भाजपा जाट संबंधों में दरारें जारी, चुनावी समर्थन में कमी, मोदी 3.0 में सिर्फ 2 जूनियर मंत्री

राजस्थान हरियाणा में जाटों ने नकारा आधी सीटों पर मिली करारी हार

हरियाणा में आयातित जाट नेताओं के बावजूद नहीं बन पा रही पैठ

जाटों की नाराजगी के चलते हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर

किसी जाट नेता को बना सकती है प्रदेश अध्यक्ष

अशोक कुमार कौशिक 

देश में 10 साल के शासन के बाद भी भाजपा जाट समुदाय में अपना स्थान बनाने में असफल रही है। जाटों ने राजस्थान, हरियाणा और कुछ हद तक उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ वोट दिया है, जिससे पार्टी के समीकरण गड़बड़ा गए। भाजपा भी अपने शब्दों और कार्यों से उन्हें खुश करने के लिए इच्छुक नहीं दिखी।

आखिर क्यों 10 साल सत्ता में रहने के बावजूद वह जाटों की नब्ज नहीं पकड़ पाई। राजनीति के जानकारों की मानें तो हरियाणा में इस बार क्लोज फाइट है। पिछले 10 सालों से पार्टी सत्ता में है लेकिन पार्टी के खिलाफ राज्य में सत्ता विरोधी लहर है। इस बार के लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो आप पाएंगे कि 5 सीटों पर बीजेपी, तो 5 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है।

तीसरे नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में जाटों को दिए गए प्रतिनिधित्व पर नज़र डालें तो समुदाय से केवल दो नेताओं को शामिल किया गया है, दोनों ही राज्य मंत्री हैं। भाजपा के अजमेर सांसद भागीरथ चौधरी और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के जयंत चौधरी।

2019 में दूसरे मोदी मंत्रिमंडल में भी यही हुआ, जिसमें दो राज्य मंत्री जाट समुदाय से थे। संजीव बालियान और कैलाश चौधरी (राजस्थान से)।

2014 के पहले मोदी मंत्रिमंडल में चौधरी बीरेंद्र सिंह (हरियाणा से) कैबिनेट मंत्री थे और सांवर लाल जाट (राजस्थान से) और संजीव बालियान (यूपी से) राज्य मंत्री थे।

इसके अलावा, 1999 से 2004 तक वाजपेयी के मंत्रिमंडल में आरएलडी के अजित सिंह और भाजपा के साहिब सिंह वर्मा मंत्री थे और वसुंधरा राजे सिंधिया (जाट परिवार में विवाहित) राज्य मंत्री थीं। आरएलडी नेता सोमपाल सिंह शास्त्री भी 1998 में मंत्रिपरिषद का हिस्सा थे।

अक्टूबर 1999 में वाजपेयी सरकार ने भी केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण के लिए जाटों को ओबीसी की सूची में शामिल किया था।

“जाट नेता (जगदीप धनखड़) भारत के उपराष्ट्रपति हैं और पहले राज्यपाल रह चुके हैं। एक अन्य जाट नेता सत्यपाल मलिक राज्यपाल रह चुके हैं। आचार्य देवव्रत समुदाय से एक और राज्यपाल हैं।” सुनील जाखड़, हनुमान बेनीवाल, गोविंद सिंह डोटासरा, सतीश पूनिया, जयंत चौधरी, भूपेश चौधरी, संजीव बालियान, प्रदीप चौधरी, रणजीत चौटाला, चौधरी धर्मवीर सिंह, कैप्टन अभिमन्यु, सुभाष बराला तथा ओमप्रकाश धनखड़ आदि भाजपा के स्तम्भ हैं।

राजस्थान की नाराजगी 

राजस्थान में अपने बूते साल 2004 में पहली बार वसुंधरा राजे की अगुवाई में सरकार बना पाई क्योंकि कांग्रेस के सबसे मजबूत वोट बैंक जाटों को ओबीसी में शामिल कर आरक्षण देकर मास्टर स्ट्रोक खेला। लेकिन इस बार जैसे हीं बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष पद से सतीस पुनिया को हटा कर ब्राह्मण सीपी जोशी को बनाया, जाटों में  नाराजगी बढ़ी। उसके बाद चुरू लोकसभा से सासंद राहुल कस्वा का टिकट कटवाने का आरोप बीजेपी के बड़े नेता राजेंद्र राठौड़ पर लगा। इससे शेखावटी में जाटों में बीजेपी के खिलाफ नाराजगी बढ़ी। 

