विजय गर्ग

भूमिका
बढ़ती जनसंख्या और आधुनिक जीवनशैली के साथ कचरा निपटान एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। जिस वस्तु का हम उपयोग कर चुके होते हैं, वह कचरे में बदल जाती है। लेकिन यह कचरा जाता कहां है? ठोस अपशिष्ट अब न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गया है।
भारत में ठोस कचरे की स्थिति
भारत में हर वर्ष 6.2 करोड़ टन ठोस कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें प्लास्टिक, चिकित्सा जैव कचरा और ई-कचरा शामिल हैं। इसके अलावा, 80 लाख टन खतरनाक अपशिष्ट और 15 लाख टन ई-कचरा भी उत्पन्न होता है। यह मात्रा हर वर्ष बढ़ती जा रही है, जो गंभीर चिंता का विषय है।
ठोस कचरा: परिभाषा और प्रकार
ठोस कचरा उन सभी बेकार या अवांछित ठोस अथवा अर्ध-ठोस पदार्थों को कहा जाता है, जो घरों, उद्योगों, कृषि, व्यवसायिक संस्थानों और चिकित्सा सुविधाओं से निकलते हैं। इसके मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं: घरेलू कचरा: कागज, प्लास्टिक, कांच, कार्डबोर्ड, खाद्य अपशिष्ट।
औद्योगिक कचरा: निर्माण सामग्री का मलबा, ईंटें, सीमेंट, लकड़ी।
चिकित्सा कचरा: अस्पतालों से निकलने वाला जैविक और संक्रमित अपशिष्ट।
ई-कचरा: कंप्यूटर, मोबाइल, बैटरी जैसी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं।
रेडियोधर्मी कचरा: ऊर्जा संयंत्रों और प्रयोगशालाओं से निकलने वाला कचरा।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की ग्लोबल वेस्ट मैनेजमेंट रिपोर्ट 2024 के अनुसार, जैसे-जैसे देश अमीर होते हैं, उनके उद्योगों, शहरीकरण, आवास और खपत की दर में वृद्धि होती है, जिससे ठोस अपशिष्ट भी बढ़ता है। 2030 तक यह कचरा 2.5 से 3.3 अरब टन तक पहुंच सकता है।
2040 तक यह 3.75 अरब टन और 2050 तक इससे भी अधिक हो सकता है।
उत्तर अमेरिका प्रति व्यक्ति कचरा उत्पादन में अग्रणी है, जबकि कुल अपशिष्ट उत्पादन में पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया पहले स्थान पर हैं।
चीन, जो दुनिया में सबसे अधिक ठोस कचरा उत्पन्न करता है, उसने कचरा प्रबंधन के बुनियादी ढांचे में भारी निवेश किया है।
स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव
जल प्रदूषण: ठोस कचरे के अनुचित निपटान से जल स्रोत दूषित होते हैं।
वायु प्रदूषण: कचरे के जलने से जहरीली गैसें निकलती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए घातक हैं।
मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट: अव्यवस्थित कचरा निस्तारण भूमि को अनुपयोगी बना सकता है।
रोगों का प्रसार: हैजा, डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ता है।
जलवायु परिवर्तन: ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि होती है, जिससे जलवायु संकट बढ़ता है।
अंतरराष्ट्रीय पहल और समझौते
वर्ष 2022 में 175 देशों ने 2024 तक प्लास्टिक प्रदूषण पर एक कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते को विकसित करने पर सहमति व्यक्त की।
संयुक्त राज्य पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) की 2023 की रिपोर्ट में भी ठोस अपशिष्ट से उत्पन्न कार्बनिक प्रदूषकों के खतरों को उजागर किया गया।
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2021 के तहत भारत ने एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया है।
भारत में अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति
स्वच्छ भारत मिशन के तहत 7,366 करोड़ रुपये का बजट ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए निर्धारित किया गया है।
ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2022 को 2 नवंबर, 2022 को अधिसूचित किया गया, जिससे इलेक्ट्रॉनिक कचरे को संभालने का एक व्यवस्थित ढांचा विकसित किया जा सके।
बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 के तहत बैटरियों के उचित निपटान की व्यवस्था की गई है।
‘नेचर जर्नल’ के अनुसार, भारत हर वर्ष 9.3 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा उत्सर्जित करता है, जो विश्व में सबसे अधिक है।
समाधान और भविष्य की रणनीति
चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy):
- पुनर्चक्रण (Recycling) को बढ़ावा देकर भारत 40 लाख करोड़ रुपये का वार्षिक लाभ कमा सकता है।
कचरा पृथक्करण (Waste Segregation):
- घरों और व्यवसायिक स्थलों पर सूखा और गीला कचरा अलग-अलग किया जाए।
अपशिष्ट-से-ऊर्जा (Waste-to-Energy) परियोजनाएं:
- जैविक कचरे से बायोगैस और खाद बनाकर वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत विकसित किया जाए।
सामुदायिक भागीदारी:
- आम जनता और स्थानीय निकायों को प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रमों से जोड़ा जाए।
सख्त कानूनों का पालन:
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमों को सख्ती से लागू किया जाए।
निष्कर्ष
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन आज की सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक है। अगर इसके समाधान की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में इसके दुष्परिणाम और भी भयावह होंगे। हालांकि, इसमें आर्थिक अवसर भी छिपे हैं। कचरा न केवल समस्या है, बल्कि यह एक संसाधन भी बन सकता है, यदि इसका सही उपयोग किया जाए। ठोस कचरे के संतुलित उत्पादन और प्रभावी निपटान से ही हम आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण प्रदान कर सकते हैं।