भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

पूरी दुनिया के साथ हरियाणा भी कोरोना कहर से जूझ रहा है और इसके साथ ही हरियाणा में किसान आंदोलन देश में सबसे अधिक दिखाई दे रहा है। ऐसी अवस्था में प्रश्न उठता है कि क्या अनिल विज जिनके पास स्वास्थ विभाग भी है और गृह विभाग भी, इन समस्याओं से जूझ पाएंगे।

ये समस्याएं तो हैं ही लेकिन कोरोना के चलते जो लोगों की आर्थिक स्थिति डावांडोल हो रही है, उसके कारण हरियाणा में अपराध भी बढ़ रहे हैं। रही भ्रष्टाचार की बात तो जीरो टोलरेंस का दावा करने वाली सरकार में मंत्री ही भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं कभी ओमप्रकाश यादव तो कभी कमलेश ढांडा, कभी देवेंद्र बबले। छोडि़ए इन सभी की बात तो, ये तो गृह मंत्री खुद ही देख रहे हैं कि माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि पुलिस पर भी हमला बोल देते हैं और इन सबके ऊपर अब किसान अध्यादेशों में जो किसानों द्वारा, विपक्ष द्वारा और इनके साथ कर्मचारी भी आ गए, उनके द्वारा जो विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। इन सबसे निपटने की जिम्मेदारी गृह विभाग की ही है। अत: कह सकते हैं कि गृहमंत्री के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय है।

अब देखें गृहमंत्री को। पीपली में लाठी चली ही नजर नहीं आई। इसी प्रकार जो अपराध बढ़ रहे हैं, उसके बारे में उनकी ओर से कोई ब्यान नहीं आया। उनकी ओर से ब्यान आता है कि राहुल गांधी की बुद्धि के बारे में न कि हरियाणा की गरीब जनता को स्वास्थ सुविधाएं उपलब्ध कराने के बारे में। उनकी ओर से ब्यान आता है रणदीप सुरजेवाला संतुलन खो रहे हैं, न कि कोविड के वॉरियर्स को किस प्रकार सुविधाएं उपलब्ध कराकर संतुष्ट किया जाए। उनकी तरफ से ब्यान आता है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ न कि यह आता है कि वर्तमान में जो सरकारी अस्पतालों में ओपीड़ी सही काम नहीं कर रही, उन्हें कैसे ठीक कराया जाए।

इसी प्रकार कभी ब्यान देते हैं कि संजय राउत के विरुद्ध। यह नहीं कहते हैं कि हरियाणा में खनन माफिया को कैसे सबक सिखाया जाएगा। कंगना, राउत पर भी बोलते हैं लेकिन यह नहीं बोलते कि उनके अपने महकमे निगम में रोज-रोज भ्रष्टाचार के समाचार आ रहे हैं, उन्हें कैसे दूर किया जाए। तात्पर्य यह है कि उनके ब्यान पूरे देश की राजनीति पर तो आते रहते हैं परंतु प्रदेश की और उनके अपने विभाग की गतिविधियों पर उनके ब्यान व उनकी कार्यशीलता कम ही दिखाई देती है।

हरियाणा में उन्हें गब्बर कहा जाता है लेकिन वास्तविकता में गब्बर वाली बात उनमें दिखाई नहीं देती। पहले तो उन्हें गृह विभाग देकर मुख्यमंत्री ने सीआइडी अपने पास ले ली। उसके पश्चात पुलिस विभाग में भी तबादलों में मुख्यमंत्री अपनी चलाती रहे। अभी हाल में कल हुए तबादलों में भी यह कहा जा रहा है कि उनमें मुख्यमंत्री का बड़ा हाथ है। इसी प्रकार उनके अपने स्वास्थ विभाग में भी जैसा कि दिखाई देता है, उससे लगता है कि उसमें भी मुख्यमंत्री का पूर्ण दखल रहता है। ऐसी ही स्थानीय निकाय की बात देख लो, उसमें भी अधिकारी अपनी मर्जी से इनके नहीं लगे हुए। गुरुग्राम में तो यह कहा जाता है कि निगम में जो अधिकारी हैं, उनमें मुख्यमंत्री और दुष्यंत चौटाला की अनुशंसा से लगे हुए भी हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें गब्बर कहना कितना उचित है।