महामंडलेश्वर धर्मदेव ने उतराधारी शिष्य अभिषेक बंगा को दिया आशीर्वाद 

पर्णकुटी आश्रम हरी मंदिर में जारी है 17वीं कल्पवास साधना 

सभी श्रद्धालुओं और भक्तों के लिए की मंगलकारी जीवन की कामना 

फतह सिंह उजाला 

पटौदी 11 फरवरी । तख्त नहीं सुल्तान बदलते रहते हैं  – दरबार नहीं दरबान बदलते रहते हैं । जीवन चक्र अनवरत चलता ही रहता है । जो भी कोई इंसान आया अथवा जन्म लिया उसका परलोक गमन निश्चित भी है । लेकिन कुछ महामना, व्यक्ति और व्यक्तित्व इस प्रकार के होते हैं कि उनके परलोक गमन के उपरांत भी कई कई पीढियां तक याद करने के साथ ऐसे लोगों के जीवन चरित्र या जीवन आदर्शो को आत्मसात किया जाता रहता है। बेहद गहरी और जन्म कर्म सहित परमपिता परमेश्वर और गुरु जनों के प्राप्त आशीर्वाद पर चर्चा करते हुए वेद पुराणों के मर्मज्ञ महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने अपने उत्तराधिकारी शिष्य अभिषेक बंगा को जन्मदिवस के उपलक्ष्य पर आशीर्वाद देते हुए यह बात कही।

महामंडलेश्वर धर्मदेव ने आश्रम हरी मंदिर संस्कृत महाविद्यालय के 104 वर्ष के लंबे सफर की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा दादा गुरु ब्रह्मलीन स्वामी अमर देव के द्वारा तत्कालीन पंजाब में आश्रम हरी मंदिर के नाम से संस्था की स्थापना की गई । आश्रम हरी मंदिर की श्रृंखला में मौजूदा समय में विभिन्न शिक्षण संस्थाएं कार्यरत हैं । उन्होंने कहा गुरुजनों का आशीर्वाद और अनुकंपा है कि आज यह संस्था वट वृक्ष की तरह से विस्तार  लेकर अपनी जड़े मजबूत बन चुकी है। गुरुजनों की कृपा, आशीर्वाद, अनुकंपा एक प्रकार से भगवान का आशीर्वाद और करुणामई दृष्टि के समकक्ष ही होता है । ब्रह्मनिस्ट –  ब्रह्मलीन  दादा गुरु स्वामी अमरदेव ने हिमालय की कंधराओं गुफाओं में कठोर तप किया । उन्होंने तप करके अपने आप को पावन किया, उनके जन्म और कर्म दोनों ही दिव्य है। दादा गुरु ब्रह्मलीन स्वामी अमरदेव के बाद गुरु ब्रह्मलीन स्वामी कृष्णदेव के द्वारा संस्था को संभाला गया ।

दादा गुरु ब्रह्मलीन स्वामी अमर देव के द्वारा ब्रह्मलीन गुरु कृष्ण देव को 13 अप्रैल 1950 को संन्यास की दीक्षा दी गई । इसी प्रकार से यह परंपरा को आगे बढ़ते हुए संन्यास की दीक्षा लेकर 31 वर्ष पहले संस्था को चलाने का दायित्व अपने कंधों पर लिया। महामंडलेश्वर धर्म देव ने भगवान श्री कृष्णा और अर्जुन के बीच दिव्य दर्शन और दिव्या दृष्टि के प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा 5160 वर्ष पहले श्री कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में बताया था कि जन्म और कर्म दोनों ही दिव्य है । कुरुक्षेत्र के मैदान में ही अर्जुन को भगवान श्री कृष्णा ने अपना विराट स्वरूप दिखाया और इस विराट स्वरूप को देखने अथवा दर्शन करने के लिए अर्जुन को दिव्या दृष्टि भी प्रदान की गई । यह परंपरा अनंत काल से चली आ रही है। महामंडलेश्वर धर्मदेव ने जीव अथवा इंसान के जीवन चक्र सहित जन्म और मरण के सिलसिले की चर्चा करते हुए कहा हम सभी सौभाग्यशाली हैं की ब्रह्मनिस्ट साधु संतों का आशीर्वाद हम सभी पर बना हुआ है। इसी मौके पर महामंडलेश्वर धर्मदेव ने उपस्थित सभी श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हुए कहा सभी भक्तों और श्रद्धालुओं के लिए दुआ है कि निरोगी रहे, साधन संपन्न बने, बच्चे अभिभावकों का कहना माने और बुजुर्गों की सेवा करें।

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