दलित चेहरे से मायावती को भी दी जा सकती है मात

दो यात्राओं ने हरियाणा की राजनीति को झंझकोरा

कांग्रेस संगठन की सूची भी शीध्र जारी हो सकती है

अशोक कुमार कौशिक 

दो माह बाद 3 राज्यों के विधानसभा चुनावों में हरियाणा एक ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस अपने दम पर सरकार बनाने का दावा कर सकती है। 2019 में हुए विधानसभा चुनाव और 2024 में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन दमदार रहा है। हरियाणा कांग्रेस में विधानसभा चुनाव के टिकट के लिए होड़ मची है। एक-एक सीट पर 10-10 दावेदार हैं। पर हरियाणा कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है यहां की गुटबाजी कांग्रेस का डब्बा गोल कर देती है। रणदीप सुरेजवाला भी राज्य की सिसायत से दूर ही नजर आ रहे हैं। करीब 11 साल के लंबे इंतजार के बाद अगले एक-दो दिनों के भीतर हरियाणा कांग्रेस का संगठन बनने की संभावना पैदा हुई है। उधर कांग्रेस हाईकमान द्वारा राज्य में संगठन नहीं बनने को लेकर कड़े तेवर अपनाने के बाद हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी दीपक बाबरिया ने किसी भी समय संगठन बनने के संकेत दिए हैं।

गुटबाजी की स्थिति को इस तरह समझ सकते हैं कि विधानसभा चुनाव संपन्न होने में सिर्फ दो महीने बचे हैं और राज्य में 2 राजनीतिक यात्राएं निकली हुईं हैं। और दोनों में कहीं से भी कोई कम्युनिकेशन नहीं है। एक यात्रा प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पुत्र सांसद दीपेंद्र हुड्डा ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ निकाल रहे हैं उनको सीएम पद का उम्मीदवार बताया जा रहा है। दूसरी यात्रा दलित नेता और सांसद कुमारी शैलजा के नेतृत्व में निकली हुई है, जिसमें शैलजा खुद को प्रदेश का भावी मुख्यमंत्री बता रही हैं। पर 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव को कांग्रेस हाईकमान गुटबंदी के चलते अपने हाथ से निकलने नहीं देगा। हरियाणा के राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी भाजपा के ओबीसी सीएम के खिलाफ हरियाणा में किसी दलित को सीएम कैंडिडेट घोषित कर सकते हैं। हो सकता है कि यह कुमारी शैलजा हों या कोई और, पर इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। यह फैसला राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है। क्योंकि ऐसा करना कांग्रेस के लिए कई स्तरों पर फायेदमंद साबित हो सकता है।

क्यों कांग्रेस के लिए यह दांव मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है

अगर कांग्रेस हरियाणा में दलित सीएम उम्मीदवार घोषित कर देती है तो समझिए कि राहुल गांधी की उन बातों पर मुहर लग जाएगी जिसमें वो दलितों के लिए बार बार हमदर्दी जताते रहे हैं। जिस तरह राहुल गांधी ने संविधान बचाओ को मुद्दा बनाया, बजट निर्माण के दौरान हलवा सेरेमनी में दलित और पिछड़े अफसरों को शामिल नहीं करने की बात उठाई, जिस तरह वे अपनी हर स्पीच में जातिगत जनगणना की डिमांड कर रहे हैं, जिस तरह उनकी हर स्पीच में दलितों और कमजोर वर्गों के हित की बात होती है, यह फैसला आम लोगों के उन पर भरोसे को पुख्ता करेगा। यह राहुल गांधी के व्यक्तित्व के लिए बड़ी उपलब्धि होगी। अभी राहुल गांधी जब ऐसी बातें करते हैं तो सवाल उठता है कि वो केवल बातें करते हैं, हकीकत में कुछ नहीं कर रहे हैं। पर पंजाब में सीएम उम्मीदवार के रूप में दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी का नाम आगे बढा़ने के बाद यह दूसरा मौका होगा जब राहुल गांधी एक दलित सीएम प्रत्याशी घोषित करेंगे। इसके पहले कर्नाटक में भी सिद्धारमैया जो दलित समुदाय से आते हैं को कांग्रेस सीएम बना चुकी है। 

ध्यान रहे कि दलित नेता मल्लिकार्जुन खरगे को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने पहले ही अपने इरादे जता दिए थे। अगर हरियाणा में दलित सीएम बनता है तो यह कांग्रेस के लिए भविष्य में पश्चिमी यूपी, दिल्ली, और पंजाब के लिए भी फायदेमंद साबित होगा। 

