सीएम व गोयल के बाद अचानक विज के दरबार में पहुंचे ढ़ांडा, नाराजगी के बाद अचानक विज की तरफ बढ़ा ‘सरकार का मूव’

सीएम ने विज के पैर छूकर लिया आशीर्वाद

विज के अलावा दो भाजपा नेताओं को भी लगा झटका पर चुप बैठे 

अशोक कुमार कौशिक 

अचानक बड़े फैसले लेने वाली पार्टी के रूप में देश में अपनी पहचान बना चुकी भाजपा कब क्या करेगी, राजनीतिक पंडितों तक को इसकी भनक नहीं लग पाती। 12 मार्च को अचानक जजपा से गठबंधन तोड़कर मुख्यमंत्री मनोहर लाल की जगह नायब सैनी को प्रदेश की कमान सौंपकर भाजपा ने सभी को चौंका दिया था। 12 मार्च को पांच मंत्रियों के साथ शपथ लेने के ठीक एक सप्ताह बाद 19 मार्च को अपने मंत्रिमंडल विस्तार में शामिल किए गए आठ चेहरों में से सात नयों को शामिल कर नायब सैनी ने अनिल विज जैसे बड़े चेहरों को बाहर कर सभी को चौका दिया था। 

नायब सैनी का नाम मुख्यमंत्री के लिए सामने आने के बाद से सीएम की शपथ से लेकर दूसरे मंत्रिमंडल विस्तार तक नायब सैनी व सरकारी कार्यक्रमों से अनिल विज दूर रहे। मुख्यमंत्री बनने के बाद अंबाला पहुंचे नायब सैनी ने भी अपने पहले दो कार्यक्रमों के दौरान विज से दूरी बनाकर रखी। जिसे नायब सैनी के मुख्यमंत्री बनने से विज की नाराजगी को जोड़कर देखा गया। जानकारी के अनुुसार सीएम नायब सैनी आज पूर्व मंत्री अनिल विज के निवास पर आने वाले हैं। जे पी नड्डा के हस्तक्षेप से नायब सैनी का अचानक ये कार्यक्रम बना है।

कैबिनेट का विस्तार भी हुआ, लेकिन उन्हें इस बार कैबिनेट में भी मौका नहीं मिला। अब अनिल विज के तेवर नरम हैं और वह पीएम मोदी के मिशन 400 में जुटने की बात कर रहे हैं। भाजपा के ही सूत्र मानते हैं कि अनिल विज अक्सर अपने बयानों से चर्चा में रहते थे, इसके चलते उनके पर पार्टी ने कतरे हैं। वह करीब तीन दशक से हरियाणा में भाजपा के शीर्ष नेताओं में से एक हैं। 2014 में जब भाजपा को सूबे की सत्ता मिली तो चर्चा थी कि वह सीएम बन सकते हैं, लेकिन पहली बार के विधायक मनोहर लाल खट्टर को मौका मिला। अब करीब साढ़े 9 साल बाद खट्टर हटे तो उनकी उम्मीदें परवान चढ़ीं, लेकिन इस बार नायब सिंह सैनी को मौका मिला।

कहा जा रहा है कि इसके पीछे दो वजहें हैं। पहली यह कि नायब सिंह सैनी ओबीसी समुदाय के हैं। वहीं अनिल विज उसी पंजाबी समुदाय के हैं, जिससे मनोहर खट्टर ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में पार्टी ने पंजाबी समुदाय से इतर गैर-जाट ओबीसी नेता को चुना। इससे ओबीसी समाज को एकजुट रखने में मदद मिलेगी। इसके अलावा दूसरे राज्यों तक यह संदेश जाएगा कि भाजपा ओबीसी नेताओं को अवसर दे रही है। हालांकि भाजपा के इस फेरबदल ने अनिल विज के अलावा गुरुग्राम के सांसद राव इंद्रजीत सिंह यादव और भजनलाल परिवार के कुलदीप बिश्नोई को भी झटका दिया है। पता चला है कि ‘राव राजा’ ने अपने घूर विरोधी डॉ अभय सिंह को मंत्री बने पर उन्होंने चुप्पी साध ली।

