धार्मिक कट्टरता और सेक्युलरिज्म वाली जननी से विकास नहीं विनाश का जन्म होगा : माईकल सैनी

यह मेरा आलेख कहता है कि भारत देश आज जिस धार्मिक कट्टरता की डगर पर चल रहा है उसके आखिरी पड़ाव का नाम विनाश है भले ही कुछ लोग इसके विपरीत सेक्युलरिज्म के मार्ग पर चल रहे हैं परन्तु विकास तो उससे भी होना संभव नहीं तो सवाल उठता है कि फिर क्यों इन गुमराह करने वाले मार्गो पर चलने वालों का अनुशरण करते हुए अँधि-दोड़ लगा रहे हैं हम सब और क्या जवाब देंगें हम अपनी आने वाली पीढ़ी को जब वो पूछेगी के यह लोग देश को विनास की ओर ले जा रहे थे गर्त में धकेलने के लिए तो आपने उन्हें रोकने की बजाय उनका साथ क्यों दिया – सोचिए क्या कहेंगे हम उनके प्रश्नों के प्रतिउत्तर में ?

यही चयन जो धार्मिक कट्टरता का हम कर बैठे हैं या करने वाले हैं उससे तो यही लगता है कि हमारे देश में पैदा होने वाले विकास का नाम “बटवारा” होगा जो धर्मपरिवर्तन की कोंख से जन्म लेगा अर्थात एक ताकतवर धर्म का अनुसरण करने वालों का देश ।
रही विकास की बात तो उसके विषय में सोचना यह सब हो जाने के बाद ही शुरू हो पाएगा इससे पहले तो मतलब ही नहीं ।

वास्तविक स्थिति देश की दुर्भाग्यपूर्ण हो चली है कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज अपने अस्तित्व में ही नहीं लगती बात समानता प्रेमभाव और भाईचारे की करें तो लगभग समाप्ति की ओर है , आर्थिक स्थिति भी सामान्य से शून्य की ओर रुख कर चुकी है , व्यापार पर घनघोर मंदी का काला साया छाया हुआ है , मजदूरी भी जबर्दस्ती करके दबाव से या कहें कि दिनभर लहू जलाकर बमुश्किल निकल पाती है , रोजगार सीमित हो चले हैं भविष्य में भी उम्मीदें कम नजर आती हैं संसाधनों की भी खासी कमी है ऊपर से महंगाई की मार और यह परेशानियों हों भी क्यों नहीं सरकार के पास योजनाओं का अभाव जो है उसी के कारण ही बेरोजगारी दर दिनोदिन बढ़ रही है तथा उससे साथ अपराध भी मगर रोक लगाने वाला कोई नहीं ।

हमारे ही अमूल्य योगदान से प्रदूषण स्तर बढ़ा है पर्यावरण की हालात गंभीर अवस्था में पहुंच चुकी है जिससे लोगों की चिंता में इजाफा होना सौभाविक है कारण स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से पार नहीं पा सकना है , चहुँओर लूट की खुली छूट चल रही है , मूलभूत सुविधाओं में बिजली सड़क पानी जलनिकासी और पर्यावरण और भृस्टाचारों की तो बात ही क्या करनी ।

तरविंदर सैनी (माईकल ) समाजसेवी गुरुग्राम एक आम इंसान की चिंता है कि हम कानून व्यवस्था को भुलाकर हिदूं मुसलमान करने मे ही लगे रहे तो हमारी आने वाली पिढियां हमें धितकारेंगी , घृणित नजरों से देखेंगी और हमारी हिम्मत उनसे नजरें मिलाकर बातें करने तक की भी नहीं होगी ।

खैर इतना तो तय है कि यदि लोगों ने धर्मवादी कट्टर मानसिकता को शीघ्रता से नहीं त्यागा तो देश का बंटाधार होकर रहेगा और उसके लिए हम भी कम कुसूरवार साबित नहीं होंगें ।

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