भारत के करनाल में फिर महाभारत पंडित संदीप हरियाणा-चंडीगढ़-पंचकूला– कर्ण की नगरी कोलाहल से गूंज रही है। भारत में नया महाभारत का मैदान बना करनाल अतीत के क्रंदन, करुणा, कुंठा, क्रोध, कश्मकश को दोहराता प्रतीत हो रहा है। धरा के सबसे ताकतवर योद्धा की जमीन पर धरती को चीर अन्न पैदा करने वाला हलधर हरियाणा में हठी शासक के खिलाफ न्याय की आस में आ खड़ा है। सिर पर लाठियों की बरसात, लहू की धार, हलधर की हत्या के बाद न्याय की आस में भूख प्यास, रात-दिन, धूप बरसात की परवाह से दूर कट्टर किसान और खट्टर सरकार के सिपाही करनाल के मैदान में आमने-सामने हैं। पीछे हटने को न मारने वाली सरकार तैयार है और न मौत के मातम डूबे हलवीर। हुंकार, ललकार, तकरार की शंखनाद के बीच संदेशों का आदान प्रदान वार्ताओं का दौर किसानों की चाह सरकार की राह से मेल नहीं खा रहे कारण करनाल का रण सामने है। निहत्थे किसान का सिर फोड़, पटक पटक कर मारने के सरकारी आदेश ने एक मजबूर किसान को किसानों से छीन लिया समय से पहले मौत की सौगात और चिता पर धधकती आग ने किसानों के शांत मन को झकझोर दिया है। पुलिसिया वार, सरकारी कहर, सरकार को खुश करने के लिए अधिकारी ने जो फरमान जारी किया वह आखिर मौत का परवाना बन गया। इस नृशंस हत्या के खिलाफ खड़ी है किसानों की सेना, मांग बस इतनी कि सरेआम सिर फोड़ने का आदेश दे मौत का खेल खेलने वाले सरकारी बाबू को सजा मिले। संविधान के विधान के खिलाफ खड़े हो किसानों पर मारने, मौत की नींद सुलाने वाले साहब सलाखों के पीछे जाएं, न्याय इस बात को मिले कि मरने वाला आतंकी, आताताई, अलगाववादी नहीं अन्नदाता है वो इस बेरहम मौत का हकदार नहीं था। मजबूर किसान हाथ खड़े कर लाठियों के वार को सिर पर तब तक झेलता रहा जब तक लहू का कतरा कतरा धरती से मिल नहीं गया, साँसों को तब तक सहेज कर जख्मों को निहारता रहा जब तक साँसों ने शरीर का साथ दिया। उस शहीद की जलती चिता जख्मों पर जख्मों की कहानी, साथियों में बेचैनी छोड़ छोड़ गया। मौत के बाद मरहूम एक जिंदा सवाल छोड़ गया मेरी मौत का जिम्मेदार कौन? मेरी मौत को न्याय दिलाएगा कौन? इस सवाल के जवाब की तलाश में करनाल में बवाल है, लाठी के जोर पर न्याय का शोर सरकार क्यों दबाना चाहती है? हरियाणा में जब से सियासत बदली है सड़कें खून से नहाती ही रही हैं। जाट आंदोलन में मौत का मातम हो या रामपाल आश्रम पर गोलियों का वार, पंचकुला में सरेआम नरसंहार की सनसनी खेज डरावनी वारदात हो या कर्ण की नगरी करनाल में किसान की हत्या का खौफ। खादी और खाकी का यह मजबूत गठजोड़ हरियाणा में हरियाणा वासियों की जान ले रहा है, आजादी के बाद शांति के समय में पुलिसिया वार में सबसे बड़ा नरसंहार के गवाह की जमीं महाभारत वाला हरियाणा ही बना है। प्रभु कृष्ण ने कुरुक्षेत्र को लहू में डूबते देखा, खून की बहती धारा देखी, लहू से लथपथ राहें देखी, लहू में डूबी जिंदगी देखी, कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान को ही क्यों चुना होगा? वजह कुछ तो रही होगी? शायद यही कि ये धरा का टुकड़ा ही लहू पचा सकता