सेवा का अधिकार के सेवादार

एक अदद सेवा का अधिकार पाने के लिए हरियाणा में कई पुण्य आत्माएं लालायित थी। किसी भी काम की पहली शुरूआत ख्वाईश से ही होती है। विचार से ही होती है। इन ख्वाईशमंद रिटायर्ड अफसरों में से कुछ तो ऐसे हैं-थे, जब भी सेवा का अधिकार टाइप वाले पदों को सरकार विज्ञापित करती है तो ये लोग उनको पाने के लिए हर दफा ऐड़ी चोटी का जोर लगाते हैं। हर दफा जोश जोश में एप्लाई करते थे। चाहे इनकी दाल गले चाहे ना,लेकिन इस से इनके हौसले पर कोई आंच नहीं आती।

इधर, टीसी गुप्ता ऐसे आईएएस अधिकारी रहे कि जब इन्होंने सेवा का अधिकार चेयरमैन के लिए एप्लाई किया तो ये करीब करीब पहले से तय था कि नंबर इनका ही लगेगा। इनके सामने कोेई दूसरा टिक नहीं पाएगा। वो इसलिए कि इनका ये टैÑक रिकार्ड रहा है कि ये सिर्फ एप्लाई करने के लिए एप्लाई करने वालों में नहीं है। भीड़ का हिस्सा बनने वालों में नहीं हैं। इनकी महिमा को जानने वालों को पता है कि अगर टीसी गुप्ता ने एप्लाई किया है तो मतलब ये ही है कि-लाइन वहीं से शुरू होती है, जहां हम खड़े होते हैं। सो गुप्ता ने आवेदन बंद होने की आखिरी तारीख से महज दो दिन एप्लाई किया। क्या उन्होंने स्वेच्छा से ही इस पद के लिए एप्लाई किया या फिर उनसे सरकार के लोगों ने कह कर एप्लाई करवाया? इसको लेकर अलग अलग जानकारियां हैं।

एक ये भी कि वो जैसे ही आईएएस की नौकरी से रिटायर हुए झट से उनको सेवा का अधिकारी आयोग का मुखिया लगा दिया गया। बहोत दफा इन पदों पर आने वालों की तिकड़म कर कर के जूतियां घिस जाती हैं,लेकिन गुप्ता के मामले में ये नहीं हुआ। मतलब ये कि उनका खंूटा मजबूत था और सरकार भी कहीं न कहीं चाव में थी-कुछ दबाव में थी कि ये काम जल्द से जल्द करना ही है। ये भी प्रचारित किया गया कि गुप्ता का तो इसलिए भी होना था कि क्योंकि वो चयन कमेटी के एक अन्य सदस्य व विपक्ष के नेता भूपेंद्र हुडडा के भी करीबी हैं। इसलिए उनके नाम पर सरकार और विपक्ष दोनों की ही रजामंदी थी। भूपेंद्र हुडडा से पहले विपक्ष के नेता रहे अभय चौटाला के समय में भी जब ऐसे आयोगों के लिए लोगों का चयन किया जाता था, तब भी सरकार और विपक्ष के बीच रजामंदी हुआ करती थी। अतीत में अभय चौटाला ने ऐसी किसी मीटिंग में कभी भी सरकार से असहमति नहीं जताई।

गुप्ता को इस पद पर आने से रोकने के लिए अफसरशाही के एक खेमे ने काफी शिददत से कोशिशें की,लेकिन उनकी एक न चलीं। इस मामले से जुड़ी फाइल पर भी काफी ज्ञान उड़ेला-उड़ेलवाया गया,लेकिन अफसोस ये किसी काम न आ सका। गुप्ता की किस्म किस्म की प्रतिभाओं को लेकर अफसरशाही के अंदर और बाहर कई तरह के किस्से-कहानियां हैं। गुप्ता के विरोधी भी ये मानते हैं कि वो हरियाणा के अब तक के सबसे काबिल, मेहनती, काम में माहिर, जुगाड़ू,मुश्किल से मुश्किल कामों को सिरे चढाने वाले गिने चुने आईएएस अफसरों में से एक हैं। इसीलिए हर सरकार को उनकी और उन जैसों की आवश्यकता महसूस होती रही है। ये गुप्ता का विशेष गुण है कि उनका तो शायद सरकार के बिना काम चल जाए,लेकिन सरकार को अपने कई गुप्त एजैंडों को सिरे चढाने के लिए उन जैसे ही अधिकारियों की जरूरत पड़ती आई है और आइंदा भी पड़ती रहेगी।

सेवा का अधिकार आयोग के चेयरमैन के जिस पद पर गुप्ता गए हैं, उस आयोग के कामों से हरियाणा के ज्यादा से अधिकारी और कर्मचारी वाकिफ नहीं है। ये गुप्ता का वर्किंग इस्टाइल रहा है कि लगभग पूरा हरियाणा जल्द ही ये जान-समझ जाएगा कि ये आयोग चीज क्या है। वो यहां सिर्फ कुर्सी पर बैठने नहीं आए हैं। वो यहां काफी कुछ ऐसा रचने आए हैं जो उनसे पहले न तो किसी ने सोचा और न ही किया। गुप्ता से सरकार के लोगों से अनुराग पर ही साहिर लुधियानवी ने दशकों पहले ये लिखा था-

चेहरे पे खुशी छा जाती है,आंखों में सुरूर आ जाता है
जब तुम मुझे अपना कहते हो अपने पे गुरूर आ जाता है
तुम हुस्न की खुद एक दुनिया हो,शायद ये तुम्हें मालूम नहीं
महफिल में तुम्हारे आने से,हर चीज पे नूर आ जाता है

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