अब सकारात्मकता का राग क्यों अलाप रहे हो?

अशोक कुमार कौशिक 

आप जब निकम्मेपन पर खीजें तो सरकार और सरकार के मुखिया को न तो कोसें और न ही नरेंद्र मोदी का नाम लें। शायद एक, हुक्म जारी हुआ है कि, नरेंद्र मोदी और प्रधानमंत्री की जगह, वर्तमान आपदा प्रबंधन के लिए, सिस्टम का नाम लें और 2014 के बाद साकार साक्षात ईश्वर के रूप में गढ़े जा रहे, नरेंद मोदी की जगह निराकार सिस्टम को ही कोसें। 

आप मरें या बीमार पड़े, पर नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री, भारत की क्षवि पर उन चिताओं की आंच न आने दें, जो प्रोटोकॉल के अनुसार, लाइन में लग कर जलाई जा रही हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि आज के इस बदहालात के लिये, केवल और केवल सरकार की प्राथमिकताएं, नीतियां, और कुशासन ही जिम्मेदार है। सरकार जिम्मेदार है। सरकार के मुखिया के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिम्मेदार हैं। वे ही सिस्टम के प्रमुख हैं।

अब ख़बर है कि कोरोना काल में देश के नागरिकों का मनोबल को बढ़ाने’ के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ‘पॉज़िटिविटी अनलिमिटेड’ के नाम से एक कार्यक्रम करने जा रहा है, जो आज से यानी 11 मई से शुरू होकर 14 मई तक चलेगा। इस कार्यक्रम में विप्रो के अध्यक्ष अज़ीम प्रेमजी, इन्फ़ोसिस फ़ाउंडेशन की अध्यक्ष सुधा मूर्ति और सरसंघचालक मोहन भागवत इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए देश को संबोधित करेंगे। कुछ अन्य लोगों के भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने की संभावना है। जग्गी वासुदेव, रविशंकर, संत ज्ञानदेव और जैन मुनि प्राणनाथ भी इस चार दिवसीय कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। हर दिन दो व्यक्ति टीवी पर लगभग 15 मिनट तक बातचीत करेंगे कि कैसे इस संकट की घड़ी में सकारात्मक रहा जाए और एकजुट होकर कोविड के ख़िलाफ़ जंग जीती जाए।

ऐसे वक़्त में जब हर बस्ती में घबराहट हो और हर गली में मातम पसरा हो, देश के लोगों को सचमुच अपने कंधे पर उस हाथ की ज़रुरत है, जो उन्हें आश्वस्त कर सके कि वे अकेले नहीं हैं, उनका दुःख केवल उनका नहीं है। कोई हो जो भरोसा दे कि अँधेरी सुरंग के दूसरे छोर पर रौशनी भी है। लेकिन ज़ाहिर है कि सरकार – अधिसंख्य जनता जिसे माई-बाप मानती है, लोगों को आशंकाओं – कुशंकाओं से उबारने में असफल हो चुकी है और लोग उससे बेतरह नाराज़ हैं। सरकार के समर्थक पहले से ही सोशल मीडिया पर लोगों से सकारात्मक होने का आग्रह कर रहे हैं, लेकिन उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि दिन के हर पहर जब किसी न किसी प्रियजन या परिचित के न रहने की ख़बर मिलती हो, तब सकारात्मक कैसे रहा जा सकता है। 