है, यह धरती ही लहू समा सकती है। आखिर कब तक लहू से प्यास बुझाती रहेगी ये धरती? सवाल यह भी उठ खड़ा है। आज भी हरियाणा में खून की बौछार किसी न किसी बहाने किसी न किसी के जिद्द अभिमान के कारण बरस ही पड़ती है, खून की नदियां बह निकलती हैं, पंचकुला की सड़कों से बेगुनाह डेरा भक्तों के लाल लहू के निशान अभी मिटे भी नहीं थे कि करनाल में किसान का सर फोड़ लहू बहा दिया गया। मौत के तांडव में घिरे हरियाणा को अब हत्याओं का जवाब देना ही होगा? इस बार सामना वीरों से है, इस बार सामने हलधर है, हक लिए बिना हल उठेगा नहीं ये डरेंगे नहीं। कोई जांच करे तो जानकर हैरान हो जाएगा कि पिछली दो सरकारों में सरकारी आदेशों, सरकारी गोलियों, लाठियों ने कितने घरों के चूल्हे बुझा दिए, कितनी मांगों के सिंदूर मिटा दिए, कितनी माताओं के लाल छीन लिए, कितनी बहनों की राखी बिखरा दी। हरियाणा में सरकारी वार में कितने मरे और कितने देशद्रोही बनाए गए आजाद भारत के इतिहास में कोई साहस जुटा यह सवाल पूछेगा तो हरियाणा नंबर वन कहलाएगा। जुल्म की इबारत लिखने, सड़कों पर लहू बहाने अपने ही नागरिकों को देशद्रोही बना सलाखों के पीछे भेजने में हरियाणा की बराबरी देश में कोई और राज्य शायद करने का साहस ही नहीं जुटा पाएगा। जाटलैंड में जाट आंदोलन शांत हो गया मालूम होता है, डेरा को डरा दिया गया है, संगीने कनपटी पर रख किसानों से मनमानी करा लेगी सरकार ऐसा हो ही नहीं सकता। मौत के खिलाफ, मौत का फरमान जारी करने वाले अधिकारी के खिलाफ, उसके अधिकार को घेर मौत पर सवाल और सजा की मांग करने वाले धरती पुत्रों की इस मांग ने उन तमाम मां बाप, भाई बहन की मांग भी जुड़ी खड़ी है जिनको कभी किसी आश्रम के बाहर, कभी सड़क पर दौड़ा दौड़ा कर, तो कभी पंचकुला बुलाकर, घेरा बना घेर कर भून दिया गया। सच है सब सरकार से टकरा नहीं सकते, सच है सब सरकार से सवाल नहीं पूछ सकते, सच है सब सरकार के सामने सर नहीं उठा सकते, पर हर बार यह सच नहीं होता कि तानाशाही ही जीतेगा। इस बार टक्कर कड़ी है सरकार टकरा गई है धरतीपुत्रों से। सत्ता के अहंकार के दम से दमन कर चैन से सोने वाली सरकार को नींद से जगा दिया है किसानों ने। चक्कर में खट्टर, घेरे में करनाल, हौसले से भरा किसान, मौत पर बवाल, सवाल करनाल से उठा है उसे जिंदा रखना, उसे जीतना ही होगा, आखिर बेगुनाहों की मौत सरकारी हुक्मरानों के हुक्म से हरियाणा की जमीन कब तक सहती रहेगी। वक्त है न्याय के इस रण में अन्याय के खिलाफ, अंधे शासक से सवाल पूछने, इंसाफ मांगने का। समय की मांग है हम सब किसानों के साथ जुड़ जाएं यह भारत की नई महाभारत करनाल की धरा से इतिहास रचेगी, जीत हमेशा की तरह एक बार फिर सच की ही होगी और झूठ हारेगा। किसानों की मांग जायज है तो बाहर निकलो मकानों से, सड़कों पर रात बिताओ, सड़कों पर रोटी खाओ, सड़कों को ही घर बनाओ, सरकार को सड़क पर घेर सड़क पर शांति आंदोलन अहिंसा की जंग लड़ो। Post navigation हरियाणा में निवेश एवं रोजगार के लिए राज्य सरकार के प्रयास ला रहे रंग किसानों से बातचीत करने के रास्ते हमेशा खुले