आजादी के लिए लड़े गए थे ये बड़े आंदोलन, जिसने ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया आजाद होने के बाद भारत के 7 प्रमुख आंदोलन कौन-से रहे हैं अशोक कुमार कौशिक भारत में वक्त-बे-वक्त होने वाली सामाजिक उथल-पुथल में किसानों की भूमिका भले ही गौण रही हो, लेकिन भारतीय इतिहास के झरोखे में नजर दौड़ाएंगे, तो आपको पता चलेगा कि अपने ही देश में आजादी के पहले और आजादी के बाद किसानों के कई ऐसे आंदोलन हुए, जिसने यहां के हुक्मरानों की चूलें तक हिला के रख दी। खासकर, यदि हम आजादी के पहले की बात करें, तो भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आंदोलन की शुरुआत की चंपारण के नीलहा किसान और गुजरात के खेड़ा के किसानों की समस्याओं से हुई। एक तरह से देखेंगे, तो बिहार के चंपारण के नीलहा आंदोलन से ही महात्मा गांधी का भारत की आजादी की लड़ाई में पदार्पण भी हुआ। इस लेख में हम देश की आजादी से पहले और देश की आजादी के बाद के आंदोलनों की चर्चा कर रहे हैं जिन्होंने सरकारों को हिला के रख छोड़ा था। हाल ही में किसान आंदोलन चर्चाओं में है, जिसे किसान संगठनों की ओर से दिल्ली चलो नाम दिया गया है। इससे पहले साल 2020 में किसान आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जिसके बाद कुछ शर्तों के साथ यह आंदोलन खत्म हो गया था। हालांकि, अब एक बार फिर किसानों ने अपनी मांगों को लेकर दिल्ली की तरफ कूच किया है। भारत के इतिहास में ऐसे कई आंदोलन हैं, जो बड़े स्तर के आंदोलन के लिए जाने जाते हैं और जिनसे व्यापक प्रभाव भी पड़ा। भारत के स्वाधीनता आंदोलन में जिन लोगों ने शीर्ष स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, उनमें आदिवासियों, जनजातियों और किसानों का योगदान अहम रहा। आजादी से पहले किसानों ने अपनी मांगों के समर्थन में जो आंदोलन किए वे गांधीजी के प्रभाव के कारण हिंसा और बर्बादी से भरे नहीं होते थे, लेकिन अब आजादी के बाद जो आंदोलन हो रहे हैं, हिंसा और राजनीति से ज्यादा प्रेरित दिखाई देते हैं। पर किसान आंदोलन इसका अपवाद है। आज भारत को आजाद हुए 76 साल हो गए हैं। इस आजादी को पाने के लिए कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने योगदान दिया। देश को आजादी हासिल करने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। इस दौरान कई आंदोलन हुए जिसके बाद 15 अगस्त 1947 के दिन देश आजाद हुआ। ऐसे में आज हम आपको 10 बड़े आंदोलनों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने आजादी में एक अहम भूमिका निभाई थी। शुरुआत करते हैं सन् 1857 से… 1857 का विद्रोह प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाने वाला विद्रोह सन् 1857 में हुआ था। दो वर्षों तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चलने वाला यह सशस्त्र विद्रोह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध था। मेरठ सहित देश के अलग-अलग छावनी क्षेत्रों में आगजनी और झड़पों से शुरू हुए इस विद्रोह ने आगे चलकर बड़ा रूप ले लिया। नील विद्रोह साल 1859 से 60 तक बंगाल में हुआ नील-विद्रोह अंग्रेजी शासन के विरुद्ध किसानों का पहला संगठित और जुझारू विद्रोह था। हालांकि 19वीं शताब्दी के मध्य से भारत की आजादी तक कई किसान आंदोलन हुए थे। इनमें नील आंदोलन, दक्कन विद्रोह, पाबना आंदोलन, किसान सभा आंदोलन, मोपला विद्रोह, एका आंदोलन, बारदोली सत्याग्रह, तेलंगाना आंदोलन और तेभाग आंदोलन भी शामिल है। देश में नीलहा किसानों का चंपारण सत्याग्रह, पाबना विद्रोह, तेभागा आंदोलन, खेड़ा आंदोलन और बारदोली आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे मूर्धन्य नेताओं ने किया। भारत में 1859 से किसानों के आंदोलन की हुई शुरुआत भारत में किसान आंदोलनों की बात करें, तो उनके आंदोलन या विद्रोह की शुरुआत सन् 1859 से हुई थी। अंग्रेजों की नीतियों से सबसे ज्यादा किसान प्रभावित हुए, इसलिए आजादी के पहले