जब पता चला कि रैली फ्लॉप है,लोग आए नही हैं तो  साहेब ने यह खेल रचा। 
सड़क मार्ग से जाने का प्रोग्राम ही नहीं था
फिर अचानक बनाए गए तय रुट से अलग रुट लिया और जानबूझकर हंगामा खड़ा कर ख़ुद की तरफ फोकस कर डाला। 
क्या पंजाब में राष्ट्रपति शासन की तैयारी है?
बिका हुआ और डरपोक मीडिया तो है ही इस नौटंकी को हंगामेदार बना देने के लिए ।
26 अप्रैल 2009 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह गुजरात के अहमदाबाद में जूता फेंका गया था
1967 में उड़ीसा की रैली में इंद्रा गांधी को नाक पर पत्थर मार घायल किया था

अशोक कुमार कौशिक

 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक और इवेंट कर दिया। पंजाब में फिरोजपुर की सभा रद्द करते हुए लौटे और एक अधिकारी को कह दिया कि मुख्यमंत्री चन्नी को संदेश दे देना कि मैं जिंदा लौट आया। मोदी फिरोजपुर जा रहे थे। तय रास्ता बदल दिया। सड़क मार्ग से जाते हुए हुसैनीवाला फ्लाईओवर पर 15-20 मिनट रुक गए और लौटने के बाद कह दिया कि मैं जिंदा लौट आया। अब राजनीति हो रही है। फिरोजपुर में मोदी की सभा थी। कुर्सियां खाली पड़ी थीं। लोगों में कोई उत्साह नहीं था। बठिंडा एयरपोर्ट से मोदी ने रास्ता बदला और हुसैनीवाला फ्लाईओवर पहुंच गए। वहां रास्ते पर किसानों ने रास्ता जाम कर रखा था। अब जो सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो रहे हैं उसमें दावा जताया जा रहा है कि रास्ता रोकने वाले भाजपा के लोग ही थे। अब आशंका प्रकट की जा रही है कि इस बहाने पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाया जाएगा।

भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ, जब प्रधानमंत्री को इस तरह कहीं जाते समय रास्ते में रुकना पड़ा और लौटना पड़ा। नरेन्द्र मोदी देश के सोलहवें प्रधानमंत्री हैं। उनसे पहले 15 प्रधानमंत्री हो चुके हैं। किसी के साथ भी ऐसा नहीं हुआ। मोदी के साथ हुआ, क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद देश की तासीर के साथ नाता तोड़ लिया है। किसान आंदोलन को इतनी जल्दी भुलाया नहीं जा सकता, जो पंजाब से ही शुरू हुआ था। उस आंदोलन को कुचलने के लिए क्या-क्या हुआ, कौन भूल सकता है? पंजाब के किसानों ने रास्ता रोक दिया था। 

अब राजनीति हो रही है। मोदी कहते हैं, मैं जिंदा लौट आया। कैसा भयानक बयान है। मोदी चाहते तो फ्लाईओवर पर रुकने के बाद रास्ता रोकने वालों के साथ बात कर सकते थे। वे मोदी को मारने के लिए नहीं आए थे। अगर मोदी ऐसा करते तो स्टार बन जाते। उन्हें फिरोजपुर की बजाय वहीं सभा कर लेनी थी। लेकिन डर। प्रधानमंत्री होने के बावजूद डर। फिर मुख्यमंत्री को संदेश पहुंचाया कि मैं जिंदा लौट आया। अगर आप इतना डरते हो तो प्रधानमंत्री क्यों बने हुए हो? 

प्रधानमंत्री की सुरक्षा केन्द्र की एसपीजी के जिममे होती है। जहां भी किसी प्रधानमंत्री का कार्यक्रम होता है वहां पर तीन दिन पहले से ही सभी सुरक्षा वयवस्था एसपीजी संभाल लेती है। राज्य सरकार के समूचे प्रशासन तंत्र को उसी के आदेशों का पालन करना होता है। 

वैसे एक बात और प्रधानमंत्री को सड़क मार्ग से जाना ही नहीं था। जब उन्हें यह पता लगा कि रैली में भीड़ नहीं है तब यह सारा ड्रामा रचा गया। फिर अचानक बनाए गए तय रुट से अलग रुट लिया । पंजाब प्रशासन का यह भी कहना है कि प्रधानमंत्री को दूसरा सुरक्षित रास्ता देने की पेशकश की गई थी जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। और जानबूझकर हंगामा खड़ा कर ख़ुद की तरफ फोकस कर डाला। अब लोगों का हवाला देकर ड्रामा खड़ा किया जा रहा है कि पंजाब सरकार और पुलिस ने हिदायतों का पालन नहीं किया।

