• सांसद दीपेन्द्र हुड्डा गांव धामड़ में स्व. किसान जगमोहन के घर पहुंचे कहा किसानों की कुर्बानी व्यर्थ नहीं जायेगी
• नेता प्रतिपक्ष चौ. भूपेंद्र सिंह हुड्डा के निर्देश पर किसान परिवारों को विधायक दल की ओर से दी जाने वाली 2 लाख रुपये की आर्थिक सहायता सौंपी
• आन्दोलन में जान कुर्बान करने वाले किसान स्व. जगमोहन को श्रद्धांजलि दी और परिवारजनों से मिलकर संवेदना व्यक्त की

रोहतक, 1 अगस्त। राज्य सभा सांसद दीपेन्द्र हुड्डा आज किलोई हलके के गांव धामड़ में स्व. किसान जगमोहन के घर पहुंचे और किसान आन्दोलन में टीकरी बॉर्डर पर जान कुर्बान करने वाले किसान स्व. जगमोहन को श्रद्धांजलि दी व परिवारजनों से मिलकर उन्हें ढांढस बंधाया। उन्होंने कहा कि जब तक सरकार किसानों की बात नहीं सुनेगी, संसद में हम सरकार की बात नहीं सुनेंगे। इस दौरान उन्होंने नेता प्रतिपक्ष चौ. भूपेंद्र सिंह हुड्डा के निर्देश पर किसान आन्दोलन में जान कुर्बान करने वाले किसानों के परिजनों को विधायक दल द्वारा निजी संसाधनों से दी जा रही ₹2 लाख की आर्थिक मदद किसान स्व. जगमोहन के परिवार को सौंपी और कहा स्व. किसान जगमोहन का किसान आन्दोलन में बड़ा योगदान रहा और टीकरी बॉर्डर पर उनका लम्बा संघर्ष रहा है। सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने परिवार को आगे भी हर संभव मदद कराने का भरोसा दिया साथ ही कहा कि हरियाणा में कांग्रेस सरकार आने पर नीतिगत फैसला लेकर किसान आन्दोलन में बलिदान देने वाले हरियाणा के सभी किसानों के परिवार को नौकरी दी जायेगी। इस दौरान उनके साथ हरियाणा कांग्रेस विधायक दल के व्हिप भारत भूषण बतरा मौजूद रहे।

उन्होंने कहा कि ये दुःख की बात है कि सरकार पूरी असंवेदनशीलता और हठधर्मिता से किसानों को नकारते हुए आगे बढ़ रही है। 8 महीनों में 400 से ज्यादा किसानों ने धरनों पर अपनी जानें कुर्बान कर दी हैं। लेकिन सरकार पर इसका भी कोई असर नहीं पड़ रहा है। इस सरकार ने उन किसानों के परिवारों के प्रति कोई संवेदना नहीं दिखाई और लगातार राजहठ पर अड़ी रही। मदद करना तो दूर संवेदना के दो शब्द बोलने को भी तैयार नहीं हुई। उन्होंने कहा कि किसानों और उनकी कुर्बानी का अपमान करने वाली इस अहंकारी सरकार को किसान के एक-एक आंसू का हिसाब देना होगा।

सांसद दीपेन्द्र ने बताया कि देश की 70 फीसदी आबादी कृषि पर आधारित है बावजूद इसके बतौर विपक्ष हमें सदन में ही नहीं अपितु सदन के बाहर संसद के परिसर में भी किसानों की आवाज़ उठाने से रोका जा रहा है। जब से संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ है ऐसा कोई दिन नहीं बीता जब उन्होंने किसानों की समस्या पर संसद में चर्चा कराने का नोटिस न दिया हो। लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार संसद में भी किसान शब्द सुनना तक नहीं चाहती। शायद यही कारण है कि हर रोज़ किसानों की समस्या पर चर्चा कराने की उनकी मांग को अस्वीकार कर दिया जाता है। उन्होंने सरकार से पुनः अपील करी कि वो अन्नदाता की मांगें माने और 3 काले कृषि कानून वापस ले। साथ ही सरकार को चेताया कि जब तक सरकार किसानों की आवाज़ नहीं सुनेगी, संसद में और संसद के बाहर ये लड़ाई जारी रहेगी।

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