शासकीय अधिकारियों और कर्मचारियों के अनुशासन को बनाए रखने के लिए सख्त नियम जरूरी
शासकीय कर्मचारीयों अधिकारीयों को सरकार का दामाद वाली छवि से निकालनें सख़्त आचरण नियम 2025 लागू करना तात्कालिक ज़रूरी
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

वैश्विक स्तर पर हर देश में सरकारी नौकरी को राष्ट्र सेवा का एक महत्वपूर्ण माध्यम माना जाता है। सरकारी अधिकारी और कर्मचारी जनता के सेवक होते हैं, लेकिन कई बार कुछ अधिकारी अपने पद और रुतबे का गलत इस्तेमाल करने लगते हैं। वे सरकारी सुविधाओं को अपने विशेषाधिकार की तरह देखने लगते हैं और अनुशासन का उल्लंघन करते हैं। वर्तमान डिजिटल युग में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण यह प्रवृत्ति और बढ़ गई है। अब समय आ गया है कि सभी राज्य सरकारें अपने सिविल सेवा आचरण नियमों में संशोधन कर इन मामलों पर सख्त प्रतिबंध लगाएं।
सोशल मीडिया और सरकारी पद का दुरुपयोग
आजकल सोशल मीडिया पर कुछ सरकारी अधिकारी और कर्मचारी रील्स, पोस्ट और कमेंट्स के माध्यम से अपने पद का रुतबा दिखाने में लगे रहते हैं। कभी वे कुर्सी पर बैठकर स्लो-मोशन एंट्री करते हैं, तो कभी हथियार के साथ डायलॉगबाज़ी करते नजर आते हैं। यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति बन गई है। सरकारी पद पर होते हुए इस तरह का व्यवहार अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है और जनता की नजरों में सरकारी सेवा की गरिमा को ठेस पहुंचाता है।
इन्हीं खामियों को देखते हुए जम्मू-कश्मीर और गुजरात सरकारों ने पहले ही अपने सिविल सेवा आचरण नियमों में संशोधन कर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं। अब महाराष्ट्र सरकार ने भी 19 मार्च 2025 को विधानसभा में घोषणा की है कि अगले तीन महीनों में महाराष्ट्र सिविल सेवा आचरण नियम 1979 में संशोधन किया जाएगा ताकि सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोका जा सके।
महाराष्ट्र सरकार की पहल

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने विधानसभा में कहा कि सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों द्वारा सरकारी नीतियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर पोस्ट करना और अपने पद का दुरुपयोग कर लोकप्रियता हासिल करना अनुशासनहीनता है। उन्होंने इस प्रवृत्ति पर सख्त रोक लगाने का निर्देश दिया और कहा कि इस संबंध में जल्द ही एक सरकारी आदेश (GR) जारी किया जाएगा।
सरकारी अधिकारियों का काम जनता की सेवा करना है, न कि रील्स बनाकर खुद की महिमा बढ़ाना। अनुशासनहीनता किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
सरकारी नौकरी: सेवा या विशेषाधिकार?
हमारे देश में सरकारी कर्मचारियों को “सरकारी दामाद” कहा जाता है, क्योंकि उन्हें कई सुविधाएं और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, कुछ अधिकारी और कर्मचारी इसे जनता की सेवा के बजाय अपना हक और विशेषाधिकार समझने लगते हैं। वेतन और अन्य भत्तों की मांग करना उनका अधिकार है, लेकिन काम करने की जिम्मेदारी भी उनकी ही होनी चाहिए।
आज हालात ऐसे हैं कि सरकारी अधिकारी और कर्मचारी अपने पदों का दुरुपयोग करके अनुचित लाभ उठाते हैं। रेलवे विभाग इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां कर्मचारियों और उनके परिवारों को मुफ्त यात्रा की सुविधा मिलती है। कई सरकारी विभागों में कर्मचारियों को जनता से पहले सुविधाएं मिलती हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि जनता की सेवा से ज्यादा ध्यान खुद की सेवा पर दिया जा रहा है।

क्या होना चाहिए समाधान?
- सिविल सेवा आचरण नियमों में सख्त संशोधन:
सोशल मीडिया पर सरकारी पद के दुरुपयोग को रोकने के लिए सख्त दिशानिर्देश बनाए जाएं।
सरकारी कर्मचारी और अधिकारी सरकार-विरोधी गतिविधियों में शामिल न हों।
- काम के आधार पर वेतन और पदोन्नति:
कर्मचारियों के प्रदर्शन के आधार पर वेतन और भत्ते दिए जाएं।
अनुशासनहीन कर्मचारियों पर तत्काल कार्रवाई की जाए।
- जनता की भागीदारी:
जनता को यह अधिकार दिया जाए कि वे सरकारी कर्मचारियों के काम का मूल्यांकन कर सकें।
काम न करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई करने का अधिकार जनता को मिले। - राजनीतिक हस्तक्षेप पर रोक:
सरकारी कर्मचारियों पर राजनीतिक दबाव न पड़े, जिससे वे निष्पक्षता से अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें।
निष्कर्ष
सरकारी सेवा का उद्देश्य जनता की सेवा करना होता है, न कि पद और रुतबे का प्रदर्शन करना। महाराष्ट्र सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम अन्य राज्यों के लिए भी एक प्रेरणादायक उदाहरण होना चाहिए। सभी राज्य सरकारों को अपने सिविल सेवा आचरण नियमों में तत्काल संशोधन करना समय की मांग है। यदि सख्त नियम लागू किए जाएं और कड़ी निगरानी रखी जाए, तो सरकारी सेवा का असली मकसद पूरा हो सकेगा और हमारा समाज अधिक अनुशासित और पारदर्शी बन सकेगा।
-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र