टीवी चैनल हंगामा मचाए हुए हैं कि प्रधानमंत्री का रास्ता रोक दिया। सुरक्षा में चूक हुई, वगैरह-वगैरह।

वास्तविकता इससे बिलकुल अलग है। फिरोजपुर में प्रधानमंत्री को सुनने के लिए कोई उत्साह नहीं था। हजारों कुर्सियां खाली पड़ी थी। प्रधानमंत्री मोदी भी निर्धारित कार्यक्रम को बदलते हुए सड़क मार्ग से रवाना हुए थे। वे अपनी मर्जी से जा रहे थे और अपनी मर्जी से लौटे हैं। किसी ने जोर जबर्दस्ती नहीं की। प्रधानमंत्री के साथ कोई भी जोर-जबर्दस्ती नहीं कर सकता है।  

इस घटना के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस कांफ्रेंस की। टीवी चैनलों पर भाजपा नेता तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। पंजाब की कांग्रेस सरकार को निशाने पर लिया जा रहा है। यह लोकतंत्र में सबसे बड़ा मजाक है। प्रधानमंत्री मोदी को रास्ता रोकने वालों के साथ बातचीत करनी चाहिए थी। अगर उनमें इतना साहस नहीं है तो वे कैसे प्रधानमंत्री हैं? छप्पन इंची का सीना किस काम का? प्रधानमंत्री पूरे देश के होते हैं, किसी एक पार्टी के नहीं। अब इस मुद्दे पर जो भी हंगामा हो रहा है, वह फालतू है। प्रधानमंत्री को कोई खतरा नहीं था। वह चाहते तो पूरी सुरक्षा व्यवस्था के साथ रास्ता रोककर बैठे लोगों से बात कर सकते थे और आगे जा सकते थे।

** जरा याद करो अहमदाबाद की घटना

मैं किसी एक घटना के जबाब में दूसरे घटना को याद करके जबाब देने का पक्षधर नही हूँ मगर लोकतंत्र में जब विरोध को साजिश और खतरा कहा जाने लगे तो कुछ बातें इतिहास के पन्नो से निकालना चाहिए – 

बात 26 अप्रैल 2009 की है जब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह गुजरात के अहमदाबाद में थे जहां उन पर जूता फेंक दिया गया था , ये पीएम की सुरक्षा में चूक थी । कहने के लिए हम कह सकते हैं कि जूता के जगह बम भी हो सकता था क्योंकि 6 माह पूर्व ही भारत पर एक बड़ा आतंकी हमला हुआ था। 

और जिस प्रकार से हाल ही में धर्म संसद में एक धार्मिक नेता ने कहा कि अगर मैं संसद में होता और मेरे पास बंदूक होता तो मैं डॉ मनमोहन सिंह को गोली मार देता तो इससे भी साफ है कि मनमोहन सिंह के दुश्मन कम नही थे। 

जूता फेंके जाने की घटना के बाद तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने ना तो गुजरात की मोदी सरकार पर आरोप लगाया और ना ही ये कहा कि “धन्यवाद कहना कि मैं जिंदा बच गया” सबसे गजब बात बताऊं इस घटना के बाद मनमोहन सिंह ने उस युवक को माफ करते हुए युवक पर किसी भी प्रकार का केस दर्ज ना करने की अपील की। 

* * * आप के सबक के लिए ये उदाहरण काफी रहेगा।

पहला __ नेहरू का रास्ता रोक एक महिला ने उनकी गिरेबान पकड़ के सवाल किया था कि इस आजादी मुझे क्या हासिल हुआ क्या मिला। नेहरू का जवाब था यही मिला कि आज तुम प्रधानमंत्री का गिरेबान पकड़ के सवाल कर सकती हो। ये होता है लोकतंत्र और मजबूत प्रधानमंत्री ।
दूसरा __ साल 1967 था। तब इंदिरा गांधी का वो जलवा नहीं था, जैसा बाद में कायम हुआ। तब कम बोलने की वजह से कुछ विपक्षी उन्हें ‘गूंगी गुड़िया’ कहकर चिढ़ाते थे। आम धारणा थी कि वे बहुत कोमल हैं और प्रधानमंत्री बनने लायक नहीं हैं। वे रैली के लिए उड़ीसा गई थीं। उड़ीसा स्वतंत्र पार्टी का गढ़ हुआ करता था। इंदिरा गांधी ने एक चुनाव सभा में जैसे ही बोलना शुरू किया, वहां मौजूद भीड़ ने पत्थरबाजी शुरू कर दी।

