-कमलेश भारतीय

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर संवेदनशील किसान आंदोलन पर फैसला सुना कर सरकार को चेताया
है कि किसानों को शांतिप्रिय आंदोलन से रोक नहीं सकते लेकिन किसानों को भी चाहिए कि आम नागरिक की ज़िंदगी में कोई रुकावट न पैदा करें । देखा जा रहा है कि हर विवादास्पद फैसले पर आज सरकार से ज्यादा संवेदनशील सुप्रीम कोर्ट है । ऐसा क्यों ? सरकार लोगों के चुने हुए प्रतिनिधियों की होती है और वही इस तरह आमजन की मांगों के प्रति आंख मूंद कर बैठ जाती है कि सुप्रीम कोर्ट का द्वार खटखटाना पड़ता है । क्या सरकार अंधी, गूंगी और बहरी है ? क्या उसे किसानों का इस कंपकंपाती सर्दी में आंदोलन नज़र नहीं आ रहा या गोदी मीडिया इसे देने और दिखाने के मूड में नहीं है ? अभी योगी , राजनाथ सिंह जैसे नेताओं के इंटरव्यूज दिखा दिखा कर इन तीन काले कानूनों को सही ठहराने में लगा है । काहे का मीडिया और काहे का समाज का आइना? अरे यार किसानों के बीच भेजो न अपने रिपोर्टर । क्या डर है? किसका डर है ? किसका दवाब है ?

किसान तो सोशल मीडिया का सहारा लेकर देश विदेश तक अपनी बात फहुंचा रहे हैं । यहां तक कि भारतीय दूतावासों के सामने प्रदर्शन हो रहे हैं कैसी भूमिका निभा रहे हो मीडिया बहादुरो । बात कहां तक पहुंची और आप कहां बैठे रह गये ? आपकी विश्वसनीयता दांव पर लगी है और साख घटती जा रही है । बंगाल में भी भगवा ही भगवा दिखता है और राजस्थान में भी । आप ऐसे रेफरी बन चुके हो जो एक पक्ष के साथ मिलते जा रहे हो आपकी भूमिका संदिग्ध होती ज् रही है आम आदमी की नज़र में ।

अरे सुना ? अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में तीनों कानून फाड़ कर फेंक दिये । दिखाओगे नहीं आका के डर से ? उत्तराखंड भाजपा के किसान संगठनों को भगा दिया प्रदर्शन करने पर । कौन सच्च दिखायेगा? किसान आंदोलन का मीडिया दिखा रहा है । ट्रैक्टर ट्राली पर बनाया मीडिया न्यूज रूम और इतने प्रभावशाली ढंग से कवरेज कर रहा है और कितने सुसज्जित न्यूज रूम में आप कितनी खूबसूरती से झूठ पे झूठ बोले जा रहे हो । है कोई मुकाबला ?

सुप्रीम कोर्ट की बात कौन मानेगा? यह भी कहा है सरकार से कि जब तक इन पर कोई ढंग से फैसला नहीं होता तब तक इन कानूनों पर अमल न किया जाये । यह गेंद सरकार के पाले में है । क्या करती है देखना बाकी है ।

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