भी कृषि नीतियों ने किसान आंदोलनों की नींव डाली। वर्ष 1857 के सिपाही विद्रोह विफल होने के बाद विरोध का मोर्चा किसानों ने ही संभाला, क्योंकि अंग्रेजों और देशी रियासतों के सबसे बड़े आंदोलन उनके शोषण से उपजे थे। भारत में जितने भी किसान आंदोलन हुए, उनमें से ज्यादातर अंग्रेजों या फिर देश के हुक्मरानों के खिलाफ हुए और उन आंदोलनों ने शासन की चूलें तक हिला दीं। आजादी के पहले देश में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों ने भी किसानों के शोषण, उनके साथ होने वाले सरकारी अधिकारियों की ज्यादतियों का सबसे बड़ा संघर्ष, पक्षपातपूर्ण व्यवहार और किसानों के संघर्ष को प्रमुखता से प्रकाशित किया। छापामार आंदोलन को दिया बढ़ावा देश में आंदोलनकारी किसानों ने छापामार आंदोलन को तवज्जो दी। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को देसी रियासतों की मदद से अंग्रेजों द्वारा कुचलने के बाद विरोध की राख से किसान आंदोलन की ज्वाला धधक उठी। कूका विद्रोह कृषि संबंधी समस्याओं के खिलाफ अंग्रेज सरकार से लड़ने के लिए बनाए गए कूका संगठन के संस्थापक भगत जवाहरमल थे। 1872 में इनके शिष्य बाबा रामसिंह ने अंग्रेजों का कड़ाई से सामना किया। बाद में उन्हें कैद कर रंगून भेज दिया गया, जहां पर 1885 में उनकी मौत हो गई। रामोसी किसानों का आंदोलन महाराष्ट्र में वासुदेव बलवंत फड़के के नेतृत्व में रामोसी किसानों ने जमींदारों के अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह किया। इसी तरह, आंध्रप्रदेश में सीताराम राजू के नेतृत्व में औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध यह विद्रोह हुआ, जो सन् 1879 से लेकर सन् 1920-22 तक छिटपुट ढंग से चलता रहा। दक्कन का किसान आंदोलन बता दें कि आजादी के पहले का किसानों का यह आंदोलन एक-दो स्थानों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि देश के कई भागों में पसर गया। दक्षिण भारत के दक्कन से फैली यह आग महाराष्ट्र के पूना एवं अहमदनगर समेत देश के कई हिस्सों में फैल गई। इसका एकमात्र कारण किसानों पर साहूकारों का शोषण था। वर्ष 1874 के दिसंबर में एक सूदखोर कालूराम ने किसान बाबा साहिब देशमुख के खिलाफ अदालत से घर की नीलामी की डिक्री प्राप्त कर ली। इस पर किसानों ने साहूकारों के विरुद्ध आंदोलन शुरू कर दिया। इन साहूकारों के विरुद्ध आंदोलन की शुरुआत वर्ष 1874 में शिरूर तालुका के करडाह गांव से हुई। झारखंड का टाना भगत आंदोलन विभाजित बिहार के झारखंड में भी आजादी के दौरान टाना भगत ने 1914 में आंदोलन की शुरुआत की थी। यह आंदोलन लगान की ऊंची दर तथा चौकीदारी कर के विरुद्ध था। इस आंदोलन के मुखिया जतरा टाना भगत थे, जो इस आंदोलन के साथ प्रमुखता से जुड़े थे। मुंडा या मुंडारी आंदोलन की समाप्ति के करीब 13 साल बाद टाना भगत आन्दोलन शुरू हुआ। यह ऐसा धार्मिक आंदोनलन था, जिसके राजनीतिक लक्ष्य थे। यह आदिवासी जनता को संगठित करने के लिए नए ‘पंथ’ के निर्माण से जुड़ा आंदोलन था। यह एक तरह से बिरसा मुंडा के आंदोलन का ही विस्तार था। इन्हीं में पाबना विद्रोह, तेभागा आंदोलन, चम्पारण सत्याग्रह, बारदोली सत्याग्रह और मोपला विद्रोह प्रमुख किसान आंदोलन शामिल हैं। वर्ष 1918 के दौरान गांधी के नेतृत्व में खेड़ा आंदोलन की शुरुआत की गई। ठीक इसके बाद 1922 में ‘मेड़ता बंधुओं’ (कल्याणजी तथा कुंवरजी) के सहयोग से बारदोली आंदोलन शुरू हुआ। हालांकि, इस सत्याग्रह का नेतृत्व सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया। लेकिन, अंग्रेजी हुक्मरानों की चूलें हिलाने वाला सबसे अधिक प्रभावशाली किसानों का आंदोलन नीलहा किसानों का चंपारण सत्याग्रह रहा। उत्तर प्रदेश में किसान का एका आंदोलन होमरूल लीग के कार्यकताओं के प्रयास तथा मदन मोहन मालवीय के दिशा-निर्देश में फरवरी1918 में उत्तर प्रदेश में ‘किसान सभा’ का गठन किया गया। वर्ष 1919 के अंतिम दिनों में किसानों का संगठित विद्रोह