15 मई की  हरियाणा कैबिनेट  बैठक में न  केवल नायब सैनी सरकार द्वारा ताज़ा  विश्वास मत हासिल हेतू विधानसभा का  विशेष सत्र बुलाने  बारे लिया जा सकता है निर्णय बल्कि मौजूदा  14वीं हरियाणा विधानसभा को भी समयपूर्व भंग करने की  जा सकती है सिफारिश 

वर्तमान  सदन में बेशक भाजपा के 40 विधायक परन्तु विश्वास प्रस्ताव या अविश्वास प्रस्ताव में प्राथमिक तौर पर वोट कर सकते हैं 39 भाजपा विधायक चूँकि स्पीकर केवल मत बराबर होने की परिस्थिति में डाल सकता है निर्णायक वोट — एडवोकेट हेमंत कुमार 

अगर समयपूर्व विधानसभा भंग करने के निर्णय  को मिल जाती है राज्यपाल की स्वीकृति, तो ताज़ा चुनाव होने तक  कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने सकते हैं नायब सैनी 

चंडीगढ़ –  हरियाणा कैबिनेट (मंत्रिपरिषद) की अगली बैठक आगामी 15 मई बुधवार को सुबह 11 बजे होनी  निर्धारित हुई  है.  ऐसी  अटकलें लगाई जा रही हैं कि उस बैठक में विधानसभा के विशेष सत्र को बुलाने बारे प्रदेश के राज्यपाल से सिफारिश की जाएगी  जिसमें संभवत: प्रदेश की  दो माह पुरानी नायब सिंह सैनी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार गत महीनों   में दूसरी बार सदन में अपना बहुमत साबित करने के लिए सदन में  विश्वास प्रस्ताव (ट्रस्ट वोट ) ला सकती है. 

बहरहाल, इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट और विधायी एवं संवैधानिक मामलों के जानकार हेमंत कुमार ने बताया कि हरियाणा विधानसभा के प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली के नियम 3 के अनुसार सामान्यत: तीन सप्ताह अर्थात 21 दिनों के अंतराल के बाद की तारीख से ही राज्यपाल द्वारा विधानसभा सदन आहूत (बुलाया ) जाता है हालांकि कुछ विशेष परिस्थितियों में उससे पहले भी ऐसा संभव है. जैसे इसी वर्ष 12 मार्च की शाम नायब  सैनी द्वारा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के अगले ही दिन 13 मार्च को नई सरकार द्वारा सदन में बहुमत साबित करने के लिए एक दिन का विशेष सत्र बुलाया गया था. बहरहाल, अगर 21 दिनों का सामान्य अंतराल का पालन किया जाता है, तो सदन को 4 जून अर्थात 18 वी लोकसभा चुनावों की मतगणना के बाद ही बुलाया जाएगा जब तक करनाल विधानसभा सीट उपचुनाव का परिणाम भी आ जाएगा जिसमें मुख्यमंत्री नायब सैनी मौजूदा सदन का सदस्य (विधायक) निर्वाचित होने के लिए  भाजपा उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में है.  

इसी बीच हेमंत ने आज पुनः बताया कि प्रदेश में  सत्तारूढ़ सरकार बहुमत में है या फिर  उसे समर्थन कर रहे कुछ  विधायकों की समर्थन वापसी के फलस्वरूप वह  अल्पमत में आ गई है, यह मात्र विपक्षी नेताओं की राजनीतिक बयानबाजी से नहीं तय हो सकता बल्कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गत तीन दशकों में दिए गये अनेकों निर्णयों के अनुसार ऐसा अर्थात किसी सत्तासीन  सरकार का बहुमत या अल्पमत में होना  केवल सदन के भीतर ही  साबित किया जा सकता है, राजभवन या अन्य सार्वजनिक स्थलों पर विधायकों की परेड कराकर नहीं.

 उन्होंने बताया कि बेशक 88 सदस्यी मौजूदा हरियाणा  विधानसभा में  नायब सैनी सरकार को वर्तमान में समर्थन कर रहे कुल 43 विधायकों का आंकड़ा प्रथम द्रष्टया अल्पमत प्रतीत हो  परन्तु क्या वह वास्तव में यह  अल्पमत है, वह सदन में मतदान के दौरान ही साबित  हो सकता है क्योंकि सदन में विश्वास प्रस्ताव अथवा विपक्षी द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव  दौरान हुई वोटिंग में  पार्टी व्हिप जारी होने बावजूद एवं  दल -बदल विरोधी कानून में सदन की सदस्यता से अयोग्यता का खतरा होने बावजूद विपक्षी दल के विधायक न केवल सदन से  अनुपस्थित रह सकते हैं बल्कि अपनी पार्टी के विरूद्ध  क्रॉस वोटिंग भी कर सकते है.

