दाव पर न केवल खेती-किसानी, बल्कि अर्थव्यवस्था, उपभोक्ता और इस देश का लोकतंत्र है-कुलदीप बिश्नोई

कपिल महता

हिसार, 15 फरवरी : कांग्रेस केन्द्रीय कार्यसमिति के सदस्य एवं विधायक कुलदीप बिश्नोई ने आज स्थानीय लघु सचिवालय के सामने विशाल किसान सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि तीनों कृषि कानून इतने खतरनाक हैं कि इनको पूरी तरह से वापिस लिए बगैर कुछ भी होने वाला नहीं है। सरकार संशोधन की बात कह रही है, जबकि इन बिलों में इतनी ज्यादा खामिया हैं शंशोशनों से कुछ नहीं होगा।

इन कानूनों के सिर्फ एक सेक्शन का उदाहरण मैं आपको दे देता हूं:-
जो कांट्रेक्ट फार्मिंग है, उसकी धारा 3 के तहत जो किसान और व्यापारी के बीच कांट्रेक्ट होगा उसमें लिखा जाएगा कि

किसान को कौन सी फसल उगानी है?

उस फसल का ग्रेड क्या होगा, स्टैंडर्ड क्या होगा और उसकी क्वालिटी क्या होगी?

उस फसल को उगाने के लिए जो बीज, खाद, कीटनाशक और जो मशीनरी प्रयोग होगी वह सब किसान को जिस व्यापारी के साथ समझौता हो रहा है, उससे लेना होगा।

इसी कांट्रेक्ट में लिखा जाएगा कि जो फसल तैयार होगी, उसकी कीमत क्या होगी, साथ ही ये भी लिखा जाएगा कि इस फसल की कितनी बार चैकिंग होगी? फसल जब बढ़ रही होगी उस समय और फसल जब कट रही होगी और जब व्यापारी खरीदेगा तो तो उस समय उसकी क्वालिटी क्या होगी। तीन बार उस फसल की चैकिंग होगी। इस दौरान कुलदीप बिश्नोई के नेतृत्व में बरवाला वासी राह ग्रूप के हरियाणा प्रभारी श्रवण वर्मा ने साथियों सहित कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा की।

कुलदीप बिश्नोई ने कहा कि इस कानून के हिसाब से मानिए कि पूरे देश की जमीन का कांट्रेक्ट किसानों का व्यापारियों के साथ हो गया। व्यापारियों से एग्रीमेंट होने के बाद सारी जो फसल है वह कहां जाएगी? व्यापारी के घर। इसका मतलब हुआ कि सरकार के पास खरीदने के लिए एक दाना नहीं बचेगा? व्यापारी कितनी फसल खरीद सकता है पहले उस पर प्रतिबंध था, जो अब नए कानूनों में हटा दिया गया है। नए आवश्यक वस्तु अधिनियम से वह खरीद लिमिट से बाहर जा जाएगा। इसका मतलब ये है कि व्यापारी जितनी चाहे फसल खरीदकर अपने गोदाम में रख सकता है। जब पूरी फसल व्यापारी के पास आ जाएगी तो सरकार कहां से गरीबी रेखा से नीचे लोगों को दिए जाने वाला सस्ता अनाज लाएगी?

2013 में यूपीए सरकार ने नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट बनाया था देश के 82 करोड़ लोगों को सस्ता अनाज दिए जाने के लिए। ये कानून लागू होने से किस प्रकार से गरीब लोगों को सस्ता अनाज मिल सकेगा? जब सारा अनाज व्यापारियों के पास चला जाएगा तो सरकार कहां से 82 करोड़ गरीब लोगों के लिए सस्ता अनाज लाएगी? जो 5 लाख राशन की दुकानें थी, वो सब खत्म हो जाएंगी। उन सबका रोजगार खत्म हो जाएगा। जब किसान को सभी चीजें खाद, बीज, कीटनाशक, मशीनरी सहित सभी तकनीक व्यापारी से ही लेनी होगी तो सोचिए इन सबका का काम करने वाले लोगों के रोजगार का क्या होगा? वो सब खत्म? व्यापारी खत्म कर दिए, गरीब मजदूर खत्म कर दिए। किसान को आपने बंधक बना दिया, अपनी जमीन पर मजदूर बना दिया।

