खुली बनाम बंद मुट्ठी

हरियाणा सरकार का बजट पास होने के बाद मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने रस्मो रिवाज के मुताबिक अपने सरकारी आवास पर नेताओं-अफसरों-पत्रकारों को डिनर दिया। यहां मौजूद किस्म किस्म के लोग किस्म किस्म की बात कर रहे थे। डिनर के बाद सड़क किनारे टहलते हुए एक सीनियर आईएएस अधिकारी ने नौकरी करने के तरीके के बारे में अपना एक शानदार अनुभव सांझा किया। उनके इस किस्से से काफी कुछ सीखा जा सकता है। ये किस्सा वर्ष 1996 में आई बंसीलाल सरकार के समय का है। ये साहब तब रोहतक के डीसी थे। साहब एकमात्र डीसी थे जो कि उस से पिछली भजनलाल सरकार में भी रोहतक डीसी थे और उसके बाद बंसीलाल सरकार ने भी उनकी कुर्सी रोहतक से नहीं डिगाई। इन साहब को छोड़ कर अन्य 15 जिलों के डीसी का बंसीलाल सरकार में आते ही तबादला हो गया था।

किस्सा कुछ यंू है कि रोहतक में बाजारों से अतिक्रमण हटाने के लिए इन साहब ने बंसीलाल सरकार में खास अभियान चलाया। इस से परेशान होकर कई दुकानदार रोहतक के तत्कालीन विधायक और सरकार में ताकतवर मंत्री सेठ श्रीकिशनदास के पास पहुंच गए। उनको अपनी परेशानी से अवगत करवाया। सेठ जी ने झट से डीसी को फोन मिलवाया। सेठ जी ने सधे हुए और मंझे हुए अंदाज में डीसी को कह दिया कि इस तरह से दुकानदारों को परेशान करना उचित नहीं है। ये सुनते ही डीसी भड़क गए। उन्होंने फोन पर खरी खरी सुना दी कि यंू शहर में अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कानून का राज चलेगा। आपको अतिक्रमण करने वालों को यंू शह नहीं देनी चाहिए। अगर आप लोग ही इस तरह से अवैध कब्जा करने वालों को सरपरस्ती देंगे तो फिर काम कैसे होगा? सरकार में रह कर सरकार के लोगों को गलत काम करने वालों को बढावा नहीं देना चाहिए। डीसी अपनी धुन में कहे जा रहे थे। उनको शायद ये अंदाजा नहीं था कि मंत्री जी तो अचानक से अपने सिर आई बला को टालने की खातिर उनको फोन कर रहे हैं। अब इतने सारे लोग एक साथ मंत्री जी के सामने पेश होकर कुछ कहेंगे तो फिर उनको तो अपना फर्ज निभाना ही पड़ेगा न। फोन मिलाना ही पड़ेगा। लोगों को दिखाना ही पड़ेगा। लेकिन ये साहब मंत्री जी की इस मजबूरी को नहीं समझ रहे थे। इस कारण से मंत्री जी की लोगों के सामने असहज स्थिति हो गई। मंत्री जी ने अपनी बला टालने की खातिर इन डीसी को कह दिया कि इन दुकानदारों का शिष्टमंडल आप से मिलेगा। आप इनकी सुनवाई करो।

इधर, डीसी तो अपनी धुन में कहे जा रहे थे। बहे जा रहे थे। दो टूक कह दिया कि मैं इन से क्यूं मिलूं? इन दुकानदारों से मिल कर क्या होगा? मैंने गलत क्या किया है? इनको अपने अवैध कब्जे हटाने ही होंगे। ऐसे नहीं चलेगा जी। अतिक्रमण के कारण बाजार में लोगों का निकलना मुश्किल हो गया है। सेठ जी होशियार आदमी थे। चिट्ठी को तार समझ लेते थे। उन्होंने किसी तरह से शिष्टमंडल को टाल मटोल कर अपने यहां से वापस किया। इसके बाद सेठ जी ने अपने पीए से फिर डीसी को फोन मिलवाया। पीए ने बताया कि कल सुबह मंत्री जी डीसी से घर मिलने आएंगे। अगले दिन सवेरे सवेरे मंत्री जी डीसी की कोठी जा पहुंचे। डीसी से इधर उधर की बतियाने के बाद वो सीधे प्वाइंट पर आ गए। डीसी से पूछा कि आपकी उम्र कितनी है? डीसी ने बताया 32 बरस। मंत्री जी बोले-मेरी उम्र है 72 बरस। आप की उम्र से दोगुनी से भी ज्यादा। मेरा तर्जुबा आप से बहुत ज्यादा है। आप को एक सुझाव दे रहा हंू। आपके काम की बात कह रहा हंू। आप का काम गरमाई का है और मेरा नरमाई का है। हम दोनों की मुट्ठी बंद रहनी चाहिए। जैसे मुट्ठी खुलने के बाद इसकी पोल खुल जाती है कि मुट्ठी में क्या है, इस तरह से हम दोनों को ही अपनी पोल नहीं खुलवानी। आपको अपनी नौकरी-अपना काम इस तरह से करना चाहिए कि न आपकी पोल खुले और न ही मेरी पोल खुले। दोनों के बारे में ही लोगों को गलतफहमी बनी रहे।

