भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। हमने मई माह में ही बोला था कि जून माह में हरियाणा की राजनीति में कुछ बड़ा देखने को मिलेगा और वह देखने को मिल भी रहा है। वर्तमान में परिस्थितियों में सबसे बड़ा प्रश्न है कि भाजपा-जजपा गठबंधन रहेगा या टूटेगा?

आज मुख्यमंत्री ने भी कहा कि गठबंधन है और रहेगा, कोई दिक्कत नहीं है तथा उपमुख्यमंत्री ने बोला कि गठबंधन है, मीडिया तोडऩे की कोशिश कर रहा है। अब मीडिया तो वही लिखेगा न जो दिखेगा।

भाजपा के प्रदेश प्रभारी विप्लब देव पिछले 2-3 दिनों से निर्दलीय उम्मीदवारों से व्यक्तिगत मुलाकात कर रहे हैं। उनसे मुलाकात के बाद हलोपा के गोपाल कांडा ने कहा कि जजपा के बिना भी सरकार को कोई खतरा नहीं है। तो प्रश्न यह है कि जब गठबंधन को कोई खतरा ही नहीं है, सरकार भली प्रकार चल रही है तो फिर निर्दलीय उम्मीदवारों से इतना मोह अब क्यों उमड़ा? प्रदेश प्रभारी के निर्दलीय उम्मीदवारों से मिलने के पश्चात मुख्यमंत्री से मुलाकात के मायने क्या?

आज सोशल मीडिया पर चल रहा था कि चौ. बीरेंद्र सिंह ने कहा कि जजपा के 7 विधायक मेरे संपर्क में हैं, जब चाहे भाजपा में आ सकते हैं। जिस पर हमने चौ. बीरेंद्र सिंह से पूछा कि क्या उन्होंने ऐसा कहा है तो उधर से जवाब मिला कि मैंने ऐसा नहीं कहा, मैंने तो यह कहा कि जजपा के 7 विधायक जजपा से असंतुष्ट हैं।

साथ ही यह भी ज्ञात हुआ कि प्रेमलता उचाना से चुनाव लड़ेंगी, जबकि दुष्यंत चौटाला भी उचाना से चुनाव लडऩे की बात कर रहे हैं। लगता है कि हिसार इस गठबंधन के टूटने में बड़ी भूमिका अदा करेगा, क्योंकि हिसार के आसपास का क्षेत्र जाट बाहुल्य है और वह दुष्यंत के रहने से भाजपा से दूर हो रहा है और साथ ही किसान आंदोलन तथा पहलवानों के धरने से भी भाजपा से दूरियां बढ़ रही हैं। इधर प्रदेश प्रभारी विप्लब देव का ब्यान और उस पर जजपा की ओर से पलटवार, कह रहे हैं कि गठबंधन में विश्वास समाप्त हो रहा है।

 शुगर फेड के चेयरमैन रामकरण ने अपना इस्तीफा देने की बात कही। कही हम इसलिए कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री का कहना है कि इस्तीफा मेरे पास आना चाहिए था, मैं तो ढूंढ रहा हूं, मेरे पास तो आया नहीं। यह सब राजनैतिक बातें हैं। दूसरी ओर उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का कहना है कि उन्होंने इस्तीफा मुझे दिया है लेकिन वह किसानों पर हुए लाठीचार्ज से नाराज हैं, उन्हें समझा लिया जाएगा।

भाजपा-जजपा गठबंधन को साढ़े तीन वर्ष हो गए हैं लेकिन सत्ता में तो उनका गठबंधन दिखाई देता है परंतु जमीनी स्तर पर यह गठबंधन दिखाई नहीं देता। जहां भाजपा के नेता जाते हैं, वहां जजपा समर्थकों की दूरी दिखाई देती है। इसी प्रकार जजपा के नेता जाते हैं तो भाजपा कार्यकर्ताओं की दूरी दिखाई देती है। साथ ही प्रदेश अध्यक्ष ने का इशारा भी यही कहता है कि भाजपा कार्यकर्ता गठबंधन नहीं चाहते। इसके पीछे कारण नजर भी आता है कि भाजपा कार्यकर्ताओं की सोच यह होगी कि यदि गठबंधन होगा तो चुनाव में सीटें जजपा को भी मिलेंगी और उनकी सीटें कटेंगी। ऐसे में वह गठबंधन पसंद नहीं करते।

दूसरी ओर उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का कहना है कि हम 90 सीटों पर तैयारी कर रहे हैं और उनके समर्थकों की जुबान बार-बार उन्हें भावी मुख्यमंत्री कह रही है। ऐसी स्थिति में गठबंधन का चलने पर प्रश्न चिह्न तो लगता है।

एक प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि जो भाजपा अनुशासित पार्टी के नाम से जानी जाती है और उसका प्रभारी जो पहले मुख्यमंत्री भी रहा है, वह बिना हाईकमान के इस प्रकार की बातें जुबान से निकाल नहीं सकता तो यह अवश्य लगता है कि भाजपा हाईकमान भी इस गठबंधन को अब पसंद शायद नहीं कर रहा।

राजनैतिक चर्चाकारों का कहना है कि भाजपा की नीति रही है कि प्रादेशिक दल अलग-अलग चुनाव लड़ें और इनकी विजय हो जाए। हरियाणा में भी ऐसा ही है। भाजपा के पास अनेक जाट नेता हैं, जिनमें सर्वप्रथम तो प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ हैं, दूसरे कैप्टन अभिमन्यु हैं, तीसरे मुख्यमंत्री के चहेते सुभाष बराला हैं। ये तो हुए बड़े नाम इनके अतिरिक्त भी जाट नेता हैं। 

इसी प्रकार इनेलो और जजपा भी जाटों की पार्टी मानी जाती है और भूपेंद्र सिंह हुड्डा इस समय जाटों के बड़े नेता के रूप में स्थापित कहे जा रहे हैं। ऐसे में जाट वोटों का 4 जगह बंटाव भूपेंद्र सिंह हुड्डा की शक्ति को कम कर देगा और भाजपा की नीति सफल हो जाएगी।

इस प्रकार परिस्थितियां तो कह रही हैं कि गठबंधन टूटेगा, जबकि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री इसके न टूटने की बात कह रहे हैं। समझ तो इन परिस्थितियों को यह दोनों भी रहे होंगे परंतु संभव है कि राजनैतिक मजबूरियां इनसे यह ब्यान दिलवा रही हों।

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