भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। आज पंचकूला में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के रोड शो में पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल और मुख्यमंत्री नायब सैनी की अनुपस्थिति अनेक बड़े प्रश्न खड़े कर गई भाजपा में भी और विपक्ष में भी। और साथ ही समाचार आया कि 15 तारीख को मंत्रीमंडल की बैठक भी बुलाई गई है। चुनाव के समय में मंत्रीमंडल की बैठक बुलाना प्रश्न तो खड़े करता ही है।

गत 11 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गुरुग्राम में द्वारका एक्सप्रेस-वे की रैली में भीड़ का न जुटना और अगले दिन ही सरकार का भंग होना यह संदेश दे गया कि प्रधानमंत्री पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल की कार्यशैली से प्रसन्न नहीं हैं। नई सरकार के गठन में भी पूर्व मुख्यमंत्री ने ऐसा खेल खेला कि नायब को मुख्यमंत्री बना दिया और खुद उसके मार्गदर्शक बने रहे। अर्थात वास्तव में मुख्यमंत्री वही रहे। इसका असर भाजपा संगठन में भी दिखाई दिया और जनता में भी।

भाजपा का खुफिया तंत्र बहुत मजबूत है। उन्होंने यह बात पढ़ ली कि जिस तरीके से जो भाजपा सरकार में मनोहर लाल की एंटीइनकमबेंसी खत्म करने का खेल रचा था, वह बेकार हो गया है, बल्कि जनता में एंटीइनकमबेंसी कम करने की बजाय पार्टी में भी अंतर्विरोध बढ़ गए। शायद इसी का परिणाम था कि आज राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के पंचकूला के रोड शो में नड्डा जी के साथ न पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल नजर आए और न ही वर्तमान मुख्यमंत्री नायब सैनी। इन बातों की चर्चा चलने लगी। जो मीटिंग राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ली, उसमें दोनों को आमंत्रित किया।

तीन दिन पूर्व निर्दलीय विधायकों का भाजपा से समर्थन वापिस लेने के पश्चात सरकार पर अनिश्चितता के बादल छाये हैं। हालांकि मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री ने यह बात स्वीकार नहीं की और यह कहते रहे कि हम मजबूत हैं और दस की दस सीटें जीतेंगे लेकिन आज जो समाचार आया कि 15 तारीख को मंत्रीमंडल की बैठक बुलाई है, वह इस बात की ओर इशारा करती है कि कहीं न कहीं चिंता तो भाजपा को भी है। ऐसी स्थितियों में यह कह सकते हैं कि चिंगारियां तो सुलग चुकी, अब देखना यह है कि अग्नि का रूप कब धारण करेगी?

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