भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

बरौदा उपचुनाव में आज 24 नामांकन हो गए लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में ही है। जैसा कि हमने कल ही लिखा था कि टिकट का फैसला रात्रि में होगा, वही हुआ। मनोहर लाल अपना वर्चस्व कायम रखते हुए अपने मनपसंद उम्मीदवार योगेश्वर दत्त को टिकट दिला लाए, जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा कपूर नरवाल को टिकट दिलाना चाहते थे लेकिन कुमारी शैलजा के विरोध के चलते उसमें सफल नहीं हुए। इंदुराज नरवाल उर्फ भालू को टिकट मिली लेकिन हुड्डा के लिए प्रसन्नता की बात यह है कि वह भी उनके विश्वास का आदमी है और वह प्रसन्न हैं।

इस प्रकार जैसा कि हमने कहा था कि यह भूपेंद्र सिंह हुड्डा और मनोहर लाल खट्टर के वर्चस्व की लड़ाई है। पहली बाजी में तो मनोहर लाल ने दिखा दिया कि वह हाईकमान से अपनी मर्जी के उम्मीदवार को टिकट दिला लाए और यह सत्य भी है। हमने भी लिखा था कि मनोहर लाल ने कई माह पूर्व ही योगेश्वर दत्त को चुनाव की तैयारी के लिए कह दिया था और आज योगेश्वर दत्त ने भी कहा कि वह अपनी टिकट के लिए पूर्ण आश्वस्त थे लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी पीछे नहीं रहे। विरोध के बावजूद भी अपनी पसंद के उम्मीदवार को टिकट दिला लाए। शायद यह उनकी कूटनीति भी हो कि नाम किसी का उछालो और फिर समझौते में टिकट किसी को दिला दो।

मनोहर लाल खट्टर अपने पसंद के उम्मीदवार को टिकट तो दिला लाए, आंकड़े यह भी कहते हैं कि भाजपा और जजपा की वोट अगर मिल जाएं तो भाजपा उम्मीदवार भारी अंतर विजय प्राप्त करेगा परंतु वास्तविकता में ऐसा होता नजर आ नहीं रहा राजनैतिक विश्लेषकों की दृष्टि में, क्योंकि आज नामांकन के समय जजपा का कोई नेता योगेश्वर के साथ दिखाई नहीं दिया। राजनीति में छोटी बातों के गहरे अर्थ होते हैं। दूसरी ओर प्रदेश अध्यक्ष ने प्रदेश प्रभारी भी जाट बनाया था और वह जाट को ही टिकट देना चाहते थे। वह क्षेत्र भी जाट बाहुल्य है। ऐसे में जजपा का जाट वोटर भाजपा के साथ न जाकर कहां जाएगा, यह बड़ा प्रश्न है।

कल मुख्यमंत्री ने चेयरमैनों की घोषणा की। वह राजनैतिक हल्कों में जजपा को साधने का प्रयास बताया गया लेकिन आज बरवाला के विधायक जोगीराम सिहाग ने उनकी उस योजना पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया यह कह कर कि वह यह पद स्वीकार नहीं कर सकता, वह किसान हैं और तीनों कृषि कानूनों के समर्थन में नहीं हैं। यदि उन्हें विधायक पद से त्याग पत्र देना पड़ा तो भी दे दूंगा। यह समस्या नामांकन के दिन ही पैदा हुई और सवाल तो यह भी उठ रहे हैं कि कल चुनाव आचार संहिता में मुख्यमंत्री ने जो चेयरमैन नियुक्त किए, वह उचित हैं या कहीं आचार संहिता का उल्लंघन है।

