भारतीय महासागर को संरक्षित करना वर्तमान समय की मांग : प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा

कुवि के इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंडो-पैसिफिक स्टडीज एवं अर्थशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में कुका द्वारा प्रायोजित विश्व महासागर दिवस पर कार्यक्रम आयोजित।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र, 08 जून : महासागर केवल जल का भंडार नहीं है बल्कि इसमें जीवन के संसाधन उपलब्ध है। महासागर को संरक्षित व बचाना वर्तमान समय की मांग है। यह विचार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने गुरुवार को सीनेट हॉल में इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंडो-पैसिफिक स्टडीज एवं अर्थशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र एलुमनी एसोसिएशन द्वारा प्रायोजित विश्व महासागर दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम महासागर की एक बूंद की तरह है परन्तु यह बूंद महासागरों को संरक्षित करने का मार्ग प्रशस्त करेगी। कुवि कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि ऐसी तकनीक के प्रयोग से बचना होगा जो जलवायु परिवर्तन के लिए घातक हो। महासागर पृथ्वी की सतह का 70 प्रतिशत हिस्सा हैं और हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके साथ भारतीय महासागर का पिछले 10 वर्षों से भारत की जीडीपी में भी अहम योगदान है। कार्बन डाइऑक्साइड के कारण वातावरण में तापमान निरंतर बढ़ रहा है जिसकी वजह से मानव जीवन पर बुरा असर पड़ रहा है इसलिए महासागरों का संरक्षण बहुत आवश्यक है। इस अवसर पर कार्यक्रम का शुभारम्भ कुवि कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा, केयू इंडो पेसिफिक सेंटर के निदेशक प्रोफेसर वीएन अत्री, छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. शुचिस्मिता, प्रो. एसके चहल, प्रो. अशोक चौहान व प्रो. प्रदीप चौहान द्वारा मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर तथा कुलगीत के साथ किया गया।

कुवि कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि वर्तमान में जी 20 की अध्यक्षता करना भारत के लिए गौरव का विषय है तथा वर्तमान में औद्योगिक क्रांति 4.0 चल रहा है जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, रोबोटिक्स, चैट जीपीटी का प्रयोग जीवन के हर स्तर किया जा रहा है। मानव जनसंख्या के बढ़ने के कारण संसाधनों की मांग भी बढ़ी है लेकिन हम सभी का कर्त्तव्य है कि जलवायु परिवर्तन को देखते हुए सुरक्षित तकनीक का ही उपयोग करें। उन्होंने पौराणिक कथा में क्षीर सागर मंथन का उदाहरण देते हुए कहा कि महासागर से निकले विष का समाधान जिस प्रकार भगवान शिव ने किया था उसी प्रकार आज महासागरों में फैले प्रदूषण का समाधान मनुष्य को जागरूक रहकर करना होगा। इससे पहले कुवि कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने पर्यावरण अध्ययन संस्थान एवं ललित कला विभाग द्वारा जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण प्रदूषण तथा महासागर को लेकर विद्यार्थियों द्वारा लगाई गई पोस्टर प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए विद्यार्थियों से बातचीत की व उनके कार्यों की प्रशंसा की।

केयू के इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंडो-पैसिफिक स्टडीज के निदेशक प्रोफेसर वीएन अत्री ने बतौर मुख्य वक्ता कहा कि आज देशभर के विश्वविद्यालय में महासागर दिवस मनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि केयू में स्थापित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंडो-पैसिफिक स्टडीज सेंटर का उद्देश्य नीली अर्थव्यवस्था क्षेत्र को लेकर शोध कार्य को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा कि समय-समय पर यूनेस्को, यूएनओ, डब्ल्यूईएफ तथा वर्ल्ड बैंक द्वारा नीली अर्थव्यवस्था को परिभाषित किया गया है। उन्होंने कहा कि धरती पर मानवीय जीवन महासागर की वजह से ही है लेकिन वर्तमान में मनुष्य महासागरों को नुकसान पहुंचा रहा है।

व्याख्यान के समापन पर अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर अशोक कुमार चौहान ने व्याख्यान के सफल आयोजन के लिए सभी सहयोगियों का धन्यवाद किया। मंच का संचालन सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रिया शर्मा ने किया। इस अवसर पर छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. शुचिस्मिता, प्रो. अमित लूदरी, प्रो. ब्रजेश साहनी, प्रोफेसर प्रदीप चौहान, प्रो. ओमवीर सिंह, डॉ. कुलदीप सिंह, डॉ. विकास सभ्रवाल, डॉ. रमेश सिरोही, डॉ. महासिंह पूनिया, डॉ. मीनाक्षी सुहाग, डॉ. सुशील कुमार, डॉ. संदीप गुप्ता, डॉ. प्रिया शर्मा, डॉ. निधि बगरिया, डॉ. रामचन्द्र, डॉ. वीर विकास सहित शोधार्थी व विद्यार्थी मौजूद रहे।

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