खाद की कीमतों में बढ़ोतरी किसानों की पहले से फ़टी जेब पर डाका – बलराज कुंडू

महंगी खाद, महंगी दवाई, महंगी बिजली और महंगा डीजल तोड़ रहे हैं अन्नदाताओं की कमर
कहीं सर्वर डाउन बताकर तो कहीं नमी के नाम पर किया जा रहा है किसानों को परेशान।
खाद की बढ़ी हुई कीमतें तुरन्त वापस ले सरकार – कुंडू

रोहतक, 8 अप्रैल : सत्ता में बने रहने के लिए भाजपा ने किसानों की आय को दौगुणा करने का वादा था लेकिन एक बार फिर से खाद की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी करके सरकार ने किसानों की पहले से फ़टी हुई जेब पर डाका डालने का काम है। यह कहना है महम से निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू का।

 इफको द्वारा डीएपी के पचास किलोग्राम के कट्टे पर 700 रुपये और एनपीके पर 615 रुपये प्रति पचास किलोग्राम की मूल्यवृद्धि को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कुंडू ने कहा कि सरकार ने आय दोगुना करने का झांसा देकर किसान की लागत दोगुना करने का काम किया है। सरकार की यह दरियादिली किसानों पर वज्रपात है। डीजल, खाद, दवाई और महंगी बिजली ने किसानों को पहले ही बुरी तरह परेशान कर रखा है और ऊपर से अब डीएपी और एनपीके की कीमतों में भारी भरकम इजाफा करके सरकार ने सरासर किसानों की कमर तोड़ने का काम किया है।

महम विधायक श्री कुंडू ने कहा कि सरकार जानबूझ कर किसानों को टारगेट कर गलत नीतियां लागू करती जा रही है। तीन कृषि कानून भी सरकार की इसी नीति का ही परिणाम हैं जिनके विरोध में देशभर में किसान आंदोलन चल रहा है और हजारों किसान 4 महीने से इन काले कानूनों के खिलाफ दिल्ली के बॉर्डर पर धरना लगाए बैठे हैं। दुर्भाग्य है कि हमारे तीन सौ से अधिक किसान भाईयों की शहादतें हो चुकी हैं लेकिन सरकार संवेदनहीन बनी बैठी है। सरकार को तुरन्त अन्नदाताओं से बातचीत कर उनकी मांगें मानते हुए सम्मान के साथ किसानों की घर वापसी करवानी चाहिए।

प्रदेश की अनाज मंडियों में फसल खरीद को लेकर भी बलराज कुंडू ने सरकार की नीयत और नीतियों को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि पोर्टल की खामियों के चलते अनेक जगहों पर फसलों का पंजीकरण नहीं होता जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। बहुत हो चुका सरकारी तंत्र नित नए प्रयोग करके किसानों और खेती को प्रयोगशाला समझना बन्द करें।

कुंडू ने कहा कि आज सत्ता पक्ष के लोग किसानों के एटीएम कहे जाने वाले आढ़तियों को बिचौलिया बता रहे हैं जबकि हकीकत है कि आढ़ती और किसान का रिश्ता एक-दूजे के पूरक का होता है। उन्होंने कहा कि फसल के भुगतान में मर्जी सरकार की नहीं बल्कि किसानों की होनी चाहिए। कुंडू ने गेहूं में 14 प्रतिशत नमी को घटाकर 12 प्रतिशत किये जाने के सरकारी फैंसले पर भी सवाल उठाए और कहा कि ऐसा जानबूझ कर किसानों को परेशान करने के लिए किया जा रहा है।

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