कैबिनेट विस्तार में राव इंद्रजीत सिंह और कुलदीप बिश्नोई के करीबियों को मौका नहीं मिला है। कुलदीप बिश्नोई पूर्व सीएम भजनलाल के बेटे हैं और उनके पुत्र भव्य बिश्नोई विधायक हैं। उन्हें उम्मीद थी कि नई सरकार में बेटे को मंत्री पद मिल जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह कुलदीप बिश्नोई के लिए इस वजह से भी बड़ा झटका है क्योंकि वह जब कांग्रेस में थे तो उन्हें भूपिंदर सिंह हुड्डा के मुकाबले मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर देखा जाता था। अब उनके बेटे को एक मंत्री पद तक नहीं मिल पा रहा है। वह 2022 में ही भाजपा में शामिल हुए थे। 

असीम गोयल से हुई शुरूआत

19 मार्च के बाद अचानक घटनाक्रम बदला और अचानक हरियाणा सरकार का मूव विज के दरबार की तरफ बढ़ता दिखाया दिया। 20 मार्च को शपथ लेने के बाद सबसे पहले असीम गोयल आशीर्वाद लेने विज के घर पहुंचे। फिर मुख्यमंत्री नायब सैनी अंबाला विज के निवास पर पहुंचे करीब 40 मिनट तक बंद कमरें में विज से चर्चा भी की। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने शुक्रवार को बीजेपी के वरिष्ठ नेता और राज्य के पूर्व गृह मंत्री अनिल विज से मुलाकात की और पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया। मुख्यमंत्री सैनी विज के अंबाला छावनी स्थित आवास पर उनसे मिलने पहुंचे।

‘मुलाकात हुई है, कुछ बात हुई’

बैठक के बाद पूर्व गृहमंत्री अनिल विज से बात की गई तो उन्होंने मुलाकात हुई है, कुछ बात हुई है। वहीं नाराजगी की बातों को विज ने फिर से नकार दिया और कहा मैं भाजपा का अनन्य भगत हूं। मैं नाराज नहीं होता, ऐसे बातें होती रहती हैं। मैं दिल पर नहीं लगाता। मंत्रिमंडल विस्तार में न बुलाए जाने को लेकर विज ने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया।

रविवार को पहली बार मंत्री परिषद का चेहरा बने महिपाल ढांडा ने घर पहुंचकर विज का आशीर्वाद लिया। जिससे मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सबसे पहले असीम गोयल विज से घर जाकर मिले, फिर मुख्यमंत्री नायब सैनी और रविवार को महिपाल ढांडा विज से मिलने उनके घर पहुंचे। प्रदेश सरकार के अचानक विज की तरफ बढ़े मूव को देश व प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले राजनीतिक पंडितों ने प्रदेश में 25 मई को होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले या चुनावों के तुरंत बाद कुछ बढ़ा करने से जोड़कर देखा जा रहा है।

प्रदेश में भाजपा के सबसे अनुभवी नेता

अनिल विज प्रदेश में भाजपा के सबसे सीनियर नेता है। विज के राजनीतिक सफर की शुरूआत मई 1990 में अंबाला कैंट पर हुए उपचुनाव में भाजपा की टिकट पर विधायक बने। 1996 और 2000 में निर्दलीय विधायक चुने गए। 2005 के विधानसभा चुनाव में मात्र 615 वोटों से कांग्रेस के उम्मीदवार से एडवोकेट देवेंद्र बंसल से हारने के बाद 2007 में विकास परिषद पार्टी बनाई। 2009 के चुनाव से पहले भाजपा ज्वाइंन की तथा 2009, 2014 व 2019 में लगातार तीन बार विधायक चुने गए। 2014 से 2024 तक मनोहर सरकार में विज महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे विज को नायब मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। जिसे विज की नायब सैनी व भाजपा नेतृत्व से नाराजगी से जोड़कर देखा गया। 

