एक सोची-समझी साजिश के तहत सरकारी स्कूलों को बंद कर सरकार प्राइवेट हाथों में देना चाहती है शिक्षा

सरकार की साजिश हुई कामयाब तो लाखों विद्यार्थी महंगी शिक्षा ग्रहण करने को होंगे मजबूर,गरीब तबका उच्च शिक्षा से हो जाएगा बाहर

चंडीगढ़, 14 दिसंबर।  अखिल भारतीय कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री, कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य और हरियाणा कांग्रेस की पूर्व प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा ने कहा है कि जिस प्रदेश और देश की सरकारें शिक्षा पर अधिक ध्यान देती है वहां पर विकास ही विकास दिखाई देता है पर हरियाणा में सरकार की अनदेखी के चलते राजकीय विद्यालयों में शिक्षा का स्तर शून्य हो चुका है। एक ओर जहां छोटे से राज्य झारखंड ने शिक्षा का बजट एक साल में दस गुना बढ़ाया है वहीं हरियाणा ने  शिक्षा पर खर्च 11.76 प्रतिशत कम कर दिया है। दूसरी ओर प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में शैक्षणिक स्टाफ के 60 प्रतिशत से अधिक पद खाली पड़े हैं, ऐसा लग रहा है कि गठबंधन सरकार ने शिक्षा का प्राइवेट हाथों में देने का पूरा मन बना लिया है।

अगर ऐसा हुआ तो सरकार गरीबों के बच्चों को शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित करने की साजिश कर रही है।

मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा है कि राज्य सरकारों के बजट पर भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से जो रिपोर्ट जारी गई है उसमें हरियाणा सरकार की असलियत सामने आई है जो वह कहती है कर नहीं रही है। उसने जनता को अपने हाल पर छोड़ दिया है। झारखंड ने शिक्षा खर्च एक साल में दस गुना बढ़ाया है,  राजस्थान ने सामाजिक कल्याण की योजनाओं पर खर्च 24 गुना बढ़ाया है पर हरियाणा ने शिक्षा पर खर्च बढ़ाने के बजाए 11.76 प्रतिशत कम कर दिया है। प्रदेश में सरकारी स्कूलों के हालात ऐसे है कि  या तो स्कूलों में अध्यापक नहीं है, कहीं अध्यापक हैं तो बच्चे नहीं और जहां दोनों हैं वहां के जर्जर भवन कक्षा चलाने के लायक नहीं हैं। सरकार की अनदेखी बच्चों को सरकारी स्कूल से दूर कर रही है,  शिक्षा विभाग द्वारा तैयार किये गए डेटा से पता चला है कि प्राथमिक विद्यालयों में इस वर्ष 1.21 लाख छात्रों की कमी आई है। हरियाणा सरकार निजीकरण एवं स्वहित के लिए हरियाणा के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है।  पिछले शिक्षा सत्र में प्राइमरी स्कूलों में 1041832 दाखिले हुए थे पर इस साल 920899 दाखिले हुए यानि 120933 दाखिले कम हुए। इससे साबित होता है कि सरकार की शिक्षा नीति और उनके क्रियान्वयन में कही न कही कोई कमी जरूर है। उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों की अपेक्षा प्राइवेट स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ रही है यानि अभिभावक बच्चों के भविष्य को देखते हुए उन्हें सरकारी स्कूल के बजाए प्राइवेट स्कूलों में दाखिला करवा रहे है, कहा जा सकता है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर शून्य हो चुका है। जहां पर सुविधाओं के नाम कुछ भी नहीं है, सुविधाओं के नाम पर केवल कागजों का पेट भरा जा रहा है। सरकार को बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए शिक्षा के स्तर पर अधिक ध्यान देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि प्रदेश के कालेजों में भी हालात और ज्यादा खराब हैै। प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में शैक्षणिक स्टाफ के 60 प्रतिशत से अधिक पद खाली पड़े हैं। भाजपा-जजपा गठबंधन  सरकारी कॉलेजों में सहायक प्रोफेसर की भर्ती बंद करने का षड्यंत्र रच रही है। प्रदेश में साल 2019 में सिर्फ 524 पदों पर कुछ ही विषयों में आखिरी बार सहायक प्रोफेसर की भर्ती की गई थी। आधे से अधिक विषय ऐसे बचे हैं, जिनकी वैकेंसी 2016 के बाद से ही नहीं आई हैं। सरकारी कॉलेजों में सहायक प्रोफेसर के 8137 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 4738 पद रिक्त हैं। निदेशक उच्चतर शिक्षा ने 1535 रिक्त पदों को भरने के लिए 02 सितंबर 2022 को आग्रह पत्र एचपीएससी को भेजा, लेकिन यूजीसी की गाइडलाइन में संशोधन का हवाला देकर भर्ती को वापिस मंगा लिया। उन्होंने कहा कि प्रदेश के 97 एडेड कॉलेज में टीचिंग स्टाफ के 2932 व नॉन टीचिंग स्टाफ के 1664 पद हैं। पर सरकार कोई ध्यान ही नही दे रही है। गठबंधन सरकार की साजिश सिरे चढ़ गई तो फिर एडेड कॉलेज पूरी तरह निजी हो जाएंगे, क्योंकि सरकार स्टाफ के समायोजन के साथ ही एडेड कॉलेज से इन पदों को ही खत्म कर दिया जाएगा। ऐसे में लाखों विद्यार्थी महंगी शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर होंगे व ग्रामीण-गरीब तबका उच्च शिक्षा से ही बाहर हो जाएगा।

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