क्या हुड्डा तिकड़ी को निपटाने में होंगे कामयाब?
जूनियर हुड्डा की निगाहें अहीरवाल पर, चुनाव करीब आते ही बढ़ाई सक्रियता
कांग्रेस में भी लोकसभा चुनावों को लेकर मंथन व रणनीति बनाने का शुरू हुआ दौर

अशोक कुमार कौशिक

आखिरकार कांग्रेस में भी 2024 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों को लेकर मंथन की शुरूआत हो गई है। कांग्रेस के राज्य प्रभारी दीपक बाबरिया दिल्ली में शीर्ष नेताओं से मुलाकात कर आने वाले वक्त के लिए चिंतन मंथन औऱ आगे की रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं। कांग्रेस प्रभारी हरियाणा के सियासी दिग्गजों को साथ में लेकर सभी दस की दस लोकसभा सीटों औऱ सभी विधानसभा सीटों पर दौरा करने की तैयारी में हैं। पार्टी संगठन को मजबूत करने के साथ-साथ फील्ड का फीडबैक लेने का काम भी इस दौरान होगा। इस मुहिम के तहत उन्होंने दिल्ली में नेता विपक्ष और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मुलाकात की। उन्होंने संगठनसूची के नामों को लेकर चर्चा की। पार्टी में चल रही गुटबाजी को लेकर बाबरिया सख्त संकेत दे चुके हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि पार्टी के नेता अनुशासन की लाइन को पार नहीं करें, जिसको किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इतना ही नहीं, प्रदेश में दो दिनों तक प्रदेश कांग्रेस ऑफिस में मुलाकात कर जा चुके दीपक बाबरिया अगले हफ्ते फिर से हरियाणा दौरे पर आने की तैयारी में हैं।

भिवानी रैली को लेकर विरोधी एकजुट

पुरानी कहावत है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है और जब बात राजनीति की हो तो यहां ये कहावत कुछ ज्यादा ही सटीक बैठती हुई नजर आती है और कोई किसी के लिए ग्रांउड खाली नहीं रखता है। थाली में सजाकर कोई सत्ता भी नहीं सौंपता है इसलिए कांग्रेस में हुड्डा को फ्री हेंड देने से रोकने के लिए कांग्रेस का एक त्रिगुट सामने आया है। कांग्रेस में तीन नेताओं के एक साथ जमावडे के हरियाणा की राजनीति में बहुत सियासी मायने निकलते हैं। ये बडे सवाल भी खड़े करता है कि क्या कांग्रेस में सबकुछ ठीक चल रहा है? क्या हरियाणा में कांग्रेस का एक बड़ा धडा हुड्डा कांग्रेस की छवि से बाहर निकलने के लिए छटपटा रहा है।

कांग्रेस में अब हुड्डा के सामने रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी और कुमारी सैलजा जी का फ्रंट मजबूती के साथ सामने होने से ये बात साफ हो गई है कि कुछ तो अंदरखाते बड़ा चल रहा है। हां, ये अलग बात है कि तीन मिलकर तेरह हो पाएंगे या नहीं लेकिन ये जरूर है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा को हरियाणा में कांग्रेस की अकेली ताकत दिखाई देते रहें ये इन नेताओं को मंजूर नहीं है।

फिलहाल इस गुट की ताकत देखी जाए इसमें रणदीप सुरजेवाला हैं, किरण चौधरी हैं, कुमारी सैलजा हैं और इसके साथ ही शमशेर गोगी और रेणूबाला दो विधायक भी शामिल हैं। किरण चौधरी को मिलाकर कहें तो तीन विधायक इस गुट में हैं। चौधरी भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन बिश्नोई भी अब इस गुट के साथ हैं,बहुत थोडे मतों से वो ज्ञानचंद गुप्ता से पंचकूला में इस बार हार गए थे। एक कार्यकारी अध्यक्ष इनके साथ हैं और बाकी इनके नेता हैं। वहीं बचे हुए विधायक आपको पता है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ हैं।

अब सियासी मायने अगर आप देख रहे हैं तो ये त्रिगुट सामने आया है तो ये भी देखिए कि कौन साथ नहीं आया है। अहीरवाल से कैप्टन अजय यादव जी इनके साथ नहीं आए जिनका हुड्डा साहब से उनकी सरकार में छत्तीस का आंकड़ा रहा है लेकिन अब उनकी और हुड्डा साहब की आपस में अच्छी बनती हुई नजर आ रही है।

सियासी मायने ये भी हैं कि कर्नाटक की जीत के हीरो रणदीप सुरजेवाला अब हरियाणा में भी जलवा दिखाना चाहते हैं। किरण चौधरी राज्यसभा चुनाव हुड्डा गुट की घेराबंदी का हिसाब किताब करना चाहती हैं और कुमारी सैलजा जी की भी भविष्य पर नजरें हैं। राजनीति में दोस्तों कोई लठ जेली की लडाई नहीं होती, लडाई होती है सत्ता की, कुर्सी की और मौका और दांव लगते ही लोग यहां खेल कर जाते हैं?

