-कमलेश भारतीय

क्या लखीमपुर खीरी कांड उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की गले की फांस बनेगा या बनने जा रहा है ? यदि विशेष जांच दल यानी एस आई टी की रिपोर्ट पर गौर किया जाये तो ऐसा ही लगता है । सिट की ओर से जो अब तक की छानबीन की गयी है उसके आधार पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ‘टेनी’ के पुत्र आशीष मिश्रा ‘सोनू’ और उसके सहयोगियों ने जानबूझ कर , सुनियोजित ढंग से साजिश के तहत इस घटना को अंजाम दिया । इसलिए सख्त धारायें लगा कर मुकद्दमा चलाने का अनुरोध किया गया है । याद रहे कि आशीष मिश्रा सहित तेरह लोगों पर तीन अक्तूबर को लखीमपुर खीरी में प्रदर्शन कर रहे किसानों की जीप से कुचलने का आरोप है । इस घटना के बाद हुई हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की जानें चली गयी थीं । सिट के वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी एस पी यादव का कहना है कि अब तक की विवेचना और साक्ष्यों के आधार पर यह प्रमाणित होता है कि आरोपियों द्वारा यह कृत्य लापरवाही से नहीं बल्कि जानबूझकर सुनियोजित ढंग से जान से मारने की नीयत से ही किया गया है ।

इस तरह लखीमपुर खीरी कांड न केवल योगी सरकार बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बन कर उठने वाला है । इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट किया है-न्यायालय की फटकार व सत्याग्रह के चलते अब पुलिस का भी यह कहना है कि गृह राज्य मंत्री के चहेते ने साजिश के तहत किसानों को कुचला था । इस बात की जांच होनी चाहिए कि इसमें गृह राज्य मंत्री की क्या भूमिका थी ? यही नहीं अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान विरोधी मानसिकता के चलते उन्हें पद से भी नही हटाया है । राहुल गांधी ने भी कहा कि धर्म की राजनीति करने वाले प्रधानमंत्री को राजनीति का धर्म निभाना चाहिए । अपने मंत्री को बर्खास्त न करना अन्याय है । अधर्म है ।

इस तरह लखीमपुर खीरी कांड को अकेली कांग्रेस ही नहीं बल्कि पूरा विपक्ष ही अपनी जनसभाओं में उठायेगा । कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का कहना है कि सिट की रिपोर्ट से किसानों का कत्ल करने का षड्यंत्र सामने आ गया है । प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश के मंच से किसानों से माफी मांगें और देश के गृह राज्य मंत्री को बर्खास्त करें । वरना यह साबित हो जायेगा कि किसानों का नरसंहार योगी मोदी सरकार के इशारे पर हुआ ।

वैसे तो किसान आंदोलन में भी केंद्रीय गृह राज्यमंत्री मिश्रा को मंत्रिमंडल से बाहर करने की मांग जुड़ गयी थी और इसीलिए प्रधान मंत्री ने बिना किसी वार्ता के आनन फानन में तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी और किसान संगठनों ने भी सबसे लम्बे आंदोलन को समाप्त करने का फैसला किया । फिर भी यह मुद्दा लगातार गूंजता रहेगा विधानसभा चुनाव में , इसमें कोई संदेह नहीं । जांच इसीलिए तो धीमी चली और सरकार को फटकार भी पड़ी । अब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जांच को प्रभावित तो कर ही रहे होंगे । इसलिए प्रधानमंत्री को यह विचार करना चाहिए कि जनसभाओं में मांग उठने से पहले अमित मिश्रा के बारे में क्या करना है । नहीं तो चुनावों के बीच इन्हें मंत्रिमंडल से निकालना हार स्वीकार करने जैसा फैसला होगा ।।समय रहते रह फैसला करना ही बेहतर होगा ।
-पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी।

error: Content is protected !!