कैसे मैं बताता हूं- बिलों में किसान को इतनी भी छूट नहीं दी गई जैसे कि आज की तारीख में उसको एक दुकान से बीज, कीटनाशक, खाद आदि ठीक नहीं मिला तो वह दूसरी दुकान से खरीद लेता है या तीसरी दुकान से, परंतु इस कांट्रेक्ट के बाद उसे उसी व्यापारी से यह सब सामान खरीदना होगा। जब व्यापारी के साथ ही किसानों का सब समझौता होगा तो कोई बैंक उसे लोन नहीं देगा। तो उसे जरूरत के समय पैसे भी व्यापारी से ही लेने होंगे। सरकार कहती है ना कि जमीन नही ंजाएगी ऐसे जाएगी जमीन। धीरे-धीरे वह व्यापारी का कर्जवान हो जाएगा और उसकी जमीन व्यापारी की हो जाएगी। खेतों में कम्पनियां घुस गई और सरकार ने अपना पल्ला किसान से झाड़ लिया तो अर्थव्यवस्था का कोई क्षेत्र, कोइ्र मजदूर, कर्मचारी, छोटा दुकानदार, कारीगर सुरक्षित नहीं रहेगा। देश चंद रईसों का बंधक हो जाएगा।

कुलदीप बिश्नोई ने कहा कि 1947 से पहले जो साहूकार होते थे वो ऐसे ही करते थे। किसान को पैसा दिया। वो उस पैसे पर इतना ब्याज परब्याज लगा देते थे कि किसान उसे भर पाने में असमर्थ हो जाता था और उसकी जमीन साहूकार की हो जाती थी। कांग्रेस ने यह सब खत्म किया था, लेकिन वर्तमान सरकार देश में फिर से उसी व्यवस्था को थोपना चाहती है। कहा जा रहा है कि यह किसानों के खिलाफ बिल है, नहीं बल्कि यह पूरे देश की जनता के खिलाफ बिल है। चंद व्यापारियों के हाथों में यह देश जाने वाला है। देश में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा, जिस पर इन कानूनों का असर नहीं पड़ेगा। किसान ये बातें समझ चुका है, इसलिए वह महीनों से आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार होकर आया है।

दूसरी बात सरकार कह रही है कि हमने काफी बातें किसानों की मान ली हैं। ये सब झूठ है। सरकार जिन संशोधनों पर तैयार हुई है, वो मुद्दे छोटे हैं। जैसे किसान को अदालत में जाने का अधिकार, व्यापारियों का पंजीकरण इत्यादि। बुनियादी नीति में सरकार ने अब तक कोई परिवर्तन स्वीकार नहीं किया है। दाव पर न केवल खेती-किसानी है, न केवल अर्थव्यवस्था और उपभोक्ता है, बल्कि इस देश का लोकतंत्र है। इन कानूनों से असली आजादी तो विशालकाय कम्पनियों को मिलेगी और नुकसान किसान और छोटे व्यापारी, आढ़ति को होगा। इसका सबसे अधिक नुकसान तो असल में उपभोक्ता को होगा, क्योंकि बड़े व्यापारी और कम्पनियां खाद्य पदार्थों की कालाबाजारी करके इनकी कीमतों में मनमाफिक बढ़ोतरी कर सकेंगें। जैसे स्कूलों के निजीकरण के बावजूद बच्चों पर टयूशन और कोचिंग का बोझ और मां-बाप पर खर्च का बोझ बढ़ा है, यही हाल अब भोजन खर्च का भी हो जाएगा।

केन्द्रीय बजट से भी किसानों को घोर निराशा हुई है। कृषि बजट में ही 6 प्रतिशत की कटोती कर दी गई। पीएम किसान योजना जिसका सरकार ढोल पीटते नहीं थकती, उसमें भी 13 प्रतिशत कटौती कर दी गई है। कांग्रेस द्वारा 70 सालों में खड़े किए गए बड़े-बड़े सरकारी संस्थान जो इस देश की शान हैं, उनको बेचा जा रहा है। इस देश को भाजपा कहां ले जा रही है जरा सोचिए।

इस दौरान रणधीर पनिहार, संजय गौतम, विनोद निर्मल, बलदेव खोखर, विक्रांत बिश्नोई, जयवीर गिल, गुलजार काहलो, पंकज दिवान, सुशील शर्मा, अजय जांगड़ा, राजेश सिहाग, संदीप डोभी, नरेश लाडवा, हर्ष बामल, कैलाश मंडावरिया, देवेन्द्र सैनी, दलबीर बचाना खेड़ा, सुनील कुंडू, विनेाद मंगाली, अनिल लितानी, जितेन्द्र भोलू आदि उपस्थित थे।

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