30 नवम्बर 2021 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने संसद में विपक्ष व किसानों से बिना चर्चा किये बहुमत के आधार पर मोदी सरकार द्वारा पहले अलोकतांत्रिक ढंग से तीन काले कृषि कानून पारित करवाये व फिर वोट की चोट सेे डरकर बिनो चर्चा के चंद सैंकेडों में दोनो सदनों लोकसभा व  राज्यसभा में विपक्ष को बुल्डोज करके इन तीन काले कृषि कानूनों को निरस्त करने की प्रक्रिया से साबित हो गया कि मोदी सरकार का लोकतंत्र, संसदीय परम्पराओं मेें पैसेभर का भी विश्वास नही है। विद्रोही ने कहा कि शीतकालीन सत्र प्रारंभ होने से ठीक पहले प्रधानमंत्री मोदी ने मीडिया के सामने लोकतंत्र, चर्चा, सबको साथ लेकर चलने पर बड़ी-बड़ी बाते करके ऐसा ढोंग प्रदर्शित किया था मानो उनकी लोकतंत्र व संसदीय परम्पराओं में गहन आस्था है। लेकिन मीडिया के सामने लम्बी-चौड़ी हांकने के एक घंटे बाद ही उन्होंने जिस तरह विपक्ष को बुल्डोज करके बिना चर्चा के शोर-शराबे के बीच चंद सैकेडों में कृषि कानूनों को वापिस करवाया और तुरत-फुरत दोपहर बाद इसीे तरह सभी संसदीय परम्पराओं को तांक पर रखकर राज्यसभा में इन कानूनों को वापिस लिया, उससे फिर साबित हुआ कि मोदी सरकार कितनी अहंकारी व फासिस्ट सरकार है।

विद्रोही ने सवाल किया कि जब कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष कृषि कानूनों को वापिस लेने का पक्षधर था तो फिर सरकार को इस पर संसद में चर्चा करवाने में आपत्ति समझ से परे है। साफ है कि मोदी सरकार कृषि कानूनों पर संसद में इसलिए चर्चा नही चाहती थी ताकि विपक्ष एमएसपी पर कानून बनाने, किसान आंदोलन में शहीद हुए लगभग 700 किसानों को मुआवजा देने, किसान आंदोलन के समय किसानों पर संगीन धाराओं में लादे गए मुकदमों को रद्द करने जैसे मुद्दों को न उठा सके। वहीं सरकार ने कृषि कानून बनाये क्यों और फिर इन्हे वापिस क्यों लिए, यह बताने की फजीहत से बच सके। मोदी सरकार के रवैये और वोट की चोट के डर से कानून वापिस लेने से साफ है कि सरकार की नीयत में खोट है और आज तो उन्होने वोट की चोट से डरकर काले कृषि कानून वापिस लेने को मजबूर होना पड़ा है। लेकिन इस बात से भी इनकार नही किया जा सकता है कि संघी सरकार कभी भी चोर दरवाजे से फिर से उक्त कानून थोप सकती है। 

विद्रोही नेे कहा कि यदि सरकार की नीयत साफ होती तो वह चर्चा से भागती नही और संसद में किसानों से जुड़े हर मुददे पर खुले दिल से चर्चा करके उनके समाधान का प्रयास करती। पर सरकार ने ऐसा नही करके साफ जता दिया कि सरकार किसान हित की बजाय चंद पूंजीपतियों के हितों के प्रति ज्यादा रूचि रखती है। पंजाब कांग्रेस सरकार ने किसान आंदोलन के समय किसानों पर बने सभी मुकदमे वापिस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है जबकि हरियाणा भाजपा खट्टर सरकार कह रही है कि केन्द्र के निर्देश पर ही वे किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापिस लेगी जो बताता है कि संघीयों के मन में किसानों के प्रति कितना जहर भरा है। विद्रोही ने किसानों से आग्रह किया वे मोदी-भाजपा-खट्टर संघी सरकारों की तिकडमी चालों से सावधान रहे और उनके झांसे में न आये। वहीं हरियाणा सरकार से मांग की कि किसानों पर दर्ज सभी मुदकमे वापिस हो और किसान आंदोलन में शहीद हुए हरियाणा से सम्बन्धित किसानों को भाजपा-खट्टर सरकार अपनी तरफ से भी उचित मुआवजा दे।