नई दिल्ली , 19 नवंबर, 2021

लगभग 12 महीने के गांधीवादी आंदोलन के बाद आज देश के 62 करोड़ अन्नदाताओं-किसानों-खेत मजदूरों के संघर्ष व इच्छाशक्ति की जीत हुई। आज उन 700 से अधिक किसान परिवारों की कुर्बानी रंग लाई, जिनके परिवारजनों ने न्याय के इस संघर्ष में अपनी जान न्योछावर की। आज सत्य, न्याय और अहिंसा की जीत हुई।

आज सत्ता में बैठे लोगों द्वारा बुना किसान-मजदूर विरोधी षडयंत्र भी हारा और तानाशाह शासकों का अहंकार भी। आज रोजी-रोटी और किसानी पर हमला करने की साजिश भी हारी। आज खेती-विरोधी तीनों काले कानून हारे और अन्नदाता की जीत हुई।

पिछले सात सालों से भाजपा सरकार ने लगातार खेती पर अलग-अलग तरीके से हमला बोला है। चाहे भाजपा सरकार बनते ही किसान को दिए जाने वाले बोनस को बंद करने की बात हो, या फिर किसान की जमीन के उचित मुआवज़ा कानून को अध्यादेश लाकर समाप्त करने का षडयंत्र हो। चाहे प्रधानमंत्री के वादे के मुताबिक किसान को लागत+50% मुनाफा देने से इनकार कर देना हो, या फिर डीज़ल व कृषि उत्पाद की लागतों में भारी भरकम वृद्धि हो, या फिर तीन खेती विरोधी काले कानूनों का हमला हो।

आज जब भारत सरकार के NSO के मुताबिक किसान की औसत आय ₹27 प्रतिदिन रह गई हो, और देश के किसान पर औसत कर्ज ₹74,000 हो, तो सरकार व हर व्यक्ति को दोबारा सोचने की जरूरत है कि खेती किस प्रकार से सही मायनों में मुनाफे का सौदा बने। किसान को उसकी फसल की सही कीमत यानि MSP कैसे मिले।

किसान व खेत मजदूर को यातना नहीं, याचना भी नहीं, न्याय और अधिकार चाहिये। यह हम सबका कर्तव्य भी है और संवैधानिक जिम्मेदारी भी। प्रजातंत्र में कोई भी निर्णय सबसे चर्चा कर, सभी प्रभावित लोगों की सहमति और विपक्ष के साथ राय मशवरे के बाद ही लिया जाना चाहिए। उम्मीद है कि मोदी सरकार ने कम से कम भविष्य के लिए कुछ सीख ली होगी।

मुझे उम्मीद है कि प्रधानमंत्री व भाजपा सरकार अपना राजहठ व अहंकार छोड़कर किसान कल्याण की नीतियों को लागू करने की ओर ध्यान देंगे, MSP सुनिश्चित करेंगे व भविष्य में ऐसा कोई कदम उठाने से पहले राज्य सरकारों, किसान संगठनों और विपक्षी दलों की सहमति बनाई जाएगी।

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