कांग्रेस ने शेखावटी इलाके से जाट नेता गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेशाध्यक्ष बना कर जाटों का वोट बैंक और मजबूत किया। कम्युनिस्ट पार्टी में ज्यादातर जाट नेता हैं। सीकर सीट पर सीपीएम से गठबंधन का फायदा कई सीटों पर जाट वोट बैंक बनने में मिली। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नेता हनुमान बेनीवाल का इंडिया गठबंधन में साथ आने से भी कांग्रेस का जाट वोट मजबूत हुआ। इंडिया गठबंधन के जीते 8 उम्मीदवारों में से 5 जाट जाति हैं।

जाटों ने भाजपा को कैसे हराया

जाट बहुल संसदीय क्षेत्रों में भाजपा के प्रदर्शन की जांच करने पर मिश्रित परिणाम सामने आते हैं। राजस्थान और हरियाणा में पार्टी ने इन सीटों पर खराब प्रदर्शन किया। हालांकि, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां भाजपा का आरएलडी के साथ गठबंधन था, उसका प्रदर्शन थोड़ा बेहतर रहा।

2019 में राजस्थान और हरियाणा में क्लीन स्वीप के बाद, भाजपा ने राजस्थान में 25 में से 11 सीटें और हरियाणा में 10 में से पांच सीटें खो दीं। राजस्थान में भाजपा शेखावाटी क्षेत्र की सभी चार सीटें हार गई । झुंझुनू, चूरू, सीकर और नागौर, जहां जाट वोट निर्णायक हैं। इन सभी सीटों पर, इंडिया ब्लॉक के जाट नेता विजेता बनकर उभरे। झुंझुनू से कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह ओला, चूरू से कांग्रेस के राहुल कस्वां, सीकर से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के अमरा राम और नागौर से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल।

अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में जहां जाट मतदाता बड़ी संख्या में मौजूद हैं, बाड़मेर ने उम्मेद राम बेनीवाल को चुना, गंगानगर (एससी) ने कुलदीप इंदौरा को चुना, भरतपुर (एससी) ने संजना जाटव को चुना और करौली-धौलपुर (एससी) ने भजनलाल जाटव को चुना, चारों विजेता कांग्रेस के हैं।

राजस्थान में चुनाव हारने वाले जाट समुदाय के प्रमुख भाजपा नेताओं में चूरू से पैरालिंपियन और पद्मश्री पुरस्कार विजेता देवेंद्र झाझरिया, झुंझुनू से शुभकरण चौधरी, नागौर से ज्योति मिर्धा और सीकर से सुमेधानंद सरस्वती शामिल हैं।

हरियाणा में कांग्रेस ने पांच सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों को हराया, जिनमें से चार रोहतक, सोनीपत, हिसार और सिरसा या तो जाटों के गढ़ में आते हैं या कम से कम आधे विधानसभा क्षेत्रों में जाट बहुसंख्यक हैं।

राजस्थान और हरियाणा दोनों में अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय भी जाटों के साथ मिल गया है। हरियाणा में भाजपा ने दो आरक्षित अनुसूचित जाति सीटें खो दीं, जबकि राजस्थान में चार आरक्षित अनुसूचित जाति निर्वाचन क्षेत्रों (गंगानगर, भरतपुर और करौली-धौलपुर) में से तीन कांग्रेस के खाते में गईं और एक (बीकानेर) भाजपा के खाते में गई।

राजस्थान में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षित तीन निर्वाचन क्षेत्रों में से केवल उदयपुर भाजपा के खाते में गया, जबकि कांग्रेस ने दौसा और भारत आदिवासी पार्टी ने बांसवाड़ा को जीता।

उत्तर प्रदेश में जहां भाजपा की सीटें 2019 में 62 से घटकर 33 रह गई हैं, पार्टी ने कैराना, मुजफ्फरनगर और बिजनौर खो दिए, जहां जाटों की अच्छी खासी आबादी है।

‘बदतमीज़ी, विभाजनकारी राजनीति’

राजस्थान में जाटों के साथ भेदभाव आम बात हो जाने का आरोप लगे। जब से मोदी सरकार तीन विवादास्पद कृषि कानून लेकर आई है, जिन्हें किसानों के विरोध के चलते निरस्त करना पड़ा, तब से भाजपा को “कृषक समुदाय” से नफरत है, जिनमें से ज़्यादातर जाट सिख और जाट पृष्ठभूमि से हैं।

