महंगाई, बेरोजगारी की मार से हर वर्ग बेहाल – दीपेंद्र हुड्डा

·         दीपेंद्र हुड्डा कांग्रेस की प्रतिज्ञा यात्रा में बतौर मुख्य अतिथि बरेली और बंदायु पहुंचे

·         देश की अर्थव्यवस्था हो गयी चौपट – दीपेंद्र हुड्डा

·         महंगाई से बेहाल गरीब की थाली में दाल-सब्जी तो दूर की बात हैप्याज भी गायब – दीपेंद्र हुड्डा

·         देश की संपत्तियां बेचकर कब तक काम चलायेगी सरकार – दीपेंद्र हुड्डा

चंडीगढ़, 29 अक्टूबर। सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा आज कांग्रेस की प्रतिज्ञा यात्रा में बतौर मुख्य अतिथि बरेली और बंदायु पहुंचे। इस दौरान जगह-जगह उनका जोरदार स्वागत किया गया। उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि महंगाई, बेरोजगारी की मार से हर वर्ग बेहाल हो चुका है। महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। पेट्रोल-डीजल उसकी पहुंच से बाहर हो गये हैं। डीजल-पेट्रोल, रसोई गैस, खाद्य तेल समेत रोजमर्रा की जरुरत के सामान इस कदर महंगे हो गये हैं कि आम आदमी का घर चलाना दूभर हो गया है। सरकार टैक्स पर टैक्स का बोझ लादे जा रही है। गरीब आदमी की थाली में दाल-सब्जी तो दूर की बात है, प्याज भी गायब हो गया है। तीन नये कृषि कानूनों की आड़ में सरकार आम आदमी की रोटी को भी चंद सरमायेदारों की मुठ्ठी में देना चाहती है।

दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि भाजपा सरकार की गलत नीतियों के चलते आज देश के युवा भयंकर बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। भाजपा ने हर साल 2 करोड़ रोजगार देने की बात कही थी सात साल में 14 करोड़ मिलने रोजगार चाहिए थे। देश के कुल लगभग 28 करोड़ घर हैं, यानी हर एक घर को छोडकर दूसरे घर में नौकरी मिलनी चाहिए थी। लेकिन क्या ऐसा हुआ। हुआ इसके विपरीत जो पहले से नौकरी कर रहे थे उनकी नौकरियां भी चली गयीं। आर्थिक हालत इस कदर खस्ता है कि कई दशकों की मेहनत से बनी सरकारी सम्पत्तियों को ही इस सरकार ने बेचना शुरु कर दिया। उन्होंने तंज कसा कि कोई आदमी घर की जमीन-जायदाद तब बेचता है जब उसकी माली हालत कमजोर हो जाती है। सरकार अच्छी आर्थिक हालत का दावा तो कर रही है। लेकिन उसके पास इस बात का जवाब नहीं है कि अगर हालात अच्छे हैं तो वो सरकारी संपत्ति को क्यों बेच रही है। आखिर देश की संपत्तियां बेचकर सरकार कब तक काम चलायेगी?निजीकरण के नाम पर एयर इंडिया, बीपीसीएल, बीएसएनएल समेत कई सरकारी कंपनियां या तो बिक गयीं या बिकने के कगार पर हैं। पहले निजी संस्थाओं का सरकारीकरण किया जाता था लेकिन भाजपा राज में सरकारी संस्थाओं का निजीकरण किया जा रहा है।

उन्होंने किसानों की तकलीफों का जिक्र करते हुए कहा कि भाजपा सरकार ने किसानों को सबसे बड़ी चोट मारी है। पहले तो फसल का भाव नहीं मिला, मंडियों में किसान फसल पिट गयी। एमएसपी था, है और रहेगा कहने वाले बताएं क्या धान की एमएसपी मिली, क्या बाजरे की एमएसपी मिली, क्या गन्ना किसानों को उनका बकाया भुगतान मिला। अब जब रबी फसल बुआई का सीजन आया तो किसान को खाद के लिये दर-दर की ठोकर खानी पड़ रही है। फिर भी खाद नहीं मिल रही है। बेमौसम बारिश, बाढ़, ओलावृष्टि से हुए नुकसान का कोई मुआवजा तक नहीं मिल रहा। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 11 महीनों से धरने पर बैठे किसान राजधानी की सीमाओं पर कुर्बानी दे रहे हैं लेकिन सरकार किसानों की बात तक सुनने तक को तैयार नहीं है।

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