हरियाणा में दलित राजनीति कितनी अहम

हरियाणा में 19% दलित वोट को साधने के लिए दलित सीएम प्रत्याशी का बड़ा फैसला पार्टी के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है। राज्य में 17 विधानसभा सीटें रिजर्व हैं। राज्य में कुल विधानसभा सीटों की संख्या 90 है। बहुमत हासिल करने के लिए कुल 46 सीट जीतनी जरूरी है। जाहिर है कि किसी दलित सीएम कैंडिडेट के नाम पर प्रदेश के दलितों का वोट एकमुश्त मिलने की संभावना बढ़ जाएगी. कांग्रेस ने इसके पहले चौधरी उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर दलितों का लुभाने का पहला कदम चल चुकी है। गौरतलब है कि चौधरी उदयभान भी अनुसूचित जाति से ही आते हैं। दलितों का कुछ वोट हरियाणा में बीएसपी को भी मिलता रहा है। बीएसपी ने राज्य में इनेलो के साथ गठबंधन किया है। बीजेपी भी दलित वोट मिलने का दावा करती रही है। इसका कारण ये रहा है कि जहां जाट वोट गिरते रहे हैं वहां आम तौर पर दलितों का वोट नहीं जाता रहा है। पर संविधान बचाओ नारे और दलित सीएम कैंडिडेट के चलते राज्य में इस बार ट्रेंड बदल सकता है। रिजर्व सीटें ही नहीं , समान्य सीटों पर भी दलित वोट बहुत बड़े पैमाने पर उलट फेर करने में सक्षम होगा। 

कुमारी शैलजा की यात्रा पर कांग्रेस की चुप्पी

आम तौर पर हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गुट सबसे ताकतवर है। लोकसभा चुनावों में सबसे अधिक टिकट हुड्डा समर्थकों को ही मिले थे। 2019 के विधानसभा चुनावों में भी भूपेंद्र हुड्डा गुट ही प्रभावी रहा है। लोकसभा चुनावों में भूपेंद्र हुड्डा का गुट और कुमारी शैलजा का गुट बिल्कुल अलग पार्टियों की तरह काम कर रहे थे। दोनों गुटों ने हरियाणा में अपनी यात्राएं निकाली हुईं हैं। कुमारी शैलजा के पोस्टरों में चौधरी बीरेंद्र सिंह और रणदीप सुरजेवाला की तस्वीरें थी, पर अब प्रदेश अध्यक्ष उदयभान और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की तस्वीरें लग रही हैं। उधर भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कार्यक्रमों में भी शैलजा की तस्वीरों को महत्व दिया जाने लगा है।

शैलजा की यात्राओं में उन्हें प्रदेश में सीएम का कैंडिडेट बताया जा रहा है जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा की यात्राओं में दीपेंद्र हुड्डा को सीएम कैंडिडेट बताया जा रहा है। हुड्डा गुट को प्रदेश के 4 सांसदों का समर्थन हासिल है जबकि शैलजा के साथ कोई सांसद नहीं है पर चौधरी बीरेंद्र सिंह और रणदीप सुरजेवाला उनके साथ हैं। 

गौरतलब है कि हरियाणा में दो महीने में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। लेकिन रणदीप सुरेजवाला वाला भी राज्य की सिसायत से दूर ही नजर आ रहे हैं। बता दें कि कुमारी शैलजा और हुड्डा गुट में अक्सर तनातनी देखने को मिलती रहती है। पर शैलजा गुट की यात्रा पर हाईकमान की चुप्पी से स्थानीय लोग हैरानी व्यक्त कर रहे हैं। 

हरियाणा की राजनीति के जानकार कहते हैं कि इसमे कोई दो राय नहीं हो सकती कि कांग्रेस हाईकमान कुमारी शैलजा को सीएम का प्रत्याशी घोषित कर दे। दरअसल कुमारी शैलजा की बेदाग छवि और उनका महिला होना भी उनके पक्ष में जा सकता है। सोनिया गांधी से उनकी नजदीकी भी जगजाहिर है। हरियाणा के जाट इस समय केवल बीजेपी को हारते हुए देखना चाहते हैं। इसके लिए वो कुमारी शैलजा को भी सीएम कैंडिडेट के रूप में स्वीकार कर लेंगे।

डीके शिवकुमार का मामला नजीर है

कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के विजय के पीछे राज्य के वर्तमान डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण थी पर सीएम सिद्धरमैया को बनाया गया। इसके पीछे 2 कारण काम कर रहे थे। पहली सिद्धारमैया का दलित होना और दूसरी डीके शिवकुमार पर ईडी और सीबीआई के मामलों का होना। कांग्रेस इस बात को अच्छी तरह समझती है कि आज की तारीख में किसी सीएम को जेल भेजने का दुस्साहस कभी भी केंद्र कर सकता है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के केस में हम देख चुके हैं। चूंकि भूपिंदर सिंह हुड्डा पर भी सीबीआई और ईडी के केस दर्ज हैं इसलिए कभी भी उनको जेल की हवा खानी पड़ सकती है। हालांकि कांग्रेस पर शिकंजा कसने के लिए हुड्डा के चेहते वह उनके फाइनेंसर साथियों पर शिकंजा कसा जा रहा है। धर्म सिंह छोक्कर, दान सिंह व सुरेंद्र पंवार इसके उदाहरण है।