खुलकर सामने आया। इस संगठन को जवाहरलाल नेहरू ने अपने सहयोग से शक्ति प्रदान की. उत्तर प्रदेश के हरदोई, बहराइच एवं सीतापुर जिलों में लगान में वृद्धि एवं उपज के रूप में लगान वसूली को लेकर अवध के किसानों ने ‘एका आंदोलन’ नामक आंदोलन चलाया। जालिया वाला बाग कांड 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलिया वाला बाग में अंग्रेजी फौज ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चला के सैकड़ों बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों को मार डाला था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डालने वाली घटना यही जघन्य हत्याकांड था। असहयोग आंदोलन महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में चलाया गया असहयोग आंदोलन सितंबर 1920 से फरवरी 1922 तक चला। जलियांवाला बाग जैसे अन्य नरसंहारों को देख असहयोग आंदोलन की शुरुआत की गई थी। मोपला विद्रोह केरल के मालाबार क्षेत्र में मोपला किसानों द्वारा 1920 में विद्रोह किया गया। शुरुआत में यह विद्रोह अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ था। महात्मा गांधी, शौकत अली, मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे नेताओं ने इस आंदोलन में अपना सहयोग दिया। इस आंदोलन के मुख्य नेता के रूप में अली मुसलियार उभरकर सामने आए। 1920 में इस आंदोलन ने हिन्दू-मुस्लिमों के बीच सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले लिया और जल्द ही यह आंदोलन अंग्रेजों द्वारा कुचल दिया गया। चौरीचौरा कांड भारत के इतिहास में कभी ना भूलने वाला काला दिन था 1 फरवरी, 1922 । चौरीचौरा थाने के दारोगा गुप्तेश्वर सिंह ने इस दिन आजादी की लड़ाई लड़ने वाले बलिदानियों की खुलेआम पिटाई की थी। ऐसे में सत्याग्रहियों ने भी पुलिसवालों पर पथराव शुरू कर दिया और जवाबी कार्यवाही में पुलिसवालों ने भी खूब गोलियां चलाई। इस घटना में 260 लोगों की मौत हो गई। जब सत्याग्रहियों का गुस्सा फूटा को उन्होनें थाने में 23 पुलिसवालों को जिंदा जला दिया था। सविनय अवज्ञा आन्दोलन ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चलाए गए आंदोलनों में से एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन भी था। भारत को 1929 तक अहसास हो गया था कि ब्रिटेन देश को आजाद नहीं करेगा और औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने की घोषणा पर भी अमल नहीं करेगा। ऐसे में कांग्रेस द्वारा सन् 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई। पूर्ण स्वराज की मांग लाहौर में रावी नदी के तट पर सन् 1929 में कांग्रेस द्वारा रावी अधिवेशन का आयोजन किया गया था। इस दौरान ब्रिटिश सरकार से पहली बार पूर्ण स्वराज की मांग की गई थी, जिसके बाद उन्हें बड़ा झटका लगा था। नमक सत्याग्रह/दांडी मार्च गांधी जी द्वारा चलाए गए प्रमुख आंदोलनों में से एक नमक सत्याग्रह में 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला गया था। नमक पर ब्रिटिश राज के एकाधिकार का विरोध करते हुए यह मार्च निकाला गया था, जो ब्रिटिश राज के खिलाफ बगावत का बिगुल बन कर सामने आया। आजाद हिंद फौज भारत को आजाद कराने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने 1942 में आजाद हिंद फौज सेना का गठन किया। इस फौज ने ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया था। इस सेना ने देश को आजाद कराने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई और सुभाष चंद्र बोस इस फौज का महत्वपूर्ण स्तंभ थे। भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाला भारत छोड़ो आंदोलन 8 अगस्त 1942 को शुरू हुआ था। इस आंदोलन ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाने में बड़ी भूमिका निभाई। इस आंदोलन में पूरे देश की भागीदारी थी, जिसके बाद अंग्रेजों को अहसास हो गया कि वह भारत में अब लंबे समय तक नहीं टिक पाएंगे। भारत की आजादी के बाद चलाए