कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने पर फंस गई किरण अब विधायकी से हाथ धोना पड़ेगा

बीजेपी की रणनीति के तहत नहीं देगी किरण विधायकी से इस्तीफा

राज्यसभा चुनाव व फ्लोर टेस्ट में मिलेगा बहुमत 

क्या राज्यसभा की सीट मिलेगी किरण को? 

भाजपा ने जाटों को खुश करने के लिए किरण को शामिल किया

अशोक कुमार कौशिक 

लोकसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुईं हरियाणा की दिग्गज नेता किरण चौधरी को बड़ा झटका लगा है. कांग्रेस पार्टी ने हरियाणा विधानसभा के स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता को पत्र भेजकर किरण चौधरी की विधानसभा सदस्य रद्द करने की मांग की है. बता दें कि किरण भिवानी जिले की तोशाम विधानसभा सीट से विधायक हैं. 

किरण की भाजपा में ज्वाइनिंग के बाद कांग्रेस की ओर से विधानसभा स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता को लिखित में शिकायत करके किरण की विधानसभा से अयोग्य ठहराए जाने की मांग की है। विधानसभा में कांग्रेस के डिप्टी नेता व नूंह विधायक आफताब अहमद और चीफ व्हिप व रोहतक विधायक भारत भूषण बतरा ने बुधवार को स्पीकर को लिखित में शिकायत करके किरण चौधरी के भाजपा में जाने को दल-बदल कानून का उल्लंघन बताया है.उनका कहना है कि दूसरी पार्टी में शामिल होने से पहले विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना अनिवार्य है, लेकिन किरण चौधरी ने कांग्रेस विधायक रहते हुए भाजपा की सदस्यता हासिल की है.

कांग्रेस नेताओं ने कहा कि भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची विशेष रूप से पैराग्राफ 2 (1) (ए) के अनुसार, ‘किसी भी राजनीतिक दल से संबंधित सदन का सदस्य यदि स्वेच्छा से ऐसे राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है तो वह सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित किया जाएगा.’

मेरे पास विधानसभा की सदस्यता से किरण चौधरी का इस्तीफा नहीं आया है। अगर इस्तीफा आएगा तो उसे मंजूर करने में दिक्कत नहीं है। कांग्रेस की ओर से अगर किरण चौधरी के खिलाफ शिकायत आएगी तो उसकी जांच करके कार्रवाई की जाएगी।

ज्ञानचंद गुप्ता, स्पीकर

भाजपा के सूत्रों के अनुसार किरण चौधरी भाजपा में शामिल होने के बावजूद विधायक पद से इस्तीफा नहीं देगी, यह उसकी मेगा प्लानिंग हिस्सा है. इस योजना के द्वारा राज्यसभा चुनाव में फायदा लिया जाएगा. इसके साथ यदि मानसून सत्र में फ्लोर टेस्ट कराया जाता है तो भाजपा बहुमत में दिखेगी.

अगले कुछ दिनों में हरियाणा में राज्यसभा उप चुनाव को लेकर यदि मतदान होता है तो किरण कांग्रेस विधायक रहते भाजपा के पक्ष में मतदान कर सकती है. इसकी वजह यह है कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपने विधायकों को राज्यसभा चुनाव में व्हिप जारी नहीं कर सकती. इसका फायदा भाजपा उठायेगी.

कांग्रेस की बड़ी नेता मानी जाने वालीं किरण चौधरी बुधवार (19 जून) को भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं. उनके साथ ही उनकी बेटी श्रुति चौधरी ने भी बीजेपी की सदस्यता ले ली. बुधवार को ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी का जन्मदिन था. इस दिन जहां हरियाणा सहित विभिन्न राज्यों के कांग्रेसी राहुल गांधी को जन्मदिन की बधाई दे रहे थे. वहीं, किरण और श्रुति भगवा रंग में रंग रही थीं.

