ऋषि प्रकाश कौशिक

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेशनल कैंसर अस्पताल, झज्जर के परिसर में विश्राम सदन का उद्घाटन किया, यह निश्चय ही बड़ी ख़बर है, लेकिन इससे बड़ी और खास खबर यह है कि उन्होंने इस अवसर पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की धुंआधार तारीफ की। विश्राम सदन इन्फोसिस फाउंडेशन ने बनाया है, कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉसिबिलिटी (सीएसआर) योजना के तहत। तिरानबे करोड़ की लागत से बने 806 कमरों वाले एयरकंडीशंड विश्राम सदन में हरियाणा सरकार का ना धन लगा है और ना ही श्रम, फिर भी खूब तारीफ बटोरी मनोहर लाल खट्टर ने।   

प्रधानमंत्री ने खट्टर की तारीफ के लिए जो चुनिंदा शब्द इस्तेमाल किए हैं उससे ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री की गिरती साख उठाने और कुर्सी पर मँडराए अनिश्चय के बादल छांटने के लिए तारीफ की जा रही है।    

हरियाणा सरकार की सराहना करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा- मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में राज्य का काफी विकास हुआ है और उसे “पूरी तरह ईमानदारी से काम करने वाली सरकार” मिली है।  उन्होंने कहा, “मैं भाग्यशाली हूँ कि मुझे हरियाणा से बहुत कुछ सीखने को मिला।”   

प्रधानमंत्री ने खट्टर को “पिछले पांच दशकों में सबसे ईमानदार मुख्यमंत्री” बताया।  प्रधानमंत्री ने हरियाणा सरकार की कार्यशैली की भी सराहना की और कहा कि “यह अन्य राज्यों के लिए प्रेरणा का स्रोत है”   अचानक तारीफ के पुल बांधने के मायने हर किसी को समझ आ रहे हैं। पांच दशकों के सबसे ईमानदार मुख्यमंत्री का सर्टिफिकेट तो खट्टर को मिल गया, लेकिन खट्टर के सखा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं और राज्य की जनता को यह बताना भूल गए कि खट्टर के कामकाज का आकलन किन मानदण्डों पर किया गया है। मापदंड बताना इसलिए जरूरी है कि पार्टी कार्यकर्ता अपना ज्ञान दुरुस्त कर लें और खट्टर की आलोचना बंद कर दें। बीजेपी के कई नेता और कार्यकर्ता खुल्लमखुल्ला खट्टर सरकार पर भ्रष्टाचार के छींटे डालते रहे हैं। यदि प्रधानमंत्री की नजरों में खट्टर पिछले पांच दशक के सबसे ईमानदार मुख्यमंत्री हैं तो यह ज्ञान चक्षु नेताओं और कार्यकर्ताओं के पास क्यों नहीं हैं। खट्टर अपनी पार्टी के नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की जाँच क्यों नहीं करवाते। ईमानदार नेता की कार्यशैली से ईमानदारी दिखनी भी चाहिए।  

 पिछ्ले दिनों सोशल मीडिया पर चर्चा गर्म थी कि मुख्यमंत्री बदले जा सकते हैं। पार्टी का एक खेमा तो सम्भावनाओं का आवरण उतार कर सीधे सीधे कह रहा था – मुख्यमंत्री निश्चित तौर पर बदले जाएंगे। उस गुट का विश्वास इस कदर छलक रहा था मानो प्रधानमंत्री से अभी अभी मिल कर लौटे हों और उनकी ख़बर को कोई चुनौती नहीं दे सकता। किसानों के विरोध के कारण मुख्यमंत्री का जनसंपर्क का दायरा ज्यों ज्यों सीमित हो रहा था, त्यों त्यों खबर की शक़्ल में कुर्सी बदले जाने की अफवाहों का दायरा सोशल मीडिया पर असीमित हो रहा था। जनसाधारण भी मानने लगा था कि खट्टर का कभी भी पत्ता साफ़ हो सकता है।  

 लोकतंत्र में कुर्सी धर्म की कुछ अलिखित आचार संहिताएं हैं। डगमगाती कुर्सी पर बैठे नेताओं से लोग किनारा करने लगते हैं।  ‘चला चली’ के दौर से गुजर रहे नेताओं से अपने खास भी आँखें फेर लेते हैं। जितनी बड़ी कुर्सी होती है, जिल्लत का दंश भी उतना ही पीड़ादायक होता है।      

प्रधानमंत्री की असमय और अप्रत्याशित तारीफ से एक आम आदमी को  समझ आ रहा है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर बड़े दरबार में अपनी पीड़ा बताने गए होंगे और अफवाहों पर विराम लगाने की फ़रियाद की होगी। हिलती कुर्सी देख कर घाघ अफसर ना तो इज्जत करते हैं और ना ही आदेश का पालन। कमोबेश यही रवैया पार्टी कार्यकर्ताओं का भी रहता है। किसी भी मुख्यमंत्री या मंत्री को इन हालात में हर पल अपमान का घूंट पीना पड़ता है। प्रधानमंत्री ने खट्टर की पीड़ा समझते हुए कम से कम अभी के लिए हरियाणा भाजपा के नेतृत्व में तत्काल बदलाव की सभी अटकलों पर विराम लगा दिया है।  

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