रेवाड़ी,30 जनवरी (पवन कुमार)I जहां एक तरफ जनता अपने वार्ड में सफाई को लेकर परेशान है,वहीं अधिकांश पार्षद भी नगर परिषद् कि मनमानी को लेकर परेशान है I वार्डवासी अपनी परेशानी कि गुहार पार्षद से करता है और पार्षद नगर परिषद् से,पर अब हालात ऐसे है कि जन प्रीतिनिधि उर्फ़ पार्षदों से जनता रुस्ट होती जा रही है और पार्षदों को ना माया मिली ना राम, फिर भी कहने को विवश है जय श्रीराम I अगर पार्षदों के साथ नगर परिषद् का यही रवैया रहा तो वह दिन दूर नहीं की पार्षदों को छुप -छुपकर घर से निकलना पड़ेगा यह सोच कर कि कहीं कोई देख ना ले I

नगर परिषद् का नये चुनाव के बाद पहला साल ही है अभी से पार्षद नगरपरिषद् के खिलाफ होते नज़र आ रहे है और पांच साल पूरे होने तक तो पार्षद यह कहने को विवश हो जायेगे कि मैं पार्षद नहीं I नगर परिषद् कि मनमानी कोई नई बात नहीं, पर पार्षदों कि इतनी दुर्दशा होगी कि वह बगावत का रुख अपनायेगे,वह भी इतना जल्दी की ,स्वयं पार्षदों ने भी नहीं सोचा I अगर जनता के बीच पार्षदों को अपनी आना,बान और शान को बचाना होगा तो समय रहते उन्हें किसी निर्णय पर पहुंचना होगा अन्यथा उनकी अपने वार्ड में जो शाख है आगे रहेगी या नहीं कहा नहीं जा सकता I

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है,जब बात नहीं सुनी जाती तो,या तो उसका डट कर मुकाबला करते है या फिर भूख हड़ताल पर बैठते है या फिर अपने पद से इस्तीफा दे देते है I पार्षदों के पास तीनों विकल्प खुले है,जिसे चाहे अपना सकते है I अब देखना है कि पार्षदों में कितनी एकता है,क्या वह एकजुट होकर अपनी आवाज को बुलंद कर बगावत का रुख अपना सकते है, ऐसा नहीं लगता, हां वह नैतिकता के आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे दे सकते है और दे भी देना चाहिए, ताकि उनकी जनता के बीच छवि बरकरार रह सकते है I

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