कुछ लोग कहते हैं कि गुटबाजी कांग्रेस की कमजोरी होती है लेकिन इसको दूसरे पहलू में देखें तो ये कई बात ताकत बन जाती है। 2014 में भाजपा प्रदेश में केवल इसलिए सत्ता में आ गई थी क्योंकि सीएम पद के कई दावेदार थे और सबको लग रहा है कि उनका नेता चुनाव जीत सकता है और इसने भाजपा को सत्ता तक पहुंचा दिया हो। इस लिहाज से देखें तो कांग्रेस में केवल हुड्डा गुट ही मजबूत रहे ये पार्टी के लिए तो नुकसानदायक ही है इसलिए अलग अलग कोनों में हुड्डा के सामने मजबूत नेता दिखें ये उनकी पार्टी के लिए तो सही दिखाई देता ही है लेकिन हुड्डा साहब के लिए सही हो ये जरूरी नही है।

कौन भारी पड़ेगा

वर्ष 2005 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुए चौ. भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी की तरह अहीरवाल के दो कद्दावर नेताओं की अहीरवाल क्षेत्र में नेतृत्व की क्षमता को हासिए पर लाने का काम कर दिया था। पहले राव इंद्रजीत सिंइ और बाद में कैप्टन अजय सिंह यादव के साथ जुड़े अहीरवाल के अधिकांश तत्कालीन कांग्रेसी विधायक ‘हुड्डा की गोद’ में बैठ गए थे। हुड्डा ने अहीरवाल के इन जनाधार वाले नेताओं को विपरीत समय में भी हाथ से खिसकने नहीं दिया। अब पिता की तर्ज पर बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने अहीरवाल में पिता का साथ देने वाले नेताओं के साथ मिलकर अपनी ताकत को मजबूत बनाने की दिशा में प्रयास शुरू कर दिए हैं।

हुड्डा साहब के सामने अब इन तीन नेताओं का एक साथ खड़ा होना प्रदेश में एक नई बहस को भी जन्म देगा कि पुराने रोहतक से बाहर भी कांग्रेस के नेता खड़े हैं? भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर ये आरोप भी लगते रहे हैं कि उनके राज में उन्होंने एक-एक करके लोकप्रिय नेताओं को कांग्रेस छोड़ने पर मजबूर किया है। राव इंद्रजीत सिंह, चौधरी बीरेंद्र सिंह, धर्मबीर सिंह, अशोक तंवर, कुलदीप बिश्नोई, अवतार भड़ाना, मांगेराम गुप्ता, कृष्णमूर्ति हुड्डा, सुभाष बत्रा, बलबीर पाल शाह, के सी चौधरी, धर्मवीर गाबा जैसे एक दर्जन नेताओं ने कांग्रेस में हाशिए पर डाल दिया। इनमें अनेक ने कांग्रेस कोअलविदा कहा था और आज किसी ना किसी तरह सत्ता में बने हैं बल्कि भाजपा के लिए महत्वूपर्ण एसेस्ट भी हैं।

पिता की राह पर बेटा

गत शनिवार को दीपेंद्र ने नारनौल में पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष चौ. उदयभान, पूर्व सीपीएस राव दान सिंह व वरिष्ठ कांग्रेसी नेता महाबीर मसानी के साथ एक होटल में मंत्रणा करते हुए नए कार्यकर्ताओं को साथ जोड़ने की शुरूआत की। पिता की तरह दीपेंद्र भी यह बात समझ चुके हैं कि प्रदेश की सत्ता का रास्ता अहीरवाल क्षेत्र से निकलता है। इस क्षेत्र की दस विधानसभा सीटें पूरे प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करती हैं। इस क्षेत्र से जिस पार्टी को सर्वाधिक विधायक मिले, वही पार्टी सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रही। वर्ष 2000 के विधानसभा चुनावों में इस क्षेत्र में ओपी चौटाला को लोगों का खुलकर साथ मिला था। इनेलो को दस में से 6 विधायक मिले थे, जिनके दम पर चौटाला ने सरकार बनाई थी। इससे अगले ही चुनाव में कांग्रेस का इस क्षेत्र में अच्छी सफलता मिली, तो सीएम बनने के बाद हुड्डा ने अधिकांश कांग्रेसी विधायकों की कमान सीधे तौर पर अपने हाथ में लेते हुए उन्हें पदों के तोहफे देने में भी कमी नहीं छोड़ी थी। अनीता यादव और राव दान सिंह को सीपीएस बनाया गया था।