हरियाणा में सत्ता परिवर्तन के बाद से विवादों में घिरे भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अनिल विज ने अपनी नाराज़गी जगज़ाहिर कर दी थी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि अगर उन्हें सीएम के लंबित इस्तीफे के बारे में जानकारी नहीं है तो गृह मंत्री बने रहने का कोई मतलब नहीं है। विज ने स्पष्ट रूप से कहा कि 12 मार्च को उन्हें सबसे ज्यादा दुख इस बात से हुआ कि मनोहर लाल खट्टर उन्हें इस्तीफा देने के लिए अपनी कार में राजभवन ले गए, लेकिन इसके बाद की घटनाओं के बारे में कुछ भी नहीं बताया।

हरियाणा के पूर्व मंत्री, जिनकी अक्सर खटटर के साथ अनबन रहती थी, ने स्पष्ट रूप से कहा कि नए मुख्यमंत्री के रूप में नायब सिंह सैनी का चयन भाजपा विधायक दल की बैठक में उनके लिए “एक बम” की तरह है।

विज ने बताया था, “जब पर्यवेक्षकों ने सैनी के नाम की घोषणा की, तो यह मेरे लिए बम गिरने जैसा था। मैं पार्टी का वरिष्ठ सदस्य हूं और वरिष्ठ मंत्री था। वे (खट्टर) अपनी योजनाएं मेरे साथ साझा कर सकते थे। मैं राज्य का गृह मंत्री था और मुझे इतनी गलत जानकारी थी कि मुझे नहीं पता था कि अगले कुछ मिनटों में मेरे राज्य का मुख्यमंत्री बदला जाने वाला है। अगर गृह मंत्री का पद ऐसा है, तो किसी को इसकी ज़रूरत क्यों है?”

वरिष्ठ भाजपा नेता ने विधायक दल की बैठक बीच में ही छोड़ दी थी और एक निजी वाहन से अंबाला में अपने आवास चले गए थे। इसके बाद वे 12 मार्च को सैनी के शपथ ग्रहण समारोह और 19 मार्च को कैबिनेट विस्तार दोनों में शामिल नहीं हुए थे।

यह पूछे जाने पर कि क्या खट्टर या उनके उत्तराधिकारी सैनी ने उन्हें नए मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए कहा था, विज ने नकारात्मक जवाब दिया। उन्होंने आगे कहा कि मंगलवार को दोपहर बाद उन्हें सैनी का फोन आया और उन्होंने उन्हें कैबिनेट विस्तार का गवाह बनने के लिए आमंत्रित किया।

जब विज का ध्यान खट्टर और सैनी के उन बयानों की ओर दिलाया, जिनमें उन्होंने कहा था कि वे उन्हें कैबिनेट में शामिल होने के लिए मनाएंगे, तो पूर्व मंत्री ने जवाब दिया कि केवल दोनों नेता ही इस सवाल का जवाब दे सकते हैं।

उन्होंने पहले मीडिया से एक सवाल के जवाब में कहा था कि सैनी कैबिनेट में शामिल होना एक “काल्पनिक सवाल” है।

गुरुवार की सुबह, विज ने उर्दू कवि अल्लामा इकबाल के दोहे को एक्स, पर पोस्ट किया : “कुछ बात है कि हस्ती हमारी मिटती नहीं हमारी। सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।”

कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी। सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।।

वैसे विज हमेशा न केवल नाराजगी की चर्चाओं को नकारते रहे, बल्कि खुद को भाजपा का अन्नय भक्त भी बताया। भले ही विज को नायब मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली हो, परंतु 20 मार्च से विज दरबार की तरफ शुरू हुए प्रदेश सरकार के मूव ने प्रदेश भाजपा में अनिल विज के महत्व का संकेत मिलना शुरू हो गया।