400 पार कहने वाले बात करने को तैयार नहीं

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। मन में बड़ा प्रश्न उठ रहा है कि क्या यही प्रजातंत्र है? हमने तो पढ़ा था कि प्रजातंत्र जनता द्वारा, जनता का, जनता के लिए होता है परंतु यहां देख रहे हैं भाजपा वाले जो भी वोट मांग रहे हैं, वह नरेंद्र मोदी के नाम पर मांग रहे हैं और प्रतिनिधि भी केवल और केवल प्रधानमंत्री की उपलब्धियां गिनवाते नहीं थकते। यदि ऐसा ही है तो फिर अलग-अलग क्षेत्र बनाकर चुनाव की आवश्यकता क्या है।

जनप्रतिनिधि उसे कहते हैं जो जनता की आवाज सुने और उसके लिए जनता ही सर्वोपरि हो परंतु वर्तमान में जनता तो गौण है और न जनप्रतिनिधि जनता की बात कर रहे। ऐसे में प्रजातंत्र का अर्थ क्या रहा?

कहा जाता है कि हमारे देश में हर दस कोस पर भाषा और पानी बदल जाता है अर्थात हर प्रकार की आवश्यकताएं बदल जाती हैं, रहन-सहन बदल जाता है और हर क्षेत्र की समस्याएं अलग होती हैं लेकिन यह मूल मंत्र आज प्रजातंत्र में किसी को क्यों याद नहीं? यही बड़ा प्रश्न है।

वर्तमान में भाजपा की ओर से नारा दिया गया है 400 पार। मेरी अनेक भाजपाईयों से बात हुई तो उनका भी कहना था कि 400 पार तो मैंने उनसे प्रश्न पूछा कि वर्तमान स्थितियों में तो ऐसा नजर नहीं आ रहा तो कुछ का तो कहना था कि मोदी का जादू सिर चढक़र बोलेगा और ऐसा ही होगा, जबकि कुछ का कहना यह भी रहा कि हम भाजपा के सिपाही है, हमें मोदी के कथन को ही कहना है। वास्तविकता तो हमें भी नजर आ रही है कि 400 तो दूर की बात है, सरकार बन जाए तो बड़ी उपलब्धि होगी।

अभी दो दिन हरियाणा में भाजपा का हर बूथ पर पहुंचने का कार्यक्रम था लेकिन मैंने अपने आसपास के लगभग एक दर्ज मौहल्लों से पूछा तो उनका कथन था कि हमारे यहां तो कोई नहंी और हमें इस बात का पता नहीं।

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