40 फीसदी लोगों ने मोदी के नाम पर बीजेपी को वोट दिया । तो क्या मान लें कि मोदी और योगी वाला नारा देश भर में चलेगा। योगी भी नंबर टू हो सकते हैंराजनीति पर बारीक नजर रखने वालों की राय बंटी हुई है । वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश शुक्ला कहते हैं बीजेपी में नंबर 1 से लेकर 100 तक सिर्फ़ मोदी ही हैं। अभी तो नंबर टू की कोई जरूरत नहीं है। वहीं एक और वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि संगठन और सरकार के लिहाज से तो अमित शाह ही नंबर टू हैं, लेकिन जनता की पसंद के हिसाब से तो योगी भी नंबर टू हो सकते हैं। नरेन्द्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की केमिस्ट्री भी गजब की है ।केंद्र की योजनाएं अगर कहीं पूरी निष्ठा से लागू हुई हैं तो वो योगी का प्रदेश है। योगी नई बुलंदी पर हैंडबल इंजन वाली सरकार का सबसे बढ़िया प्रयोग। एक केमिस्ट्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की है। गुजरात में इसकी नींव पड़ी और अब देशभर में मोदी और शाह की जोड़ी का प्रभाव है। संगठन से लेकर सरकार चलाने तक। इसीलिए तो शाह को मोदी का चाणक्य कहा जाता है । सैंतीस सालों के बाद यूपी में सरकार बरकरार रखने का रिकॉर्ड बनाकर योगी अब एक नई बुलंदी पर हैं । उनकी गिनती बीजेपी के टॉप तीन नेताओं में होती रही है। मोदी के बाद वे पार्टी के सबसे बड़े स्टार कैंपेनर भी हैं।अमित शाह कह चुके हैं कि 2022 में योगी की जीत ही 2024 में मोदी की जीत है। बाईस वाली जीत तो मिल गई, क्या 24 जीतने के बाद योगी का राज योग भी बदल सकता है। 24 के चुनाव क्या योगी के नेतृत्व में ही लड़े जाएंगे यह सवाल राजनीतिक क्षेत्र में उछलने लगा है, क्योंकि नरेंद्र मोदी ने जो उम्र को लेकर लाल कृष्ण आडवाणी को सत्ता से दूर किया था अब वही बात उनके ऊपर भी लागू हो सकती है। Post navigation 15 मार्च विश्व उपभोक्ता दिवस : जागरूक रहना ही उपभोक्ता का सबसे बड़ा शस्त्र संवैधानिक पदों पर नियुक्तियों का राजनीतिकरण