डॉ मीरा सिंह सहायक प्राध्यापक

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कहीं ना कहीं हमें यह संकेत देता है कि वर्तमान समय में नारी को किसी भी स्तर पर पुरुष की तुलना में कम नहीं आंका जा सकता। महिला दिवस के उपलक्ष में महिलाओं के प्रति सकारात्मक सोच के साथ उनकी प्रतिष्ठा को बढ़ाना व उपलब्धियों को समाज में अहम योगदान मानते हुए महिलाओं के उत्थान और उनके अधिकारों के प्रति समाज को जागरूक करना है। वर्तमान में महिलाओं ने हर क्षेत्र में चाहे वो राजनीतिक क्षेत्र हो या फिर शिक्षा स्वास्थ्य खेल एवं रक्षा प्रत्येक क्षेत्र में नारी ने अपनी अद्भुत प्रतिभा का परिचय दिया है वैसे तो पूरी सृष्टि ही स्त्री है सृष्टि के विभिन्न रूपों में नारी ही व्याप्त है। नारी भावों की अभिव्यक्ति है। पारंपरिक दर्शन में बेशक पुरुष प्रधान समाज दिखता हो किंतु भारतीय दर्शन और संस्कृति की मूल अवधारणा में नारी ही शक्तिस्वरूप है। आज के दिन हम सभी को यह संकल्प जरूर लेना चाहिए कि हम महिलाओं के प्रति दिल में सम्मान रखते हुए उनके अधिकारों की रक्षा करते हुए उन्हें हर क्षेत्र में समान अवसर मुहैया करवाएंगे।

भारतीय समाज में आज महिला सशक्तिकरण की लहर चल रही है, लेकिन यह लहर आज की नहीं बल्कि एक अर्से से भारतीय समाज का हिस्सा है आजादी की लड़ाई में कई भारतीय वीरांगनाओ ने अपना योगदान दिया और यह साबित किया कि वे भी इस समाज का एक सशक्त एवं अहम हिस्सा हैं भारतीय संविधान में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए अधिकार दिए हैं। मौलिक अधिकार भाग-3 (कानून के समक्ष अनुच्छेद 14-समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (3)- महिलाओं और बच्चों के हितों की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान है। समान रोजगार के अवसर के लिए अनुच्छेद 16 में अधिकार दिया है। महिलाओं की गरिमा के लिए मौलिक कर्तव्य का अनुच्छेद 51 ए (ई) में, पुरुषों और महिलाओं के लिए समान रूप से आजीविका के पर्याप्त साधन के अधिकार, निदेशक सिद्धांत भाग 4-अनुच्छेद 39 (ए) में दिया गया है। समान काम के लिए समान वेतन का अधिकार अनुच्छेद 39 (डी)- अनुच्छेद 243 डी (3) में दिया गया है। महिलाओं के लिए पंचायतों और नगरपालिकाओं में सीटों की कुल संख्या के 1/3 आरक्षण का अधिकार 243टी (3) में दिया है। 

एक सच्चाई यह भी है कि डब्ल्यूईएफ ग्लोबल जेंडर रिपोर्ट 2020 के अनुसार भारत महिलाएं राजनीतिक सशक्तिकरण के संदर्भ में 18वें स्थान पर है।

महिलाओं को आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से सुरक्षित करना किसी भी देश के सांस्कृतिक और सामाजिक पहलू पर निर्भर करता है। समाज विकास में महिलाओं की भागीदारी का स्तर यौन-हिंसा, लिंग-भेदभाव और निरक्षरता जैसी सामाजिक बाधाओं और सांस्कृतिक परिवेश पर आधारित है। जानकर हैरानी होगी कि वर्ष 2011 के एक अध्ययन में पाया गया कि 24 प्रतिशत भारतीय पुरुषों ने जीवन के किसी न किसी बिंदु पर यौन हिंसा की है। अमूमन माना जाता है कि महिलाएं घरेलू कार्यों का निर्वहन करने के लिए ही हैं। यही कारण है कि आज भी बहुत सी जगह ऐसी हैं जहां महिलाओं की निरक्षरता और नेतृत्व कौशल की कमी के कारण महिलाओं की क्षमता को सीमित कर दिया जाता है।

राष्ट्रीय स्तर पर पुरुषों की साक्षरता दर  84.7 प्रतिशत जबकि महिलाओं की साक्षरता दर 70.3 प्रतिशत है। महिला साक्षरता दर में कमी का सीधा सा मतलब है कि भारत का धीमा विकास क्योंकि शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है जो राष्ट्र विकास के हर क्षेत्र को प्रभावित करता है शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जो दुनिया को बदल सकता है। महिलाएं भी जितनी अधिक शिक्षित होंगी,उनकी भागीदारी उतनी ही अधिक होगी। यह समय की मांग है कि हमे महिलाओं की सामाजिक,आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति में और सुधार के लिए पर्याप्त उपाय करने चाहिए ताकि वे उत्साह एवं आत्मविश्वास के साथ खड़ी हो सकें और वे समानता के साथ देश को सही दिशा में ले जा सकें।

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