सेठ जी की कही बात इन साहब के दिल में उतर गई। उनको अहसास हुआ कि उनको आइंदा से जोश जोश में फैसला नहीं करना है। पहले सब पक्षों की सुननी है। या कहें कि सुनने का अभिनय तो निश्चित तौर पर करना ही है। ताकि सबको तसल्ली हो सके कि उनकी बात सुनी गई है। उसके बाद बेशक वो फैसला वहीं कर लें जो कि उन्होंने पहले से ही तय कर रखा था,लेकिन फैसला लोगों की सुन कर ही करना है। इस से न तो नेता की पोल खुलती है और न ही अफसर की। लोगों की सुनने के बाद किसी समस्या के ऐसे अनछुए-अनछिपे पहलू भी पता लगते हैं जो पहले से जानकारी में नहीं होते। इस से ठीक से फैसला लेने में आसानी होती है। जानकारी के लिए बता दें कि दो सरकारों में लगातार एक ही शहर में डीसी रहने वाले ये साहब वित्त विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव टी.वी.एस.एन. प्रसाद हैं। इस हालात पर कहा जा सकता है:
एक से मिल कर सब से मिल लीजिए
आज हर शख्स है नकाबों में

हरियाणा पुलिस का जवान

मामला जब डयूटी का हो तो हरियाणा पुलिस के जवान हद से गुजरने को लालायित रहते हैं। डयूटी में कोताही उनके सिंद्धातों के सख्त खिलाफ है। ऐसा ही कुछ बिजली मंत्री रणजीत के सरकारी आवास पर हुआ। मंत्री जी ने नेताओं-अफसरों-पत्रकारों को अपने यहां डिनर पर बुलाया हुआ था। उनके आवास पर मौजूद हरियाणा पुलिस के एक कमांडो पूरे मनोयोग से डयूटी दे रहे थे। डिनर पर आने जाने वालों की पूरी पड़ताल कर रहे थे। कह रहे थे कि इस डिनर पर सिर्फ विधायकों और मंत्रियों को ही बुलाया गया है। बाकि किसी को यहां आने की इजाजत नहीं है। ये विषय जब मंत्री जी के स्टाफ के संज्ञान में आया तो उन्होंने उन नीलीवर्दीधारी कमांडों से प्रार्थना की कि आप अपनी डयूटी को इतनी गंभीरता से न करें। हम पर रहम करें। जो लोग यहां आ रहें हैं, उनको आने दें। मंत्री जी ने ही इन सबको फोन करके-करवा के-न्यौता भेज कर अपने यहां बुलाया है। अगर ऐसे कर्त्तव्यनिष्ठ पुलिस वाले इन मंत्री जी के जिले-विधानसभा क्षेत्र में तैनात हो जाएं तो उनको अगले चुनाव में भारी भरकम मतों से जिताने का फौकट में प्रबंध कर सकते हैं। इस हालात पर कहा जा सकता है:
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसाँ उतारता है कोई
देर से गूंजते हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई

कांग्रेसी अरमान

एक डिनर सोनीपत के विधायक सुरेंद्र पंवार ने पत्रकारों को चंडीगढ ताज होटल में दिया। ये डिनर सोनीपत में कांग्रेसी मेयर बनने और बरौदा विधानसभा उपचुनाव में पार्टी उम्मीदार इंदुरराज नरवाल के जीतने की खुशी में दिया गया था। विपक्ष के नेता भूपेंद्र हुडडा इस डिनर में मुख्य मेजबान की सी भूमिका में थे। उनके सांसद पुत्र दीपेंद्र भी इस मौके पर हाजिर हुए। यहां पर मनोहर सरकार के बारे में कई तरह की चर्चाएं हो रही थी। उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाने के बाद क्या कभी हरियाणा में ऐसी परिपाटी भी दोहराई जा सकती है? इस सवाल पर एक कांग्रेसी नेता कहने लगे कि होने को तो कुछ भी हो सकता है,लेकिन हमारी हार्दिक इच्छा है कि मनोहरलाल ही सीएम की कुर्सी पर अपना बाकी कार्यकाल पूरा करें। वो सीएम रहें तो हमें अगली सरकार बनाने से कोई नहीं रोक सकता। इस माहौल पर कहा जा सकता है:
अल्फाज तो जमाने के लिए हैं
तुम आना-हम तुमको दिल की धड़कन सुनायेंगे

धनखड़ का इंतजाम

एक डिनर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने भी दिया। धनखड़ पत्रकारों और पत्रकारों की जरूरतों का आमतौर पर ख्याल रखते हैं। इस डिनर में उन्होंने वो सब इंतजाम खास तौर पर किए करवाए थे, जिसका प्रबंध करने से भाजपाई अमूमन हिचकते हैं। अपनी जरूरत का मन माफिक साजो सामान-इंतजाम पाकर पत्रकारों ने उदारता के साथ इस डिनर को ओब्लाईज किया। धनखड़ के डिनर पर कहा जा सकता है
बंजारे हैं रिश्तों की तिजारत (व्यापार) नहीं करते
हम लोग दिखावे की मोहब्बत नहीं करते

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