इन हालात में संघ की यह पहल कितनी कारगर होगी, यह आने वाले समय में ही पता चलेगा। वैसे कार्यक्रम की अवधि देखकर अनुमान होता है कि यह एक तरफ़ा संवाद ही होगा। अगर ऐसा हुआ तो इस कार्यक्रम और मोदी जी की मन की बात या प्रवचननुमा राष्ट्र के नाम सन्देश में क्या फ़र्क़ रह जाएगा ? कुछ और सवाल भी हैं कि क़रीब डेढ़ साल से कोरोना का दंश भुगतते आ रहे समाज को चार दिन का कार्यक्रम कितनी राहत दे पाएगा ? धर्म और आध्यात्म के नाम पर चौबीस घंटे चलने वाले सैकड़ों चैनल पहले से मौजूद हैं, यदि वे लोगों को ढाढ़स नहीं दे पा रहे हैं तो चार दिन के कुल जमा एक घंटे में कौन सा चमत्कार हो जाने वाला है ? अगर यह कार्यक्रम पूरे देश के लिए है तो क्यों हिन्दू और जैन समुदाय के गुरु ही इसमें शामिल किए जा रहे हैं ?

दरअसल, इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक ख़बर बताती है कि कोरोना की दूसरी लहर से जो हालात बने हैं, संघ और भाजपा के आला नेता उन्हें लेकर रक्षात्मक मुद्रा में हैं। वे सहमत हैं और चिंतित भी कि कोरोना के भय से कोई परिवार अछूता नहीं है और सरकार के प्रयास लोगों को आश्वस्त नहीं कर पा रहे हैं। ऑक्सीजन की आपूर्ति जैसे मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने सरकार को कठघरे में खड़ा कर ही रखा है। हालांकि ज़ाहिर तौर पर ये नेता स्वीकार नहीं कर रहे हैं कि सरकार ने दूसरी लहर के संकेतों को समझने में चूक की है, उलटे वे कहते हैं कि ये सब अचानक और अप्रत्याशित तरीके से हुआ। वे यह भी नहीं मानते कि कोरोना की पहली लहर से निपटने के लिए प्रधानमंत्री की प्रशंसा में प्रस्ताव पारित करने में कोई जल्दबाज़ी की गई है। 

इस ख़बर के मुताबिक भाजपा के नेता इस सवाल से बचते हैं कि आख़िर ज़िम्मेदारी किसकी है। हालाँकि संघ के एक नेता निर्णय लेने की केंद्रीकृत व्यवस्था को कुसूरवार ठहराते हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में ज़रुरत से ज़्यादा केन्द्रीकरण है और प्रधानमंत्री को दिए जाने वाले फ़ीडबैक की गुणवत्ता में बड़ी कमियां हैं। इसका उदाहरण है कि प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार दूसरी लहर को आते नहीं देख सके और उन्होंने तीसरी लहर की भविष्यवाणी कर दी। संघ के इन नेता जी को लगता है कि केंद्रीय नेतृत्व के इर्द-गिर्द जो लोग हैं, उनकी ज़िम्मेदारी तय करने का कोई तंत्र नहीं है। वे प्रधानमंत्री को खुश रखने की कोशिश करते हैं। इसलिए अगर कहीं कुछ ग़लत हो रहा हो तो समय रहते कोई उन्हें आगाह नहीं करता। 

संघ और भाजपा अपनी सरकार की चूक और कमियों को मंज़ूर करें या न करें, उनके कथनों से साफ़ है कि वे पहले ही जन्नत की हक़ीक़त से वाक़िफ़ हैं, लेकिन सकारात्मकता का राग छेड़कर वे लोगों का दिल बहलाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके पहले खबरिया चैनलों के जरिए सारा दोष ‘सिस्टम’ पर मढ़ने की कोशिश की गई, मानो ‘सिस्टम’ किसी दूसरे ग्रह से आया हुआ कोई प्राणी हो। हाल ही में तीन सौ आला अफ़सरों से ऐसी ख़बरें देने के लिए कहा गया है, जिनसे सरकार संवेदनशील, साहसी, मेहनती और तुरंत कार्रवाई करने वाली नज़र आए। इस तरह गढ़ी जाने वाली सरकार की सकारात्मक छवि को स्वीकार करने के लिए लोगों का सकारात्मक होना ज़रूरी है। संघ की पहल को इसी रौशनी में देखा जाना चाहिए।

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