उड़ीसा के बाद छत्तीसगढ़ के कलेक्टर आई सुर्खियों में।2015 में एसडीएम के पद पर रहते हुए एक बार उनको रिश्वत लेते एसीबी ने रंगे हाथों पकड़ा था ।बाड़मेर, छत्तीसगढ़ में उड़ीसा के कलेक्टरों के अलग-अलग स्वरूप।आईएएस आईपीएस अफसर संवेदनहीन नहीं हो सकते और खास करके एक कलेक्टर तो कतई भी नहीं। अशोक कुमार कौशिक कुछ कलक्टर ऐसे भी होते हैं जो थप्पड़, घूंसा नहीं चलाते वह सच्चे मायने में जन सेवक होते हैं। यह है बाड़मेर राजस्थान का वीरान मरुस्थली क्षेत्र जहाँ पर कुछ बच्चे मिट्टी का घर बनाकर खेल रहे थे तभी वहां पर कलेक्टर गुजरते हैं और उन बच्चों को खेलते देख अपनी गाड़ी रूकवा लेते हैं और देखते हैं बच्चों ने जो घर बनाये हैं उनके लिए पक्की सड़कें भी बनाई हैं जिससे वो बहुत प्रभावित होते हैं और बच्चों को 500 रूपये उपहार स्वरूप तथा पूरे बाड़मेर में पक्की सड़क बनवाने का वचन देते हैं। छत्तीसगढ़ में कलेक्टर द्वारा युवक को थप्पड़ मारने के मामले में कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई है। बदसलूकी के आरोपी कलेक्टर रणबीर शर्मा का कार्रवाई के नाम पर सिर्फ ट्रांसफर हुआ है । न तो उनको बर्खास्त किया गया न ही निलंबित । ट्रांसफर करके रणबीर शर्मा को मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पद पर भेजा गया है । कलेक्टर के खिलाफ कार्रवाई तब मानी जाती अगर उनको सस्पेंड करके एफआईआर दर्ज होती और जांच बिठाई जाती । लोग बेवजह इस छोटी सी कार्रवाई पर भूपेश बघेल को हीरो बना रहे हैं । जितनी तारीफ हो रही है उतनी बड़ी कार्रवाई नहीं हुई है । रणबीर शर्मा का विवादों से पुराना नाता रहा है । भ्रष्टाचार जैसे गंभीर आरोप रणबीर शर्मा पर रहे हैं । 2015 में एसडीएम के पद पर रहते हुए एक बार उनको रिश्वत लेते एसीबी ने रंगे हाथों पकड़ा था। अब रणबीर शर्मा युवक को थप्पड़ मारने के बाद से चर्चा में हैं । ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई जरूरी है ताकि कोई दूसरा अधिकारी किसी आम नागिरक को इस तरह प्रताड़ित न कर सके। यह बात बेहद रोचक है मगर सच है कि छत्तीसगढ़ के मनबढ़ और मरकहे कलेक्टर का सर्वाधिक विरोध कांग्रेस ने किया। साकेत गोखले से लेकर तमाम नेताओं ने इस मामले में मुख्यमंत्री से फौरी कार्रवाई करने को कहा लेकिन बीजेपी दम्मी साधी बैठी रही। यह बात कांग्रेस को ज्यादा लोकतांत्रिक बनाती है। कांग्रेस यह चीज राहुल गांधी से और कारगर तरीक़े से सीख रही है। मुझे नेशनल हेराल्ड और नवजीवन में कांग्रेस के ही नेताओं के खिलाफ छापी गई खबरों का एक दौर याद आता है। हेरल्ड ने स्व कमलापति त्रिपाठी के रेलमंत्री होते ही रेल में बढ़ रहे अपराधों पर सीरीज चला दी थी, नवजीवन कांग्रेस शासित प्रदेशों में जबरदस्त मॉनिटरिंग करता था। जहां तक ब्यूरोक्रेसी का सवाल है कांग्रेस ने ब्यूरोक्रेसी को सिखाया कि सरकार तो जनप्रतिनिधि ही चलाएंगे आप केवल हमारे कहे का अनुसरण करेंगे। अब आप ही सोचिए प्रणव मुखर्जी, मणिशंकर अय्यर, कपिल सिब्बल की कार्यशैली का मुकाबला भला कोई नौकरशाह भला कैसे