अब भाजपा की संगठन की बात करें तो संगठन के प्रदेश अध्यक्ष तो इस उम्मीदवार से अंदर से तो प्रसन्न होंगे नहीं लेकिन मोदी भक्त हैं, मुखर होकर कुछ कहेंगे भी नहीं और साथ लगे रहेंगे। परंतु प्रश्न यह है कि शरीर से साथ लगे रहने और शरीर के साथ मान से साथ रहने में जो अंतर होता है क्या वह नजर आएगा? उन्होंने जो प्रभारी जाट बनाया था, क्या उसका लाभ वह ले पाएंगे? इन सभी बातों से प्रश्न यह खड़ा होता है कि यह चुनाव मुख्यमंत्री की रणनीति से लड़ा जाएगा या प्रदेश अध्यक्ष की रणनीति से? और यदि यह स्पष्ट नहीं हुआ तो दोनों समय-समय पर अपनी रणनीति चलाएंगे और उसका क्या परिणाम होगा, यह कहने की बात नहीं।

अब बात करें भूपेंद्र सिंह हुड्डा की तो उनका खेमा आज प्रसन्न नजर आ रहा था। कारण शायद यही रहा हो कि वह अपने मनपसंद उम्मीदवार को टिकट दिलाने में कामयाब रहे और नामांकन पर भी कुमारी शैलजा, किरण चौधरी सहित कई विधायकों की मौजूदगी उनके नामांकन की शोभा बढ़ा गई। प्रश्न यहां भी यही है कि यह चुनाव कांग्रेस लड़ेगी या भूपेंद्र सिंह हुड्डा? आज की स्थिति देखकर तो लगा कि जो अब तक माना जा रहा था कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने दम पर ही चुनाव लड़ेंगे, उसमें उन्हें कांग्रेस का समर्थन भी मिलता नजर आ रहा है। इस प्रकार विश्वास की बात देखो तो वह कांग्रेस खेमे में अधिक नजर आया।

भाजपा की ओर से सूत्रों से समाचार मिले कि चुनाव जनता विरूद्ध हो तो भी रणनीति से जीता जा सकता है। अर्थात मुख्यमंत्री इस चुनाव को एक रणनीति के तहत जीतने का मनसूबा बनाए हुए हैं। अब वह रणनीति क्या होगी, यह तो बेहतर रणनीति बनाने वाला ही बता सकेगा। हम तो अनुमान लगा सकते हैं कि पूरे प्रदेश के कार्यकर्ताओं को वहां प्रचार के लिए भेजा जाए, सत्ता के जो लाभ लिए जा सकते हैं वह लिए जाएं और एक नारा जो अभी से चलने लगा है कि बरौदा सत्ता के साथ, वह भी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। फिर वर्तमान में चुनाव में धन का बहुत महत्व होता है तो धन के मामले में भाजपा किसी भी अन्य दल से कहीं आगे है।

वर्तमान में तीन कृषि बिलों ने माहौल भाजपा के विरूद्ध बना रखा है। हालांकि भाजपा ट्रैक्टर यात्राएं बिलों के समर्थन में कर रही है, जिससे यह दिखा सके कि किसान उसके साथ हैं परंतु धरातल पर इसका कोई अंतर पड़ता नजर आ नहीं रहा। ऐसी स्थितियों में भाजपा को किसानों और जाटों का आक्रोश तो झेलना ही होगा।

भाजपा से जो किसान और जनता की नाराजगी है, वह भाजपा को वोट देने से दूर करेगी। ऐसे में जो फ्लोटिंग वोटर होता है, वह यह देखता है कि जो इस पार्टी को हरा सकते हम उसे वोट डाल दें तो वह वोट कांग्रेस की ओर जाने की संभावना है। हालांकि यह भी माना जाता है कि बरौदा भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ है लेकिन फिर भी चुनाव तो चुनाव होता है।

अभी और बहुत बातें रह गई हैं जैसे जो निर्दलीय उम्मीदवार खड़े हैं, उन्हें किसने खड़ा किया है। आने वाले समय में कौन वापिस नाम लेगा, राजकुमार सैनी, कपूर सिंह नरवाल चुनाव लड़ रहे हैं उनका क्या अंतर पड़ेगा। बलराज कुंडू जो नरवाल को समर्थन देने गए। इस प्रकार की अन्य बहुत-सी बातें हैं, जो अभी समय के साथ समझ में आएंगी।

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