किरण चौधरी के भाजपा में जाने से भाजपाई और कांग्रेसी दोनों खुश

अपने क्षेत्र में ही किरण का घट रहा प्रभाव, चौधरी बंसीलाल की राजनैतिक विरासत को अब नहीं बढ़ा पा रहा है किरण चौधरी

ईश्वर धामु

हरियाणा की तेज तर्रार महिला नेत्री किरण चौधरी का अपनी बेटी श्रुुति चौधरी के साथ कांग्रेस से चार दशक का नाता तोड़ कर भाजपा में जाने को एक बड़ी राजनैतिक घटना माना जा रहा है। भाजपा में जाने का आधार बेटी को लोकसभा का टिकट न मिलना बनाया गया। अब किरण चौधरी के भाजपा में जाने से भाजपाई भी खुश हैंं और कांग्रेसी भी राजी हैं। क्योकि भाजपा को एक मुखर जाट चेहरा मिल गया और कांग्रेसी इसलिए खुश हैं कि हुड्डा का विरोध कम हो गया और सीएम बनने का रास्ता आसान हो गया। लेकिन भाजपा के पास ज्यादा खुश होने का कोई बड़ा कारण तो है नहीं। कारण किरण चौधरी का प्र्रभाव भिवानी और दादरी जिले तक सीमित कहा जा सकता है। लेकिन लोकसभा के चुनाव परिणाम ने इस प्रभाव पर भी सवालिया निशान लगा दिया है।

जाट बाहुल्य क्षेत्र बाढड़ा से कांग्रेस उम्मीदवार राव दान सिंह 27 हजार 102 वोटों की लीड ले गए। वहीं किरण चौधरी के अपने विधानसभा क्षेत्र तोशाम मेें भी उनका विरोध का जादू नहीं चल पाया। केवल 8 हजार 63 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी लूज रहे। अगर यंहा दादरी की बात करें तो वहां भी किरण चौधरी राव दान सिंह को नुकसान नहीं पहुंचा पाई। दादरी से भी कांग्रेसी प्रत्याशी को 4 हजार 292 वोटों की लीड मिली। अगर बात करें 2019 केे लोकसभा चुनाव की तो किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी की भिवानी-महेंद्रगढ़ क्षेत्र के तहत लगने वाले सभी 9 विधानसभा क्षेत्रों उनकी हार हुई थी। जब इससे पूर्व 2014 के चुनाव में किरण चौधरी के अपने क्षेत्र तोशाम से श्रुति चौधरी को 10984 वोटों की लीड मिली थी। जबकि खुद किरण चौधरी तोशाम विधानसभा चुनाव में 19 हजार 741 वोटों से जीती थी। इस तरह अगर उनके अपने क्षेत्र तोशाम को आधार मान कर प्राप्त वोटों के आधार पर लोकप्रियता का विश्लेषण करें तो ग्राफ नीचे की ओर जाता दिखाई देगा।

मतदाताओं पर किरण चौधरी की ढ़ीली होती पकड़ के पीछे बड़ा कारण चौधरी बंसीलाल की राजनीतिक विरासत को आगे नहीं बढ़ा पाना रहा। लोगोंं से दूरी भी बड़ा कारण हो सकता है। यह नहीं कि भाजपा नेताओं को इन हालातों का पता न हो परन्तु किरण चौधरी के बहाने कहा जायेगा कि बंंसीलाल पुत्रवधु और उनकी पौत्री  ने कांग्रेस छोड़ी है। वैसे भी भाजपा की परम्परा रही है कि पहले दूसरी पार्टी से आने वालों को महिमा मंडित किया जायेगा और फिर उसको ढीला छोड़ दिया जाता है। कांग्रेस के दिज्गज नेता बीरेन्द्र सिंह और कुलदीप बिश्रोई के साथ भी यही हुआ? वैसे भी केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर अब चौधरी बंसीलाल के गुणगान कर रहे हैं। लेकिन 1996 में जब हविपा और भाजपा गठबंधन की सरकार बनी तो समय मनोहर लाल पार्टी के संगठन सचिव होते थे। उन्होने मुख्यमंत्री बंसीलाल से मिलने का समय मांगा तो उन्होनेे समय नहीं दिया। इससे चौधरी बंसीलाल से नाराज होकर उनको मुख्यमंत्री पद से हटाने के संकल्प के साथ उन्होने अपनी दाढ़ी बढा ली थी। पर राजनीति में अब केवल वर्तमान के तत्कालीन स्वार्थ को देखा जाता है।

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