गए प्रमुख आंदोलन भारत के इतिहास में आंदोलनों का विशेष महत्व रहा है। क्योंकि, आजाद भारत की तस्वीर को बनाने में आंदोलनों ने अपना योगदान दिया, जिसमें कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहूति भी दी। अपनी बात को प्रमुखता से रखने और विरोध जताने के लिए आंदोलनों की पृष्ठभूमि शुरू से ही मजबूत रही है। यही वजह है कि देश के आजाद होने के बाद भी भारत में समय-समय पर कई बड़े आंदोलन हुए, जिनसे सामाजिक स्तर कई प्रभाव पड़े। हाल ही में किसानों की ओर से दिल्ली चलो आंदोलन की शुरूआत की गई है, जिसके तहत दिल्ली की तरफ कूच किया गया है। क्या आप जानते हैं कि देश के आजाद होने के बाद भारत के 7 प्रमुख आंदोलन कौन-से रहे हैं सेव साइलेंट वैली आंदोलन सेव साइलेंट वैली आंदोलन आजाद भारत का पहला और सबसे बड़े आंदोलनों में से एक है। इस आंदोलन की शुरुआत केरल में वर्षा वनों को बचाने के लिए की गई थी। यहां पनबिजली परियोजना लगाने का प्रस्ताव थी, लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस परियोजना पर रोक लगा दी थी और इस क्षेत्र को 1984 में नेशनल पार्क का दर्जा दिया गया। चिपको आंदोलन आपने चिपको आंदोलन का नाम जरूर सुना होगा, जो कि वनों की कटाई को रोकने के लिए चलाया गया था। इस आंदोलन की शुरुआत अलकनंदा घाटी में मंडल गांव से हुई थी। आंदोलन में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जेपी आंदोलन हम जब भी राष्ट्रीय आपातकाल के बारे में पढ़ते हैं, तो इस आंदोलन का जिक्र भी होता है। जेपी आंदोलन बिहार में शुरू किया गया था, जो कि बिहार सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ था। इस आंदोलन को सामाजिक कार्यकर्ता जय प्रकाश नारायण द्वारा शुरू किया गया था, जिसमें छात्रों ने भाग लिया था। साल 1974 में यह आंदोलन बिहार के मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर को पद से हटाने के लिए चलाया गया था। जंगल बचाओं आंदोलन इस आंदोलन की शुरुआत साल 1980 में बिहार से हुई थी, लेकिन बाद में यह ओडिसा और झारखंड के जंगलों तक फैल गया था। उस समय सरकार की ओर से बिहार के जंगलों को सागौन की लकड़ी के लिए वृक्ष लगाने के लिए चुना था, लेकिन स्थानीय आदिवासियों ने इसका विरोध किया, जो कि बड़े आंदोलनों में जाना जाता है। नर्मदा बचाओ आंदोलन आपने कभी-न-कभी इस आंदोलन के बारे में भी जरूर सुना होगा। इस आंदोलन की शुरुआत 1985 में हुई थी, जिसमें पर्यावरणविद् से लेकर किसान व आदिवासी लोग शामिल थे। इस आंदोलन में लोगों ने बांध बनाने का विरोध किया था। अन्ना आंदोलन भारत के इतिहास में साल 2011 के अन्ना आंदोलन को कौन भूल सकता है। इस आंदोलन में अन्ना हजार ने जनलोकपाल बिल को लेकर आंदोलन किया था। यही वह आंदोलन था, जिससे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल राजनीति में उतरे थे। निर्भया आंदोलन पूरे देश को झकझोर के रखने वाले निर्भया केस के बाद इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जिसमें देश की बेटियों के लिए सुरक्षा की मांग की गई थी। इस आंदोलन को देश के सबसे बड़े आंदोलनों में से एक गिना जाता है, जो कि महिलाओं पर केंद्रित था। नागरिकता संशोधन आंदोलन साल 2019 के दिसंबर में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर व्यापक स्तर पर आंदोलन चलाया गया था। इसका असर खासतौर पर देश की राजधानी नई दिल्ली में भी देखने को मिला था। इस दौरान कुछ जगहों पर हिंसा भी दर्ज की गई थी। किसान आंदोलन साल 2020 में किसानों की ओर तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन किया गया था। इस आंदोलन के तहत बड़ी संख्या किसान दिल्ली की सीमा पर डटे थे। वहीं, लाल किला पर हिंसा भी दर्ज की गई थी। Post navigation गुस्से में किसान और ट्रेड यूनियन : किसानों का ‘दिल्ली मार्च’ 2 दिन के लिए स्थगित, प्रदर्शनकारी की मौत के बाद तानाशाही मोदी हुकूमत का दोहरा चरित्र हुआ जगजाहिर: कुमारी सैलजा