कांग्रेस भाजपा की जाति की राजनीति की परीक्षा है ….. हरियाणा में

जाट, दलित वोटरों को साधना आसान नहीं

ओबीसी को साधने का दावा, ओबीसी कांग्रेस नेताओं पर छापे व गिरफ्तारी

ईडी की छापेमारी से गरमाई प्रदेश राजनीति

पीपीपी को लेकर लगाए जा रहे समाधान शिविर केवल ढकोसला 

अब किसानों से बात कर रही सैनी सरकार 

भाजपा की ज़िद उसके पतन का कारण बनेगी?

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में जाटों की नाराजगी को देखते हुए ऐसा लग रहा था कि बीजेपी उन्हें मनाने की कोशिश करेगी। पर लगता है कि भारतीय जनता पार्टी अब स्थानीय राजनीति में जानबूझकर इग्नोर कर रही है। क्या ऐसा करके पार्टी तीसरी बार वापसी कर सकेगी? हरियाणा में भाजपा एक और ओबीसी को लुभाने लेकर बड़ी-बड़ी घोषणा कर रही है वहीं दूसरी ओर ओबीसी के कांग्रेस नेताओं पर एक के बाद एक छापेमारी और गिरफ्तारी कर रही है। इसका उसे फायदा होगा या नुकसान यह चुनाव परिणाम के बाद पता लगेगा। भाजपा को लेकर यह भी सर्व विदित है कि वह जो एक बार निर्णय ले लेती है उसे पर अटल रहती है भले उसका परिणाम कुछ भी रहे। प्रदेश में परिवार पहचान पत्र और प्रॉपर्टी आईडी दो ऐसे मामले हैं जो भाजपा को रसातल तक पहुंचा सकते हैं। भाजपा अपने निर्णयों की समीक्षा करने के बजाय जातिगत समीकरण साधने में जुटी है। प्रदेश में बेरोजगारी का मुद्दा भी उसके लिए मुसीबत का कारण बनेगा।

अब हरियाणा में ईडी द्वारा की जा रही कार्रवाई से प्रदेश की राजनीति गरमा गई है। कांग्रेस जहां अपने साथियों के बचाव में आ गई है। वहीं भाजपा इसे स्वतंत्र कार्रवाई करार देकर मामले से पल्ला झाड़ रही है। ईडी द्वारा पिछले दिनों से हरियाणा में लगातार दबिश दी जा रही है। सोनीपत के मेयर द्वारा भाजपा में शामिल होने के बाद सोनीपत की राजनीति गरमाई हुई है। सोनीपत से कांग्रेस विधायक सुरेंद्र पंवार के गिरफ्तार होने के बाद उनके बचाव में आए कांग्रेसी सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने शनिवार को कहा कि हरियाणा में कांग्रेस की एक लहर बन चुकी है और लोगों में भाजपा के प्रति नाराजगी है।

लोकसभा चुनाव में भाजपा को हरियाणा में 10 में से 5 सीटें ही मिल पाई थीं। इस तरह 2019 के मुकाबले वह आधी रह गई। अब अक्टूबर में राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उससे पहले किसानों ने मोर्चा खोल रखा है तो सरकार को भी दबाव में आना पड़ा है। अब बात किसानों की है, जिन्हें राजी करने की कोशिशें शुरू हुई हैं। हरियाणा की नायब सिंह सैनी सरकार ने रविवार को पहली बार संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधियों से बात की और उनकी मांगों को सुना। संयुक्त किसान मोर्चा के तहत कुल 40 किसान संगठन आते हैं। 

बीते कई महीनों से ये किसान संगठन आंदोलनरत हैं और शंभू बॉर्डर पर डेरा डाले हैं। दरअसल लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भाजपा को टेंशन दी है। इसके चलते वह सभी पक्षों को साथ लेकर चलना चाहती है। भाजपा को 2019 में 58.21 फीसदी वोट मिले थे, जो इस बार कम होकर 46 फीसदी ही रह गए। वहीं कांग्रेस की बात करें तो वह 28 से बढ़कर 43 पर्सेंट पर आ गई है। दरअसल भाजपा को लगता है कि किसानों के बीच में उसकी साख कमजोर हुई है और उसके चलते ही ऐसा नतीजा आया है। मीटिंग में रहे एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सीएम किसानों की मांगों पर संवेदनशील हैं। कुछ मांगों पर सहमति बनाने की कोशिश की जाएगी।