दूसरे हुड्डा की नजदीकियां राबर्ट वाड्रा से रही हैं। हुड्डा के चलते ही राबर्ट वाड्रा का नाम कई मामलों में घसीटा गया है। हालांकि अब केंद्र में मंत्री व पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस मामले पर क्लीन चिट दे दी है। कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी कि अब फिर से पुराने गड़े मुर्दे उखाड़े जाएं। हालांकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा इन्हीं सब बातों के चलते अपने नाम के बजाय सीएम उम्मीदवार के लिए अपने बेटे का नाम आगे बढ़ा रहे हैं। पर हरियाणा कांग्रेस में भूपेंद्र हुड्डा के नाम पर एक बार सभी एकमत हो भी सकते हैं पर उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए सभी गुट कभी भी तैयार होंगे इस पर सवालिया निशान है?

हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष चौधरी उदयभान ने प्रदेश पदाधिकारियों व जिलाध्यक्षों की लिस्ट फाइनल कर लंबे समय से प्रदेश प्रभारी के पास भेज रखी है। प्रदेश पदाधिकारियों व जिलाध्यक्षों की लिस्ट में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा की पसंद के नेताओं को जगह मिलने की पूरी संभावना है।

विधानसभा चुनाव में एकजुटता का संदेश देने के लिहाज से कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला, कैप्टन अजय यादव और बीरेंद्र सिंह की पसंद के कुछ नेताओं को भी संगठन में जगह मिल सकती है।

लोकसभा चुनाव बिना संगठन के ही लड़ा

मीडिया के पूछने पर वैसे तो प्रदेश प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष अक्सर यह कहते रहे हैं कि कांग्रेस हाईकमान ने अभी तक लिस्ट पर अपनी स्वीकृति की मुहर नहीं लगाई, लेकिन पिछले दिनों राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और केसी वेणुगोपाल की हरियाणा के नेताओं के साथ बैठक में इस बात का पता चला कि अभी तक उनके पास ऐसी कोई लिस्ट मंजूरी के लिए पहुंची ही नहीं।

तब राहुल गांधी ने केसी वेणुगोपाल और दीपक बाबरिया को हरियाणा का संगठन जल्दी बनाने के निर्देश दिए थे, मगर इस बात को भी दो माह बीतने वाले हैं। लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने बिना संगठन के ही लड़ा है।

विधानसभा चुनाव सिर पर हैं। ऐसे में कांग्रेस को लग रहा है कि यदि संगठन नहीं बनाया गया तो धरातल पर नुकसान हो सकता है। इसलिए हरियाणा कांग्रेस का संगठन किसी भी समय घोषित किया जा सकता है। कांग्रेस ने प्रत्येक जिले में प्रभारी नियुक्त कर रखे हैं। 

लेकिन प्रदेश पदाधिकारी, जिला प्रधान और ब्लाक अध्यक्ष नहीं होने की वजह से कांग्रेस अक्सर अपने राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर रही है। कांग्रेस में चूंकि हुड्डा और एसआरबी गुट सक्रिय हैं तो ऐसे में नियुक्तियों को लेकर किसी तरह के विवाद से बचने के लिए पार्टी प्रभारी लगातार प्रदेश संगठन के विस्तार को टालते चले आ रहे थे।

कांग्रेस का टिकट प्राप्त करने वालों में काफी उत्साह

हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी दीपक बाबरिया ने बृहस्पतिवार को दिल्ली में कहा कि राज्य में कांग्रेस का टिकट प्राप्त करने वालों में काफी उत्साह है। 90 विधानसभा सीटों के लिए दो हजार से अधिक आवेदन आ चुके हैं। आवेदन करने की प्रक्रिया 10 अगस्त तक बढ़ा दी गई है।

एक हजार आवेदन और आने की संभावना है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का यह उत्साह पार्टी को विधानसभा चुनाव में जीत की ओर अग्रसर करेगा। बाबरिया ने एक सवाल के जवाब में कहा कि कांग्रेस का संगठन बनकर तैयार है और उम्मीद की जा सकती है कि अगले एक-दो दिनों के भीतर इसे जारी किया जा सकता है।

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