बता दें कि किरण चौधरी दिल्ली विधानसभा में उपाध्यक्ष रह चुकी हैं. रोहतक से कांग्रेस उम्मीदवार दीपेंद्र हुड्डा के चुनाव जीतने की वजह से राज्यसभा की एक सीट खाली हुई है. राजनीतक गलियारों में चर्चा है कि उन्हें हरियाणा से राज्यसभा में भी भेजा जा सकता है. अभी इसकी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है.

श्रुति चौधरी कांग्रेस की हरियाणा इकाई की कार्यकारी अध्यक्ष थीं. वहीं भिवानी जिले के तोशाम से किरण चौधरी विधायक हैं. उनके बीजेपी में शामिल होने से हरियाणा में पार्टी को और मजबूती मिलने की संभावना है, जहां चुनाव में कुछ ही महीने बचे हैं. हरियाणा में इस साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में चुनाव से कुछ महीने पहले दोनों का कांग्रेस छोड़ना पार्टी के लिए बड़ा झटका है.

हरियाणा के किन क्षेत्रों में है किरण चौधरी का प्रभाव?

बता दें कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा का चिर प्रतिद्वंद्वी माना जाता है. किरण चौधरी पांच बार की विधायक हैं. उनके दिवंगत पति सुरेंद्र सिंह हरियाणा के कृषि मंत्री रहे थे. चौधरी बंसीलाल को हरियाणा का निर्माता कहा जाता है और उनका खासा प्रभाव हरियाणा में है. उनकी काफी प्रभाव भिवानी महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र में है. इसके अलावा अच्छा-खासा वोट बैंक हरियाणा में है. किरण चौधरी के बीजेपी में जाने से भिवानी महेंद्रगढ़ लोकसभा के नौ विधानसभा क्षेत्रों पार्टी में बड़ी मजबूती मिलेगी. वहीं हिसार-फतेहाबाद में भी फायदा होगा.

किरण चौधरी जाट नेता हैं. इसके जरिए बीजेपी हरियाणा में जाट वोटरों को साधने की जुगत में है. माना जाता है कि बीजेपी से जाट वोटर खिसका है. राज्यसभा चुनाव में अजय माकन की हार का जिम्मेदार कांग्रेस के हुड्डा खेमे ने किरण चौधरी को ठहराया था.

लोकसभा चुनावों के दौरान प्रदेश में कांग्रेस नेताओं के बीच जिस तरह की गुटबंदी देखने को मिली, निश्चित ही वह पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुई है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि भूपिंदर सिंह हुड्डा के नेतृत्व में हरियाणा कांग्रेस 5 सीटें जीतने में कामयाब हुई है पर यह भी सही है कि अगर टिकट बांटने में गुटबंदी को ताक पर रख दिया गया होता तो कांग्रेस कुछ और सीटें जीत सकती थी.

कम से कम महेंद्रगढ की सीट पर जीत तो निश्चित ही थी. यहां पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की बहू किरण चौधरी या उनकी बेटी श्रुति चौधरी टिकट के दावेदार थे. पर उन्हें किनारे लगाने का नतीजा ये रहा है कि पहले कांग्रेस ने यह सीट हारी दूसरे अब किरण चौधरी और श्रुति चौधरी ने पार्टी छोड़कर बीजेपी जॉइन कर ली है. किरण चौधरी अभी भिवानी के तोशाम से कांग्रेस विधायक हैं तो वहीं उनकी बेटी श्रुति भिवानी महेंद्रगढ़ सीट से सांसद रह चुकी हैं. हरियाणा में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं और महज चार महीने का वक्त बचा है. किरण चौधरी के बीजेपी में आने से करीब आधा दर्जन सीटों पर जाट वोट प्रभावित हो सकते हैं.

बीजेपी में शामिल होने के बाद ये कहा…

भाजपा में शामिल होने के बाद सोशल मीडिया साइट एक्स पर तस्वीरें पोस्ट करते हुए किरण ने लिखा कि नई शुरुआत और एक नया प्रभात है. आज सबका साथ, सबका विकास व सबका विश्वास और एक भारत, श्रेष्ठ भारत की संकल्पना हेतु उन्नत क्षेत्र व प्रदेश के उद्देश्य से अपने कार्यकर्ताओं के साथ भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की. हमारा वचन है कि चौ.बंसीलाल जी के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए हरियाणा व क्षेत्रवासियों के हित में सदैव समर्पित रहेंगे.