लोकसभा चुनाव में जाति की राजनीति को मुद्दा बनाने वाली कांग्रेस की भी अब असल परीक्षा हरियाणा चुनाव में होगी। क्योंकि हरियाणा में सभी पार्टियां सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस कर रही है। बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के परिणामों से सबक ले सोशल इंजीनियरिंग पर पूरा फोकस किया है। बीजेपी ने जाट, ब्राह्मण, गुर्जर और ओबीसी नेताओं को अहम जिम्मेदारी दे तीसरी बार सरकार की वापसी के पुख्ता इंतजाम कर सत्ता वापिसी का स्वप्न संजोए है।

वहीं कांग्रेस अभी जाट और दलितों वाले फार्मूले पर चलती दिख रही है। राहुल गांधी खुद पिछड़ों की राजनीति कर रहे हैं। जिस तरह हरियाणा में हालात बनते दिख रहे हैं उससे लगता है असल झगड़ा जाट और दलित वोटरों को साधने का ही होगा। इंडियन नेशनल लोकदल ने आज मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी के साथ फिर से गठबंधन कर एक तरह से जाट , दलित वोटरों को साधने की कोशिश की है।

यूं कहा जा सकता है कि इनेलो और बसपा का गठबंधन सीधे तौर पर कांग्रेस के वोट बैंक को साधने की कोशिश करेगा। इनके अलावा जेजेपी की नजर भी जाट वोटरों पर रहेगी। हालांकि इनेलो और जजपा को लोकसभा चुनाव में जाट मतदाताओं ने नकार दिया है।आम आदमी पार्टी भी चुनाव लड़ने की तैयारी में है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और पूरे गांधी परिवार ने भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए आप नेता अरविंद केजरीवाल को जेल भेजे जाने की खिलाफत कर उन्हें साथ में रखा। हरियाणा में गठबंधन कर कुरुक्षेत्र की सीट आप को दी थी। लेकिन परिणाम आते ही कांग्रेस का केजरीवाल से मोह भंग हो गया और उनसे रिश्ता खत्म कर दिया। ऐसे में अब केजरीवाल की पार्टी भी सभी 90 सीटों पर लड़ेगी। हरियाणा में बहुकोणीय मुकाबला तय है।

क्या बहुकोणीय मुकाबला होने पर भाजपा के पक्ष में ?

बीजेपी की सोच यह है कि उसका अपना वोट बैंक फिक्स रहेगा जबकि विपक्ष का बंटेगा। इसके बाद भी बीजेपी ने इस बार सोशल इंजीनियरिंग में कोई कमी नहीं रखी है। राजस्थान और उत्तर प्रदेश में बीजेपी की हार की एक वजह सोशल इंजीनियरिंग पर ध्यान न देना एक वजह मानी जा रही है। राजस्थान में जाट,गुर्जर और मीणा का वोट बीजेपी को नहीं मिला। इसी तरह यूपी में दलित और ओबीसी ने कुछ सीटों पर आरक्षण मुद्दे पर बीजेपी को वोट नहीं किया।

इसलिए बीजेपी ने हरियाणा में इस बार सोशल इंजीनियरिंग का ध्यान रख जाट को प्रदेश प्रभारी, मुख्यमंत्री ओबीसी का, प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण और सह प्रभारी गुर्जर बनाया है। पंजाबी चेहरे के रूप में पूर्व सीएम और केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर हैं ही। इस स्थिति में बीजेपी मजबूत दिखाई देती है। हालांकि अब आरक्षण का मुद्दा कारगर होगा लगता नही है। असल चुनौती कांग्रेस के सामने भी यही है। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आम चुनाव में पिछड़ों की राजनीति की थी।