“अब भाजपा वाजपेयी युग की भाजपा से अलग है। वाजपेयी एक ज़मीनी नेता थे। वे ज़मीनी स्तर पर लोगों से मिलते-जुलते थे। जब कोई व्यक्ति ऊपर से भेजा जाता है और उसे लगातार सफलताएं मिलने लगती हैं, तो उसे कोई असहमति पसंद नहीं आती। यही जाटों के साथ, या ज़्यादा सटीक तौर पर हमारे देश के किसानों के साथ हो रहा है।”

संसदीय चुनावों से पहले, भाजपा ने राजस्थान और हरियाणा में अपने जाट पार्टी प्रमुखों सतीश पूनिया और ओपी धनखड़ को गैर-जाटों के साथ बदल दिया। साथ ही, राजे, जो जाट राजघराने में शादी करने के कारण जाटों के बीच प्रभाव रखती थीं, को उनके मजबूत दावे के बावजूद राजस्थान का सीएम नहीं बनाया गया।

अग्निवीर योजना ने लगाया पलीता

सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई अग्निपथ योजना ने भी जाटों को नाराज़ कर दिया है। “राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी यूपी से बड़ी संख्या में जाट युवा सशस्त्र बलों में शामिल होते थे। अग्निपथ योजना ने जाट युवाओं के लिए रोज़गार के एक बड़े अवसर को छीन लिया है।”

हरियाणा में जाटों के प्रति भाजपा की अलग नीति

हरियाणा में जाटों के प्रति भाजपा सरकार की नीति अन्य राज्यों की नीति से अलग है। “देश के अन्य हिस्सों में भाजपा ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच धार्मिक आधार पर जिस तरह की विभाजनकारी राजनीति की, पार्टी हरियाणा में जाटों और गैर-जाटों के बीच जाति के आधार पर कर रही है।”

हरियाणा में पिछले 10 सालों से पार्टी सत्ता में है। भाजपा ने मनोहर लाल खट्टर को साढ़े 9 साल तक सीएम बनाकर रखा। लोकसभा चुनाव 2024 से ऐन पहले जेजेपी से सीटों पर सहमति नहीं बनने के बाद बीजेपी ने जेजेपी ने गठबंधन तोड़ लिया। खट्टर ने फैमिली आईडी और परिवार पहचान पत्र बनाकर जाटों के साथ-साथ आम नागरिक को पार्टी से दूर कर दिया।

हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले ऐसा लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी जाट वोटों को लेकर अपनी गलती सुधारने का प्रयास कर रही है। असल में भाजपा ने हरियाणा में अपने किस्म का ध्रुवीकरण कराया था। वह ध्रुवीकरण गैर जाट वोटों का था। इसके लिए ऐसा नहीं है कि सिर्फ जाटों की अनदेखी की गई, बल्कि ऐसी राजनीति की गई, जिससे जाट नाराज हों। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी को गठबंधन से बाहर करना इसी राजनीति का हिस्सा था। साढ़े नौ साल बाद मनोहर लाल खट्टर को हटा कर नायब सिंह सैनी को इसी राजनीति के तहत मुख्यमंत्री बनाया गया। बताया जाता है कि सैनी पहले जाटों को लेकर कई तीखे बयान देते रहे हैं। भाजपा को उम्मीद थी कि सैनी को लाकर और चौटाला से दूरी दिखा कर वह गैर जाट वोटों का ध्रुवीकरण करा देगी और चुनाव जीत जाएगी। लेकिन यह दांव उलटा पड़ा। उसे हरियाणा के साथ साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी बड़ा नुकसान हुआ। उसके बड़े जाट नेता चुनाव हारे।

सो, अब कहा जा रहा है कि भाजपा दूरी को कम करना चाहती है। वह गैर जाट राजनीति तो करना चाहती है लेकिन जाटों से दुश्मनी नहीं दिखाना चाहती है। तभी  कांग्रेस की किरण चौधरी और श्रुति चौधरी को पार्टी में शामिल करने का दांव चला गया है। इसकी बिसात तभी बिछ गई थी, जब भिवानी महेंद्रगढ़ सीट पर लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चौधरी बंशीलाल के साथ अपनी निकटता के किस्से सुनाए थे। सोचें, इमरजेंसी के तीन खलनायकों में से एक बंशीलाल भी हैं लेकिन जरुरत हुई तो प्रधानमंत्री मोदी उनकी तारीफ भी करने लगे। बहरहाल, दिवंगत बंशीलाल की बहू और पोती के जरिए भाजपा जाटों को संदेश देने का प्रयास कर रही है।

