-कमलेश भारतीय

युद्ध , चुनाव और प्रेम में सब कुछ जायज है । अब चुनाव के दिन हैं । प्रेम के दिन एक सप्ताह पहले बीत चुके । तब भी नेताओं में कोई प्रेम की पींगें नहीं थीं । हां , सचिन पायलट ने , अखिलेश यादव ने प्रेम विवाह जरूर किये थे । इधर तो चुनाव प्रचार में युद्ध से भी ज्यादा हमले भाषा से किये जा रहे हैं , सर्जिकल स्ट्राइक्स की जा रही हैं । कोई कमी नहीं छोड़ी जा रही बल्कि ऐसा लगता है कि होली के रंग भी फेंके जा रहे हैं और रंगों की बजाय कीचड़ जैसा कुछ फेंका जा रहा है । जिस भाषा का उपयोग किया जा रहा है वह शोभनीय तो नहीं कहा जा सकता । पहले पश्चिमी बंगाल के चुनाव में भी कुछ इसी ही भाषा देखने को , सुनने को मिली थी । क्या किसी प्रधानमंत्री को ‘दीदी , ओ दीदी ‘ नारे लगाना शोभा देता है ? नहीं अंर बंगाल की जनता ने इसका जवाब दिया अपनी बेटी को ही दोबारा चुन कर , सत्ता देकर ।

अब उत्तर प्रदेश में फिर वही भाषा का उपयोग किया जा रहा है । पहले सपा की लाल टोपी को खूनी रंग से रंगी कहा गया और अब कहा जा रहा है कि जितने भी दंगे हुए या बम ब्लास्ट हुए वे बम विस्फोट साइकिल पर रख कर ही किये गये । इसमें साइकिल चुनाव चिन्ह के चलते सपा पर निशाना साधा जा रहा है , यह राजनीति से बिल्कुल अनजान आदमी भी समझ सकता है । बम विस्फोट और साइकिल और सपा का संबंध जोड़ने की कोशिश की जा रही है । ये भी सोच हमारे प्रधानमंत्री की ही है । दूसरी ओर अखिलेश यादव कह रहे हैं कि चौथे चरण तक भाजपा के बूथों में भूत नाचते नजर आयेंगे । अब यह कौन सी भाषा है दोनों तरफ ? पहले भी पिछले विधानसभा चुनाव में ऐसी ही भाषा बढ़ते बढ़ते गुजरात के गधों तक बहुत अशोभनीय स्तर तक पहुंच गयी थी । पंजाब में भी भाषा कोई बहुत अच्छे स्तर की नहीं रही । कभी मुफ्त योजनाओं को कोसा तो कभी केजरीवाल को आतंकवादी बताया और बदले में केजरीवाल ने खुद को स्वीट आतंकवादी’ कहा ।

सबसे खूबसूरत टिप्पणी आई जिसमें राहुल गांधी के बारे में इतनी खराब बात कही कि युवा कांग्रेस ने हरियाणा तक में विरोध प्रदर्शन किये । यह टिप्पणी ऐसी कि जिस पर प्रियंका गांधी ने भी प्रतिक्रिया दी । इस तरह के स्तर तक नहीं जाना चाहिए । यह बहुत दुखद है । इसकी ओर सभी राजनीतिक दलों को विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए ।
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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