लोकसभा चुनाव में हरियाणा की आधी सीटें हार जाने वाली भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए कमर कस रही है। हरियाणा में इसी साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। शायद यही कारण है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पिछले एक पखवाड़े में राज्य के दो दौरे कर चुके हैं। अपने दोनों ही दौरों में उन्होंने राज्य के पिछड़े समुदाय के लिए तमाम घोषणाएं की हैं। 29 जून की पंचकुला यात्रा के दौरान शाह ने घोषणा की थी कि नवनियुक्त मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं, के ही नेतृत्व में हरियाणा विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा।  यानी कि अगर बीजेपी हरियाणा विधानसभा चुनाव जीतती है तो प्रदेश के सीएम नायब सिंह सैनी ही बनेंगे। उनकी इस घोषणा के बाद अहीरवाल के क्षत्रप राव इंद्रजीत सिंह खफा चल रहे हैं। वह लगातार एक के बाद एक ऐसा बयान दाग रहे हैं जिससे भाजपा परेशानी में पड़ रही है।

एक ओर ओबीसी को साधने की कवायद दुसरी ओर ओबीसी नेताओं को निपटारा 

गत मंगलवार को एक बार फिर हरियाणा पहुंचे गृहमंत्री अमित शाह ने महेंद्रगढ़ में पिछड़ा वर्ग सम्मान सम्मेलन में क्रीमी लेयर कैप और स्थानीय निकायों में बढ़े हुए कोटा की घोषणा करके पिछड़ों का दिल जीतने की कोशिश की है। एक और भाजपा क्रीमी लेयर को लेकर आम जनता को सब्जवाग दिखा रही है वहीं दूसरी हो कांग्रेस के ओबीसी नेताओं पर एक के बाद एक लगातार छापेमारी और गिरफ्तारी करने में जुट गई है। पिछड़े वर्ग के नेताओं को एक एक कर बीजेपी ख़त्म कर रही है। उनके परिवार व प्रियजनों पर मुकदमे ठोक सबको प्रताड़ित कर रही है। पिछले एक महीने में प्रदेश के आधा दर्जन पिछड़े वर्ग के बड़े नेताओ को ठिकाने लगाने का इंतज़ाम किया। इसमें गुर्जर समाज के धर्म सिंह छोक्कर, अहीर अहीर समाज से राव दान सिंह तथा तेली पिछड़ा वर्ग से सुरेंद्र पंवार व उसके बेटे को रातों-रात गिरफ्तार करवा दिया। पिछड़े वर्ग के लोगों को यह भी शिकायत है कि मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी होते हुए उनकी बिरादरी के जजपा नेता रविंद्र सैनी को सरेआम गोलियों से भुन दिया गया। 

एक तरफ़ नायाब सैनी को मुख्यमंत्री बनाने का नाटक दिखा रही है तो दूसरी तरफ बड़ी सूझबूझ से निशाना बना बीजेपी पिछड़े वर्ग के नेताओं को खत्म कर रही है। ईडी की सूची में अभी अगले 2 महिनों में नामों की संख्या बढ़ेगी। बताया जा रहा है कि बीजेपी ने दो दर्जन ओर बैकवर्ड समाज के नेताओं का खाका तैयार करवा लिया है। भाजपा की इस कार्रवाई से पिछड़े वर्ग में नाराजगी देखने को मिल रही है। अहीरवाल में राव इंद्रजीत सिंह को अनदेखा करना उसे महंगा पड़ सकता है।

ज़िद से पीछे हटने को नहीं तैयार 

भाजपा नेताओं के साथ एक सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह जो एक बार निर्णय ले लेते हैं उसे आसानी से नहीं बदलते। हरियाणा में पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भाजपा का भट्ठा बैठा दिया। पर्दे के पीछे अभी भी उन्हीं की रणनीति काम कर रही है। भाजपा द्वारा परिवार पहचान पत्र तथा प्रॉपर्टी आईडी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। इन निर्णयों के चलते उसकी दुर्गति हो रही है। वह इसको लेकर समाधान शिविर तो लगवा रही है, जिसमें आम जनता का कोई समाधान नहीं हो रहा पर इसे वापस लेने का साहस नहीं जुटा पा रही। इसे भाजपा की ज़िद न कहा जाए तो और क्या कहा जाए। प्रदेश में युवाओं में बेरोजगारी को लेकर बड़ा आक्रोश देखने को मिल रहा है।

जांच एजेंसियों का इस्तेमाल फायदा या नुकसान?