 हेमंत ने एक और रोचक जानकारी देते हुए बताया कि मौजूदा हरियाणा विधानसभा में बेशक भाजपा के 40 सदस्य (विधायक ) हैं परन्तु  संवैधानिक रूप से   प्राथमिक तौर पर  39 भाजपा  विधायक ही नायब सैनी सरकार के पक्ष में (अगर विश्वास प्रस्ताव  हो ) और विरोध में ( अगर अविश्वास प्रस्ताव हो ) ही वोट कर सकते हैं क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 189 (1) के अनुसार विधानसभा स्पीकर केवल  सदन में किसी प्रस्ताव पर मत बराबर होने की परिस्थिति में ही  अपना निर्णायक मत (कास्टिंग वोट ) दे सकता है.

बहरहाल, यह पूछे जाने पर कि क्या 15 मई की हरियाणा कैबिनेट की  बैठक में मुख्यमंत्री मौजूदा 14 वीं हरियाणा विधानसभा को समय पूर्व भंग करने की भी राज्यपाल से सिफारिश की जा सकती है  जिसका कार्यकाल हालांकि 3 नवम्बर 2024 तक है, इस पर हेमंत ने बताया कि बेशक मुख्यमंत्री नायब सैनी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट के पास ऐसा करने का अधिकार है परन्तु क्या राज्यपाल वर्तमान हरियाणा विधानसभा को समय पूर्व भंग करने पर अपनी स्वीकृति देंगे या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि  राज्यपाल को नायब सैनी सरकार के सदन में बहुमत पर भरोसा है या नहीं. बहरहाल, अगर राज्यपाल इस पर अपनी स्वीकृति दे देते हैं और विधानसभा भंग हो जाती  है,  तो चुनाव आयोग विधानसभा भंग होने की तारीख से अधिकतम  6 महीने के भीतर ताज़ा विधानसभा आम चुनाव करवा सकता है और इस दौरान नायब सैनी कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं. अगस्त, 2009 से अक्टूबर,2009 तक भूपेंद्र हुड्डा  और दिसम्बर, 1999 से फरवरी, 2000 तक ओपी चौटाला इसी प्रकार  तत्कालीन हरियाणा विधानसभाओं को समय पूर्व भंग करवा के कार्यवाहक प्रदेश के  मुख्यमंत्री बने रहे थे.

हेमंत ने हालांकि यह भी  बताया कि  23 वर्ष पूर्व  अप्रैल, 1991 में  प्रदेश के तत्कालीन  राज्यपाल  धनिक लाल मंडल ने तत्कालीन मुख्यमंत्री  ओपी चौटाला कैबिनेट  द्वारा तत्कालीन हरियाणा विधानसभा को भंग करने की सिफारिश को ख़ारिज कर दिया था. मंडल ने  केंद्र में तब  सत्तासीन  चंद्रशेखर सरकार से  तत्कालीन चौटाला सरकार को बर्खास्त कर  प्रदेश में राष्ट्रपतिशासन लगाने की सिफारिश की थी क्योंकि  उनके निर्देश के बावजूद  चौटाला ने सदन में उनकी सरकार का बहुमत सिद्ध नहीं किया था. उधर  चौटाला का तर्क था कि चूँकि वह राज्यपाल से पहले ही कैबिनेट से प्रस्ताव पारित करवाकर तत्कालीन  हरियाणा विधानसभा को भंग करवाने की सिफारिश कर चुके हैं, इसलिए उनके द्वारा सदन में बहुमत साबित करने का कोई औचित्य नहीं बनता. मार्च, 1991 में चौटाला की पार्टी के तीन विधायकों को विधानसभा स्पीकर  द्वारा दल-बदल विरोधी कानून में सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित करने के बाद तत्कालीन चौटाला सरकार अल्पमत में आ गयी थी जिस कारण मंडल ने चौटाला को सदन में बहुमत साबित करने का आदेश दिया था. बहरहाल, मंडल के उपरोक्त कदम के बाद चौटाला अगले आम चुनाव तक अर्थात जून, 1991 तक प्रदेश के कार्यवाहक मुख्यमंत्री नहीं बन पाए थे एवं 6 अप्रैल 1991 से 23 जून 1991 तक प्रदेश में राष्ट्रपतिशासन लागू रहा था एवं मंडल उस दौरान हरियाणा के प्रशासक रहे थे. 

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