करेगा? बाबुओं को यस सर, नो सर से ज्यादा कहने की इजाजत नही होनी चाहिए। एक परीक्षा पास करके न तो जनता के न ही जनप्रतिनिधियों के सिर और बैठने की इजाजत होगी। जानकारी दे दें कि रणबीर शर्मा पर से भ्रष्टाचार का केस पूर्व एसीएस और भाजपा के बेहद नजदीकी अधिकारी के कहने पर हटाया गया था। आईएएस आईपीएस अफसर संवेदनहीन नहीं हो सकते और खास करके एक कलेक्टर तो कतई भी नहीं। पर जो घटना बीते कल छत्तीसगढ़ में हुआ। वह लोकतंत्र की हनन और मानवता की दमन करने से कहीं ऊपर था। एसडीएम को अगर एक बच्चे के साथ इस तरह की मारपिटाई करने में थोड़ी सी भी हिचकिचाहट नहीं हुई और वह भी दवा लेकर जाते हुए उस बच्चों के साथ। आखिर डीएम के अंदर इतनी अमानवता आई कहां से?क्या उनकी साहस दूसरे राज्य से प्रशासन द्वारा की गई सेतु का कार्रवाई या कहे तो दूसरे राज्यों की अफसरशाही शासन को देखते हुए मनोबल सातवें आसमान पर थीया उनकी उस वक्त मानसिक संतुलन खो गई थी।खैर यह तो छत्तीसगढ़ की बात थी उस डीएम साहब को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया। आगे का पता नहीं इस डीएम के साथ क्या होगा पर जिस तरह से बीते दिन उत्तर प्रदेश में हुई एक सब्जी बेचने वाला 17 साल की। बच्चे को पुलिसिया तंत्र के द्वारा पीट-पीटकर मार दिया गया और पोस्टमार्टम में स्पष्ट साबित हो गया कि उस बच्चे को चोट लगने से ही मौत हुई है। पर अभी तक उत्तर प्रदेश शासन प्रशासन कि कोई प्रतिक्रिया। इस पर नहीं आई क्या यह पुलिसिया तंत्र के मनोबल को सातवें आसमान पर नहीं पहुंचा रही है। इसी तरह पिछले लॉकडाउन में बिहार में लिपि सिंह के द्वारा माता के भक्तों के ऊपर गोली चलाई गई और उनकी प्रमोशन हो गई। क्या यह सरकार तंत्र इन जैसे अफसरों की मनोबल सातवें आसमान पर नहीं कर रहे? क्या इससे लोकतंत्र की हत्या नहीं होती? आज से 2 महीना पहले जो बिहार विधानसभा में हुआ माननीय स्पीकर महोदय के सामने विपक्ष के विधायकों को लात जूते से पीटा गया। अभी दो माह पूर्व राजस्थान के एक सीएमओ द्वारा एक व्यक्ति की बेरहमी से पिटाई करने का वीडियो वायरल हुआ था। उड़ीसा के एक कलेक्टर भी काफी सुर्खियों में रहे थे। लॉकडॉऊन और रात्रि कर्फ्यू के दौरान एक विवाह समारोह में नव दंपत्ति एवं पंडित के साथ दुर्व्यवहार को लेकर सुर्खियों में आए इस कलेक्टर के खिलाफ पांच भाजपा के विधायक विरोध में उतरे और कार्रवाई की मांग की थी। पर हुआ क्या वही अक्सर जो होता है, केवल तबादला। इस पर भी अभी तक कोई भी अवसर के ऊपर कोई कार्यवाही नहीं हुई क्या वह लोकतंत्र की हत्या नहीं था? इस तरह की बहुत सारी घटना है जो आम जनता के साथ फट रही है इसके खिलाफ कोई आवाज बंद नहीं करता। आखिर इसके पीछे की वजह क्या है जरा सोचने पड़ेगी क्या मुल्क में अब लोकतंत्र बस एक मजाक बनकर रह गई है। क्या पुलिसिया तंत्र जब चाहे तब किसी को पीट सकता है या किसी को भी गिरफ्तार कर कर जेल में डाल सकता है इस पर पुनर्विचार होनी चाहिए? Post navigation जश्न नहीं , सेवा का अवसर ,,,? दंगल से अपराध की दुनिया तक , तिरंगे से कोर्ट कचहरी तक