स्थानीय कांग्रेसियों ने उनसे तुरंत भाषण बंद करने को कहा। उनके सुरक्षा अधिकारी उन्हें हटाना चाहते थे। इंदिरा गांधी ने किसी की नहीं सुनी और बोलना जारी रखा। उन्होंने क्रुद्ध भीड़ का सामना किया और कहा, “क्या आप इसी तरह देश को बनाएंगे? क्या आप इसी तरह के लोगों को वोट देंगे?” तभी यकायक एक पत्थर आकर उनकी नाक पर लगा। नाक से खून बहने लगा। इंदिरा गांधी ने अपने हाथों से बहता हुआ खून पोंछा। रुमाल से नाक दबा ली और भाषण देती रहीं।  

घटना के बाद उनके स्टाफ और सुरक्षाकर्मियों ने कहा कि दिल्ली लौट चलिए। लेकिन उन्होने यह बात भी नहीं मानी और अगली जनसभा के लिए कोलकाता रवाना हो गईं. कोलकाता पर उन्होंने नाक पर पट्टी बांधे-बांधे भाषण दिया। 

बाद में पता चला कि चोट ज्यादा है। ​उनकी नाक की हड्डी टूट गई थी। नाक पर प्लास्टर चढ़ाना पड़ा। नाक की सर्जरी भी हुई। कई दिनों तक इंदिरा गांधी ने चेहरे पर प्लास्टर बांधे पूरे देश में चुनाव प्रचार किया। एक बार उन्होंने साथ के लोगों से मजाक किया कि उनकी शक्ल बिल्कुल ‘बैटमैन’ जैसी हो गई है। 

प्लास्टर उतरने के बाद वे मजाक में कहती थीं कि मुझे तो लग रहा था कि डॉक्टर प्लास्टिक सर्जरी करके मेरी नाक को सुंदर बना देंगे। आप तो जानते ही हैं कि मेरी नाक कितनी लंबी है लेकिन इसे खूबसूरत बनाने का एक मौका हाथ से निकल गया। कमबख्त डॉक्टरों ने कुछ नहीं किया। मैं वैसी की वैसी ही रह गई। 

तीसरा __ अन्ना आंदोलन में हम यूपीए सरकार के बंगलो के बाहर मंत्रियों नेम प्लेट उखाड़ देते थे, मनमोहन सिंह के सामने उनके खिलाफ नारेबाजी होती थी और वो सुनते थे

चौथा __ अरविंद पे पत्थर, स्याही फेंकी गई, फेंकने वालो से स्टेज पे बुला का बात की गई, थप्पड़ मारने वाले से घर जाकर उसका कारण पूछा गया

इतिहास ऐसी घटनाओ के लिए, ऐसी बातों के लिए याद किया जाता है ,  कल जो हुआ उसका ड्रामा बना के झूठ फैला के आपको चुनावो में कुछ फायदा तो हो सकता है, लेकिन देश और लोकतंत्र का बहोत बड़ा नुकसान हो जाएगा। कितना शानदार होता जो विरोध में उन लोगो से आप बात करते, उनके सवाल लेते, उन्हें आश्वस्त करते 10 साल बाद आपके विरोधी भी ये किस्सा लोगो को सुनाते, आपके कुनबे के अटल बिहारी जी के ही कितने किस्से है उनसे सीखिए। हर चीज चुनाव के लिए नही होती, हर चीज वोट नही देती। कुछ तो ऐसा कर जाइये की हम बता सके हमारे प्रधानमंत्री लोगो के द्वारा चुन के आने अलावा भी बहोत लोकतांत्रिक व्यक्ति थे।

उपरोक्त  कथाओ का सबक ये है कि जनता सिर्फ भजन मंडली नहीं है। जनता नाराज भी हो सकती है, अगर आप अपने फैसलों से सैकड़ों लोगों की जान ले लें। नेता में जनता की नाराजगी का सामना करने की हिम्मत होनी चाहिए।

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