-कमलेश भारतीय पांच राज्यों के चुनाव परिणाम यह कह रहे हैं कि ममता दी , उत्तर प्रदेश में न खेला हुआ , न खदेड़ा हुआ । बल्कि गोवा में भी आप वोट कटवा पार्टी ही साबित हुईं जैसा कि चिदम्बरम ने कहा था । हां , पंजाब में बड़े बड़े नेताओं के तख्त ओ ताज उछल गये । ऐसा कब हुआ कि एक साथ प्रकाश सिंह बादल , कैप्टन अमरेंद्र सिंह , सुखबीर बादल , चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू ही नहीं स्टार भाई सोनू सूद की बहन मालविका सूद तक बुरी तरह हार जायें । चन्नी को तो एक मोबाइल रिपेयर की दुकान पर काम करने वाले ने हरा दिया । है न ये जो जनता है ये क्या हाल कर देती है ,,, एक काॅमेडियन भगवंत मान को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा देती है और मुख्यमंत्री पद के दावेदारों को नीचे पटक देती है । यह जो जनता है न सन् 1977 के बाद से अपनी असली ताकत दिखा रही है । जिस जनता ने इंदिरा गांधी और बंसीलाल जैसे नेताओं को धरती दिखाई थी , उसी जनता ने उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को भी सबक सिखाया तो उत्तराखंड में मुख्यमन्त्री पुष्कर धामी और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को भी सबक सिखा दिया । सबसे बड़ा सबक प्रियंका गांधी को कि कैप्टन अमरेंद्र का अपमान करने का परिणाम दिखाया पंजाब में बुरी तरह कांग्रेस को पराजित करके और उत्तर प्रदेश में भी कोई नारा नहीं चला । खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय व पंजाब में नवजोत सिद्धू हार गये । नवजोत सिद्धू को उसकी महत्त्वाकांक्षा अंर बड़बोलेपन ने हराया । अब क्रिकेट की उम्र कब की निकल चुकी , वह कपिल शर्मा के शो का हिस्सा बनने लायक छोड़ दिया जनता ने । सोशल मीडिया पर मज़ाक चल रहा है कि कपिल शर्मा शो की अर्चना पूर्ण सिंह की कुर्सी को खतरा हो गया है सिद्धू की हार से । सबक तो मनोहर प्रदेश के बेटे उत्पल को भी मिला कि पार्टी छोड़कर चुनाव लड़कर कोई फायदा नही और सबक मिला चढूनी को कि किसान आंदोलन को कैश करने निकलना गलत था । उत्तर प्रदेश , पंजाब पर फोकस करके भी प्रियंका को कुछ परिणाम न मिला । ममता बनर्जी का खेला न हुआ । अखिलेश को लगातार पांच साल काम करना चाहिए था और मायावती की पांच साल की खामोशी की उन्हें सजा मिल गयी । जो कभी प्रधानमंत्री पद की दावेदार थी वह सिर्फ एक सीट ले पाई । कांग्रेस को सिर्फ दो ही मिलीं । बादल भी अपने जीवन का अंतिम चुनाव हार गये जैसे कभी हरियाणा के चौ भजनलाल लाल आखिरी चुनाव करनाल से हार गये थे । काफी चौंकाने वाले नतीजे रहे और बहुत कुछ सिखाने वाले नतीजे भी रहेे । कांग्रेस को अपने वरिष्ठ लोगों को नजरअंदाज करना भारी भूल साबित हो रहा है । वरिष्ठ नेताओं को स्टार प्रचारक भी नहीं बनाया । आप पार्टी ने उम्मीद से दुगुना पाया तो कथित संत का कोई असर न दिखा मालवा में । वहीं लगभग सारी सीटें आप ने जीत लीं । मणिपुर व उत्तराखंड में तीसरी बार तो उत्तरप्रदेश में लगातार दूसरी बार भाजपा हरकार बना रही है । यह है चुनाव मैनेजमेंट न कि कांग्रेस की तरह डिजास्टर मैनेजमेंट जो पंजाब में की गयी । अब भी कोई सबक न सीखा तो कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टियों जैसी स्थिति में पहुंच जायेगी और एक अछूत पार्टी बन कर रह जायेगी । अकाली दल को भी सोच विचार करना है तो मायावती को भी । अभी फिर चुनाव आ रहे हैं । तब तक जो संभल जायेगा , वह अच्छा प्रदर्शन कर पायेगा नहीं तो फिर वही विचार मंथन करते रह जाओगे ।-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । Post navigation चुनावी हार से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में निराशा जरूर है, पर वे हताश न हो : विद्रोही खंडित हो रहे परिवार, हमारी संस्कृति में गिरावट के प्रतीक