इसके साथ ही भाजपा का एक निर्णय और उसके लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है कि वह सत्ता हासिल करने के लिए जांच एजेंसी का इस्तेमाल विरोधियों को दबाने के लिए कर रही है। ईडी छापेमारी को लेकर दीपेंद्र हुड्डा का कहना है कि जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करके विपक्ष की आवाज़ को दबाने का काम किया जा रहा है। वह जितना विपक्ष को निशाने पर लेंगे उतना ही जनता भाजपा को निशाने में लेगी और हरियाणा में यही माहौल बन गया है। पंवार की गिरफ्तारी के बाद सामने आए कांग्रेस विधायक दल के उपनेता आफताब अहमद, चीफ व्हिप भारत भूषण बतरा, गोहाना विधायक जगबीर सिंह मलिक और झज्जर विधायक गीता भुक्कल ने आरोप लगाया कि विधायक सुरेंद्र पंवार की गिरफ़्तारी और कांग्रेस विधायक राव दान सिंह के घर पर रेड का समय ये साबित करता है कि यह सब राजनीतिक विरोधियों को बेवजह डराने-धमकाने का प्रयास है।

आने वाले विधानसभा चुनाव से पूर्व, भाजपा की केंद्र सरकार के इशारों पर प्रदेश में कांग्रेस के विधायकों और कांग्रेस जनों पर यह कार्रवाई साबित करती है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को भरपूर समर्थन मिलने के बाद भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से हताश और बेबस है।

कांग्रेस नेताओं ने देश की न्यायिक व्यवस्था में विश्वास जताते हुए कहा कि राजनीति से प्रेरित ऐसे मुक़दमों की पोल जल्द खुल जाएगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनता सब समझती है और भाजपा का संविधान और लोकतंत्र विरोधी चेहरा पूरी तरह बेनक़ाब हो चुका है।

भाजपा सरकार को जनता देगी करारा जवाब’

कांग्रेस नेताओं ने कहा, प्रदेश की भाजपा सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और आने वाले विधानसभा चुनाव में हरियाणा की बहादुर जनता अपनी वोट की चोट से इनको करारा जवाब देगी। इस पूरे घटनाक्रम पर उठे सियासी विवाद के बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने कहा कि ईडी एक स्वतंत्र एजेंसी है। ईडी को जहां भी कुछ गलत लगता है या मिलता है तो वहां कार्रवाई की जाती है। यह पूरा विषय ईडी का है। ईडी को जहां कार्रवाई की जरूरत महसूस हो रही है वहां कार्रवाई की जा रही है। इस मामले का सरकार से कोई लेना देना नहीं है। कांग्रेस अपने घोटालों को छिपाने के लिए इस तरह की बयानबाजी कर रही है।

जांच एजेंसियों के दुरुपयोग व संविधान खतरे में है को मुद्दा इसीलिए बनाया कि पिछड़ों का वोट मिले। हरियाणा जैसे राज्य में पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की राजनीति का कार्ड कांग्रेस के लिए के लिए कितना कारगर रहेगा देखना होगा। वैसे भी कांग्रेस के सामने गैर जाटों को राजी करना भी मुश्किल टास्क होता है। क्योंकि बीजेपी के न चाहते हुए भी चुनाव जाट बनाम अन्य हो ही जाता है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस मिथक को तोड़ा है, तभी उसे 5 सीटों पर सफलता हाथ लगी। चौटाला परिवार की पार्टियों की भी नजर जाट वोटरों पर ही रहती है। इसके साथ दलित वोटर को साधते हैं। ऐसे में कांग्रेस की जाति की राजनीति की असल परीक्षा हरियाणा में ही होगी। पर सवाल यह है कि क्या जाटों को दरकिनार करके हरियाणा में एक बार फिर वापसी करने का बीजेपी का सपना पूरा हो पाएगा? इससे भी बड़ा सवाल यह है क्या जांच एजेंसी के सहारे भाजपा प्रदेश में तीसरी बार सत्ता में लौट सकती है?

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