कैप्टन अजय के हाथ से छिन गई थी कप्तानी

वर्ष 2005 के विधानसभा चुनावों से पहले अहीरवाल की राजनीति में राव इंद्रजीत सिंह और कैप्टन अजय सिंह यादव के बीच वर्चस्व की जंग खूब चली थी। उस समय राव इंद्रजीत सिंह भूपेंद्र सिंह हुड्डा का खुलकर साथ दे रहे थे, तो कैप्टन अजय सिंह तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चौ. भजनलाल के साथ जुड़े हुए थे। राव दानसिंह, राव नरेंद्र सिंह, अनीता यादव व राव धर्मपाल उस समय कैप्टन दरबार में हाजिरी लगाते नजर आते थे। इन चुनावों के बाद अहीरवाल की राजनीति में बड़ा उलटफेर हुआ। कैप्टन अजय भजनलाल का खेमा छोड़कर अहीरवाल के विधायकों के साथ हुड्डा खेमे में शामिल हो गए थे। राव इंद्रजीत ने मजबूत व्यक्तिगत जनाधार के दम पर हुड्डा के साथ खुलकर पंगा भी लिया और राजनीतिक वजूद को भी बरकरार रखा। बाद में कैप्टन के साथ जुड़े विधायक सीधे तौर पर हुड्डा खेमे में शामिल हो गए। हुड्डा ने कैप्टन को अहीरवाल में अलग-थलग कर दिया था।

हार से मिल चुका जूनियर हुड्डा को बड़ा सबक

गत लोकसभा चुनावों में रोहतक हलके से आसानी से जीत दर्ज करने की कामना करने वाले दीपेंद्र को क्षेत्र के अकेले अहीर बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र कोसली ने बड़ा झटका देने का काम किया था। कोसली हलके की जनता ने इस हलके में दीपेंद्र की हार का अंतर इतना बड़ा कर दिया था कि रोहतक के अधिकांश हलकों में मिली जीत भी कोसली की हार का असर कम नहीं कर सकी। यही कारण है कि दीपेंद्र भी अपने पिता की तर्ज पर अब इस इलाके पर पूरा जोर दे रहे हैं। पिता के साथ जुड़ी मजबूत टीम की कमान अब दीपेंद्र के हाथों में नजर आने लगी है। देखना यह होगा कि दीपेंद्र की क्षेत्र में बढ़ती सक्रियता आने वाले समय में कितनी कारगर साबित होती है।

संगठन की सूची पर फोकस, जल्द जारी होगी

हरियाणा में कांग्रेस संगठन की घोषणा जल्द ही होने की संभावनाएं है। राज्‍य में पार्टी संगठन की सूची तैयार हो चुकी है और इस पर कांग्रेस हाईकमान की स्वीकृति की मोहर लगना बाकी है। सूची पर पार्टी नेताओं की सहमति बनाने में नए प्रभारी दीपक बाबरिया सफल रहे हैं और दिल्ली में संगठन की सूची व तालमेल को लेकर हरियाणा के शीर्ष नेताओं से मिल रहे हैं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान के अनुसार 180 ब्लॉक और 33 जिला प्रधानों की सूची कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के पास है। प्रदेश में नौ साल में पहली बार जिला और ब्लाक स्तर के संगठन की अंतिम सूची हाईकमान तक पहुंच चुकी है। ये सूची तत्कालीन पार्टी प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल के नेतृत्व में दिल्ली पहुंची थी, लेकिन अब इस पर काम नए पार्टी प्रभारी दीपक बाबरिया करा रहे हैं। जिला और ब्लाक सूची बनाते समय कई जिलों में हुड्डा के अपने खेमे में भी आंतरिक विरोध बन गया था। राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र हुड्डा एक जिले को छोड़कर बाकी सभी जगह खेमेबंदी तोड़ने में कामयाब हुए हैं। दीपेंद्र फरीदाबाद जिलाध्यक्ष पद पर सर्वसम्मति से नाम तय नहीं करवा पाए। प्रदेशाध्यक्ष की तरफ से जो नाम दिया है, उस पर पार्टी के अन्य नेता सहमति नहीं दिखा रहे हैं। नेता विपक्ष और पूर्व सीएम हुड्डा चाहते हैं कि प्रदेशाध्यक्ष की एक जिले को लेकर जो संस्तुति है, उसको मान लिया जाना चाहिए।

सभी नेता करीबियों को समायोजित करने का कर रहे प्रयास

पार्टी के सभी दिग्गज नेताओं के करीबियों को सूची में समायोजित करने का प्रयास किया जा रहा है। जिसमें विधायक किरण चौधरी, पूर्व मंत्री औऱ वरिष्ठ नेत्री सैलजा, रणदीप सुरजेवाला समर्थकों को संगठन सूची में कुछ ब्लॉक व जिले मिलने की संभावना है। हुड्डा खेमे से हरियाणा कांग्रेस के नेताओं ने भी अलग नामों की सूची दी हुई है।

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