हम किस देश के वासी……. भारत या इंडिया ?

-कमलेश भारतीय

बजट पर बहस के दौरान कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि देश को दो हिस्सों में बांट रखा है इस बजट के अनुसार । किसी ने कहा कि यह देश द्रोणाचार्य व अर्जुन यानी राजाश्रय लोगों का है न कि एकलव्य यानी छोटे , गरीब लोगों का । अब सहज ही सवाल उठा मन में कि हम किस देश के वासी हैं ? वह देश जिसे भारत कहा जाता है या वह जिसे अंग्रेजों ने नाम दिया इंडिया या वह जिसे अंग्रेजों से पहले शासकों ने कहा हिंदुस्तान? हम किस देश के वासी हैं ? राहुल के अनुसार यह बजट गरीब और अमीर में खाई को और बढ़ायेगा । राहुल ने तो यहां तक आरोप लगाया कि उसी राजतंत्र की वापसी हो रही है जिसे कांग्रेस ने स्वतंत्रता के बाद तत्काल बाहर का रास्ता दिखाया था । यही राजतंत्र अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता पर हाॅवी हो गया है । इसीलिए कुछ उद्योगपतियों की तूती बोल रही है और उनकी मनचाही हो रही है ।

राहुल का कहना है कि नयी सत्ता में बस एक राजा की आवाज गूंजती है और उसे असहमति की आवाज पसंद नहीं ।
खैर । भारत और इंडिया में शुरू से बहुत फर्क है । गरीब व छोटे वर्ग की भाषा भी अलग है और हिंदी राष्ट्रभाषा होकर भी सत्ता से व सम्मान से बाहर है । हिंदी दिवस मनाये जाने की जरूरत क्यों पड़ती है हर साल ? वेलेंटाइन कहां से आया ?

इंडिया तो हमारा गुलाम देश था और यह हमारे भारत से अलग हम पर हाॅवी क्यों है आज तक ? हम भारतवंशी क्यों न बन सके ? स्कूलों काॅलेजों की शिक्षा अंग्रेजी में बढ़ती गयी और हिंदी व भारतीय भाषायें बाहर होती गयीं । क्यों ? एक भारत है जो फुटपाथ पर सोता है और एक इंडिया है जो राजपथ पर सवारी पर निकलता है । उपकार फिल्म के एक गाने में मनोज कुमार ने दोनों भारत व इंडिया के दर्शन करवाये थे और पूरब व पश्चिम में भी ।

हमारा भारत आज भी बेरोजगारी , अशिक्षा , अंधविश्वास से जूझ रहा है और इंडिया अंग्रेजी के बल पर फल फूल और फैल रहा है । आईटी में सिमट गया है । तख्ती पर क, ख, ग लिखने वाली पीढ़ी जा चुकी कब की । अब तो ‘रेन रेन गो अवे’ गाने वाली पीढ़ी है हमारे सामने । हमारे बचपन के गीत , कविताएं हम तक ही रह गयीं और रह गयीं नानी की कहानियां । दादी के नुस्खे और हमारी देसी बातें । चौपालों पर रौनक घट रही और होटलों में मसाज बढ़ रहा । मंदिरों को भी पर्यटन केंद्र बनाया जा रहा है । कहां है हमारा भारत ? बजट भी इस बात का गवाह कि इंडिया बढ़ रहा है और बढ़ता जा रहा है ।

स्वदेशी जागरण मंच जैसी संस्थाएं कुछ वापसी ला रही हैं । हमारी संस्कृति की ओर कदम बढ़ा रही हैं । चलो कुछ पाॅजिटिव भी हो रहा है और शुभ भी हो रहा है । धार्मिक आयोजन भी बाजार की भेंट चढ़े जा रहे हैं । इनकी सादगी बनाये रखने की जरूरत है ।
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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