हरियाणा में भाजपा के अपने जाट नेता कैप्टेन अभिमन्यू, ओमप्रकाश धनखड़ व सुभाष बराला थे। ओमप्रकाश धनखड़ और कैप्टन अभिमन्यु को पहले ही किनारे कर दिया गया था और कांग्रेस से लाए गए बीरेंद्र सिंह व उनके बेटे बृजेंद्र सिंह दोनों वापस कांग्रेस में लौट गए हैं। कांग्रेस से भाजपा में आए चौधरी धर्मवीर सिंह ने भी अब भविष्य में किसी प्रकार के चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया है। इसके बाद भी भाजपा को एक मजबूत जाट चेहरे की जरुरत थी। किरण चौधरी और श्रुति चौधरी ने कांग्रेस में रहते ही भाजपा के लिए अपनी उपयोगिता साबित कर दी थी। बताया जा रहा है कि भिवानी महेंद्रगढ़ में भाजपा की जीत के पीछे उनका सहयोग भी काम आया थी।

नया भाजपा अध्यक्ष हो सकता है जाट चेहरा

विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा शनिवार को पंचकूला में होने वाली बैठक से पहले हो सकती है। शनिवार को पार्टी ने प्रदेश कार्यकारिणी की एक बड़ी बैठक पंचकूला में बुलाई है, जिसमें दो हजार से लेकर 2500 लोगों के जुटने की संभावना है। उससे पहले पार्टी नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा करने की तैयारी में है। पार्टी की रणनीति है कि पंचकूला की बैठक से पहले नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा कर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में ताजपोशी भी कर दी जाए। पंचकूला की बैठक में विशेष तौर पर केंद्रीय मंत्री गृह मंत्री अमित शाह आ रहे हैं।

प्रदेश अध्यक्ष को लेकर दिल्ली से लेकर चंडीगढ़ तक सरगर्मियां बढ़ गई हैं। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी भी दिल्ली में हैं। बुधवार रात को उनकी शीर्ष नेतृत्व के साथ मुलाकात भी हुई थी। वहीं, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला ने भी बुधवार शाम शाह से मुलाकात की। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी अभी सीएम नायब सिंह सैनी के पास है। वह राज्य के साथ पार्टी को भी संभालने में जुटे हैं।

मगर शीर्ष नेतृत्व पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी अब किसी नए जिम्मेदार व्यक्ति को देना चाहता है। इसमें कई लोग लाइन में हैं। इसमें पूर्व अध्यक्ष सुभाष बराला, ओम प्रकाश धनखड़ समेत कई दिग्गज नेता शामिल हैं। पार्टी जब से हरियाणा में सत्ता में आई है, तभी से प्रदेश अध्यक्ष की कमान जाट बिरादरी को और सीएम की कुर्सी पर गैर जाट बिरादरी के व्यक्ति को बैठाती आई है। मगर नौ महीने पहले पार्टी ने बड़ा फेरबदल करते हुए ओम प्रकाश धनखड़ को हटाकर नायब सिंह सैनी को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। धनखड़ जाट बिरादरी से आते हैं।

पार्टी पुरानी नीति पर लौटती है या फिर करेगी नया प्रयोग

प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर भाजपा के अंदर काफी जोर-आजमाइश चल रही है। सूत्रों का दावा है कि केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल चाहते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष भी उनकी पसंद का हो। शीर्ष नेतृत्व को उन्होंने कई नाम सुझाए हैं, जिनमें कृष्णलाल पंवार, सुभाष बराला, अरविंद गौड़, संजय भाटिया, मनीष ग्रोवर व कृष्ण बेदी शामिल हैं। ये सभी मनोहर के करीबी हैं।

वहीं, दूसरी तरफ पूर्व अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़, पूर्व मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, केंद्रीय मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर, सुधा यादव का नाम पार्टी अध्यक्ष की दौड़ में शामिल हैं। अब पार्टी को तय करना है कि वह अपनी पुरानी नीति आकर किसी जाट बिरादरी के नेता को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपती है या दलित या ब्राह्मण समुदाय के नेता को प्रदेश की जिम्मेदारी देकर नया प्रयोग कर सकती है। वहीं, सूत्रों का दावा है कि पार्टी एक ऐसे नेता को कमान देना चाहती है जिस पर सभी की सहमति हो। उसके नाम पर न केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत को कोई एतराज हो और न ही अनिल विज को कोई परेशानी हो।

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