बेटी की टिकट कटने से नाराज थीं किरण

बता दें कि किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति ने 18 जून को कांग्रेस छोड़ दी थी. पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को इस्तीफा भेजकर उन्होंने लिखा कि यहां पर पार्टी को निजी जागीर की तरह चलाया जा रहा है. उन्हें बेइज्जत किया गया है. कहा जा रहा है कि किरण चौधरी लोकसभा चुनाव में अपनी बेटी श्रुति चौधरी की टिकट कटने से नाराज थीं. गौरतलब है कि 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हरियाणा में 10 में से 5 सीटें जीती हैं.

बीजेपी से जाटों की नाराजगी 

हरियाणा में 25 प्रतिशत जाट मतदाताओं के बावजूद बीजेपी उनकी उपेक्षा करती रही है. हरियाणा में लगातार करीब 10 वर्षों से गैर जाट सीएम है. यही नहीं नवनियुक्त मंत्रिमंडल में भी हरियाणा से जिन तीन लोगों को मंत्री बनाया गया है उनमें एक भी जाट नहीं है. मनोहरलाल खट्टर (पंजाबी), कृष्णपाल सिंह (गुर्जर), राव इंद्रजीत (अहीर) ये सभी गैरजाट हैं. इस बीच महिला पहलवानों के आंदोलन, किसान आंदोलन ने लगातार बीजेपी नेताओं को जाट समुदाय से दूर किया है. इसी का नतीजा रहा कि लोकसभा चुनावों के दौरान कई ऐसी खबरें आईं कि बीजेपी नेताओं को जाट बहुल गांवों में घुसने नहीं दिया गया. जाहिर है कि बीजेपी को अगर हरियाणा विधानसभा चुनाव जीतना है तो नाराज जाटों को मनाना होगा. ऐसे समय में यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि लोकसभा चुनाव जीते दीपेंद्र हुड्डा राज्यसभा से रिजाइन करेंगे, और फिर उपचुनाव में उम्‍मीदवार बनाकर बीजेपी किरण चौधरी को राज्‍यसभा भेज सकती है. ऐसा होता है तो जरूर कुछ खास क्षेत्रों में बीजेपी जाट वोटों में सेंध लगाने में कामयाब हो सकती है.

बीजेपी की गैर जाट राजनीति कितनी सफल?

जाटों की नाराजगी की खबर के बीच बीजेपी ने गैर जाट वोटर्स को साधना शुरू किया. इसके लिए भगवा पार्टी ने दलील दी कि राज्य में पिछले 10 साल से गैर जाट सीएम है. 2011 की आबादी के अनुसार प्रदेश में करीब 35 फीसदी ओबीसी है. वहीं एससी की आबादी 20 प्रतिशत है. भाजपा की ये रणनीति काफी हद तक सफल भी रही. लेकिन सिरसा से अशोक तंवर का हारना भाजपा के लिए झटका रहा. हालांकि इसके लिए गलत कैंडिडेट का चुनाव समेत कई कारण गिनाए जा रहे हैं.

राज्य में इस साल के अंत तक होने जा रहे विधानसभा चुनाव में एक बात तो तय है कि यहां बीजेपी और कांग्रेस में कांटे की टक्कर होगी. कांग्रेस भीतरघात से जुझ रही है तो वहीं बीजेपी जाट वोटर्स की सिम्पैथी हासिल करना चाहती है इसके लिए वह अग्निवीर जैसी योजना में परिवर्तन करके जाट वोटर्स को साध सकती है. इसके साथ ही किसानों के लिए एमएसपी बढ़ाकर और एमएसपी गारंटी पर भी बीच का रास्ता निकाल सकती है. वहीं गैर जाट वोट तो बीजेपी को प्रदेश में पहले भी मिलता रहा है.

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